शीला दीक्षित- पंजाब में जन्म, दिल्ली में पढ़ाई और यूपी में राजनीति की शुरुआत
पंजाब में पैदा हुई, दिल्ली में पढ़ाई की और उत्तर प्रदेश से शुरु किया राजनीतिक सफर, शीला दीक्षित यूपी में कांग्रेस को एक बार फिर से खड़ा करने कितना कारगर साबित
अंकुर सिंह। यूं तो शीला दीक्षित को लोग बतौर दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में बेहतर रूप से जानते हैं लेकिन जबसे कांग्रेस पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश में अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है उसके बाद से लोग उनका यूपी कनेक्शन ढूंढ़ने लगे हैं ऐसे में देखने वाली बात यह है कि 78 वर्ष की आयु में शीला दीक्षित यूपी में कांग्रेस की नैया कैसे पार लगाती हैं।
यूपी से शुरु हुआ सफर, जेल की हवा भी खाई
शीला दीक्षित दिल्ली की राजनीति में आने से पहले यूपी में अपना दांव आजमा चुकी हैं, हालांकि उत्तर प्रदेश में उनका राजनीतिक अनुभव अच्छा नहीं रहा और वर्ष 1989 के बाद वह यूपी में तीन लोकसभा चुनाव हारी।
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के खिलाफ आंदोलन के चलते शीला दीक्षित और उनके 82 साथियों को अग्सत 1990 में 23 दिल तक जेल की हवा भी खानी पड़ी थी।
यूपी में एक जीत और तीन हार
यूपी की राजनीति में शीला दीक्षित 1994 में पहली बार कन्नौज की सीट से चुनाव लड़ा और वह यह चुनाव जीत गयी। लेकिन यह चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए थे जिसमें कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिले थे। लेकिन इस लहर के बाद तीन बार शीला लगातार चुनाव हारी। शीला राजीव गांधी सरकार में पीएमओ में राज्यमंत्री भी रह चुकी है और आखिरी बार उन्होंने 1996 में यूपी में चुनाव लड़ा था।
दिल्ली में दिखाया दम
यूपी में बुरी तरह से विफल होने के बाद शीला दीक्षित ने दिल्ली का रुख किया और कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली की कमान सौंपी जिसे उन्होंने बखूबी निभाया और बतौर दिल्ली की मुख्यमंत्री उन्होंने काफी लंबी पारी खेली।
युवावस्था में दिल्ली में भी आंदोलन की अगुवा रही
छात्रावस्था में शीला दीक्षित ने दिल्ली में 1970 युवा महिला एसोसिएशन की चेयरपर्सन भी थी और उनके प्रयासों के चलते ही कामकाजी महिलाओं के लिए दो हॉस्टल बनें जोकि आज भी काफी सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
पंजाब हुआ था जन्म
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनकी पढ़ाई दिल्ली के कॉवेंट ऑफ जीसस मैरी स्कूल से हुई थी जिसके बाद उन्होंने मिरांडा हाउस से स्नातक की पढ़ाई कि और फिर इतिहास विषय में परास्नातक की डिग्री उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
तकरीबन 15 साल रही मुख्यमंत्री
हालांकि यूपी की राजनीति में शीला दीक्षित कुछ खास नहीं कर सकी लेकिन दिल्ली की राजनीति में उन्होंने बेहद ही सफल पारी खेली और लगातार 15 सालों तक वह मुख्यमंत्री रही। 1998 में उन्होंने पूर्वी दिल्ली से भाजपा के लाल बिहारी तिवारी को हराकर दिल्ली की राजनीति में अपना सफर शुरु किया था।
भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे
अपने लंबे कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित पर कई भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। उनपर पहला भ्रष्टाचार का आरोप केंद्र सरकार का 3.5 करोड़ रुपए के गबन का लगा।, हालांकि लोकायुक्त ने उनके खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया था। हालांकि उनके खिलाफ गलत तथ्य पेश करने के आरोप लगे और यह मामला अभी लोकायुक्त अदालत में चल रहा है।
शीला दीक्षित पर जो बड़ा भ्रष्टाचार का आरोप लगा वह था 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रमंडल खेलों में काफी अनियमितता पाई गई। उनपर करीबियों को ठेके देने के आरोप लगे।
मनु शर्मा को पैरोल देकर घिरी थीं
शीला दीक्षित को हत्यारोपी मनु शर्मा को पैरोल देने के चलते भी काफी आलोचना का सामना करना पड़ा। मीडिया में खबरें आई कि वह नाइट क्लब में जाती है और यहीं उनकी मुलाकात मनु शर्मा से हुई थी।
बयानों के चलते भी रही विवादों में
शीला दीक्षित के दो बयान भी उनकी मुसीबत का सबब बने, पहला बयान उन्होंने निर्भया गैंगरेप के वक्त दिया, उन्होंने कहा कि 2012 में एक रेप के चलते सरकार को 181 हेल्पलाइन की शुरुआत करनी पड़ी। वहीं उन्होंने जो दूसरा बयान दिया वह यह कि दिल्ली में यूपी और बिहार वाले अपराध करते हैं। दोनों ही बयानों के चलते शीला दीक्षित की काफी आलोचना हुई।
केरल की राज्यपाल भी रही
शीला दीक्षित लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही लेकिन 2013 में आम आदमी पार्टी के उदय के बाद उन्हें हार का सामना करना पड़ा और मौजूदा समय में कांग्रेस का एक भी विधायक दिल्ली विधानसभा में नहीं है। दिल्ली की बुरी हार के बाद कांग्रेस ने उन्हें 11 मार्च 2014 को केरल का राज्यपाल बनाया था। लेकिन 25 अगस्त को केंद्र में परिवर्तन के बाद उन्हें राज्यपाल के पद से हटा दिया गया।