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कैप्टन विक्रम बत्रा: वीरता की कहानी पढ़ आपको गर्व होगा

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पालमपुर। हिमाचल प्रदेश का जिला पालमपुर न सिर्फ अपने सेब के लिए दुनिया भर में मशहूर है बल्कि यहां के युवाओं ने भी यहां का नाम रोशन किया है।

पालमपुर देश पर कुर्बान होने वाले कई शहीदों की मातृभूमि है जिनमें से एक थे शहीद विक्रम बत्रा उर्फ शेरशाह। आज इसी शेरशाह का जन्‍मदिन है। भले ही शहीद कैप्‍टन बत्रा आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी वीरता ने उन्‍हें अभी तक लोगों के दिलों में जिंदा रखा है।

एक कोल्‍ड ड्रिंक कंपनी की लाइनों 'ये दिल मांगे मोर' को कारगिल में एक अलग पहचान देने वालेे थे जम्‍मू कश्‍मीर राइफल्‍स के ऑफिसर कैप्‍टन विक्रम बत्रा।

वह कारगिल में उस समय शहीद हुए जब वह प्‍वाइंट 4875 से अपने घायल बहादुर सिपाहियों को वापस ला रहे थे। तभी दुश्‍मन की एक गोली ने उन्‍हें अपना निशाना बना लिया। सिर्फ 24 वर्ष की उम्र में देश के लिए शहीद होने वाले कैप्‍टन बत्रा की जिंदगी के बारे में आज जानिए कुछ खास बातें।

पालमपुर के गांव में जन्‍मा एक योद्धा

पालमपुर के गांव में जन्‍मा एक योद्धा

कैप्‍टन विक्रम बत्रा का जन्‍म नौ सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर जिले के घुग्‍गर में हुआ था। उनके पिता का नाम जीएम बत्रा और माता का नाम कमल बत्रा है। शुरुआती शिक्षा पालमपुर में हासिल करने के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वह चंडीगढ़ चले गए थे।

मां से सिखा लिखना पढ़ना

मां से सिखा लिखना पढ़ना

शहीद बत्रा की मां जय कमल बत्रा एक प्राइमरी स्‍कूल में टीचर थीं और ऐसे में कैप्‍टन बत्रा की प्राइमरी शिक्षा घर पर ही हुई थी।

परमवीर चक्र विजेता कैप्‍टन बत्रा

परमवीर चक्र विजेता कैप्‍टन बत्रा

चंडीगढ़ से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले कैप्‍टन बत्रा ने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया। यहां से एक लेफ्टिनेंट के तौर पर वह भारतीय सेना के कमीशंड ऑफिसर बने और फिर कारगिल युद्ध में 13 जम्‍मू एवं कश्‍मीर राइफल्‍स का नेतृत्‍व किया। कारगिल वॉर में उनके कभी न भूलने वाले योगदान के लिए उन्‍हें सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से अगस्‍त 1999 को सम्‍मानित किया गया।

जब कहा, 'ये दिल मांगे मोर'

जब कहा, 'ये दिल मांगे मोर'

20 जून 1999 को कैप्‍टन बत्रा ने कारगिल की प्‍वाइंट 5140 से दुश्‍मनों को खदेड़ने के लिए अभियान छेड़ा और कई घंटों की गोलीबारी के बाद आखिरकार वह अपने मिशन में कामयाब हो गए। इस जीत के बाद जब उनकी प्रतिक्रिया ली गई तो उन्‍होंने जवाब दिया, 'ये दिल मांगे मोर,' बस यहीं से इन लाइनों को पहचान मिल गई।

कारगिल युद्ध में बन गया था विजयी नारा

कारगिल युद्ध में बन गया था विजयी नारा

'ये दिल मांगे मोर,' देखते ही देखते यह लाइनें कारगिल में दुश्‍मनों के लिए आफत बन गईं और हर तरफ बस 'यह दिल मांगे मोर' ही सुनाई देता था।

पाक ने दिया कोडनेम शेरशाह

पाक ने दिया कोडनेम शेरशाह

जिस समय कारगिल वॉर चल रहा था कैप्‍टन बत्रा दुश्‍मनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती में तब्‍दील हो गए थे। ऐसे में पाकिस्‍तान की ओर से उनके लिए एक कोडनेम रखा गया और यह कोडनेम कुछ और नहीं बल्कि उनका निकनेम शेरशाह था। इस बात की जानकार खुद कैप्‍टन बत्रा ने युद्ध के दौरान ही दिए गए एक इंटरव्‍यू में दी थी।

रणनीति का योद्धा

रणनीति का योद्धा

कारगिल वॉर में 13 जेएके राइफल्‍स के ऑफिसर कैप्‍टन विक्रम बत्रा के साथियों की मानें तो कैप्‍टन बत्रा युद्ध मैदान में रणनीति का एक ऐसा योद्धा था जो अपने दुश्‍मनों को अपनी चाल से मात दे सकता था। यह कैप्‍टन बत्रा की अगुवाई में उनकी डेल्‍टा कंपनी ने कारगिल वॉर के समय प्‍वाइंट 5140, प्‍वाइंट 4750 और प्‍वाइंट 4875 को दुश्‍मन के कब्‍जे से छुड़ाने में अहम भूमिका अदा की थी।

कैप्‍टन बत्रा के आखिरी शब्‍द

कैप्‍टन बत्रा के आखिरी शब्‍द

सात जुलाई 1999 को प्‍वाइंट 4875 पर मौजूद दुश्‍मनों को कैप्‍टन बत्रा ने मार गिराया लेकिन इसके साथ ही तड़के भारतीय सेना का यह जाबांज सिपाही को शहादत हासिल हो गई। 'जय माता दी' कैप्‍टन बत्रा के आखिरी शब्‍द थे। (फोटो फेसबुक)

पर्दे पर जिंदा हुई शहादत

पर्दे पर जिंदा हुई शहादत

जेपी दत्‍ता की फिल्‍म एलओसी में बॉलीवुड एक्‍टर अभिषेक बच्‍चन ने कैप्‍टन विक्रम बत्रा का किरदार अदा किया था।

Comments
English summary
Kargil war hero Captain Vikram Batra who attained martyrdom on 7th July 1999 during Kargil war, would have been 42 years old today. Know few facts about his real hero.
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