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दूसरों को दुआएं देने वाले किन्नर को कोई नहीं देता दुआ

By Ians Hindi
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नई दिल्ली। किन्नर समुदाय को देश में 'तृतीय लिंग' के रूप में संवैधानिक मान्यता मिले हुए भले ही एक वर्ष बीत गया हो, लेकिन अभी भी समाज में किन्नरों की दशा में कोई खास सुधार नहीं आया है। इसमें कोई दोराय नहीं कि किन्नर समुदाय आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर पिछड़ा हुआ है। इन्हें अभी भी हीन और तिरस्कृत दृष्टि से देखा जाता है।

किन्नरों के प्रति समाज की इसी सोच को बताते हुए पश्चिम बंगाल में किन्नरों के हित में सक्रिय 'एसोसिएसन ऑफ ट्रांसजेंडर' की कार्यकर्ता रंजीता सिन्हा कहती हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के इस ऐतिहासिक फैसले से समाज में हमारी दशा पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। उनका हमारे साथ व्यवहार नहीं बदला है, क्योंकि सोच एक दिन या एक साल में नहीं बदलती। जरूरत है लोगों के नजरिए को बदलने की।

रंजीता की ये बातें उस कड़वी सच्चाई की तरह है, जिसे समाज जानता तो है लेकिन स्वीकृत नहीं करना चाहता। हमें रोजमर्रा की जिंदगी में ऐसे कई लोगों के उदाहरण देखने को मिलेंगे, जो किन्नरों को देखते ही अपने नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं।

देश में किन्नर समुदाय के संघर्ष में अहम भूमिका निभाने वाली लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने आईएएनएस को बताया, "दोष आंख का नहीं, नजरिए का है। लोगों को नजरिया बदलने की जरूरत है। जिस दिन यह बदला, सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।"

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किन्नर रेशमा कहती हैं कि अच्छा लगता है, जब प्रतिवर्ष किन्नर दिवस मनाया जाता है। इससे समाज में हमारे वजूद का पता चलता है। इससे खुशी मिलती है।

किन्नर प्रेमलता का मानना है कि किन्नर आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं। इसलिए इन्हें समाज में हर स्तर पर आरक्षण देना चाहिए। मसलन, स्कूलों, कॉलेजों में किन्नरों की शिक्षा-दीक्षा से लेकर नौकरियों तक में आरक्षण की जरूरत है। उन्होंने कहा, "सार्वजनिक स्थलों व कार्यालयों में हमारे लिए अलग से शौचालय बनाने का मुद्दा हम काफी सालों से उठा रहे हैं, लेकिन अभी तक इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।"

सिस्टम को जिम्मेदार बताया

इस दिशा में सरकार व देश की प्रणाली को जिम्मेदार ठहराते हुए किन्नर रंजीता कहती हैं कि मिजोरम सहित कुछ पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में कहा जाता है कि वहां किन्नर नहीं हैं। यह पूरी तरह से नौकरशाही की गलती है। हालांकि यूजीसी अच्छे कानून लेकर आई है, पर इसमें वक्त लगेगा।

सर्वोच्च न्यायालय में किन्नरों को तृतीय लिंग का दर्जा देने के लिए याचिका दायर करने वाली किन्नर कार्यकर्ता गौरी सावंत ने भी किन्नरों की दिशा में कई ठोस नीतियों के निर्माण का हवाला दिया है। वहीं, दिल्ली में किन्नर संघ की संचालिका रुद्राणी क्षेत्री का कहना है कि न्यायपालिका को इस दिशा में सजग व प्रखर होना पड़ेगा।

भले ही भारत किन्नर समुदाय को तृतीय लिंग का दर्जा देने वाला पहला देश बन गया हो लेकिन अभी भी विश्व के अन्य देशों के मुकाबले भारत में किन्नरों की दशा दयनीय है।

किन्नर की दयनीय स्थिति पर स्वामी अग्निवेश का कहना है, "किन्नर समुदाय के लोग नृत्य शैली में पारंगत होते हैं, इसलिए इस क्षेत्र में यदि इन्हें सही प्रशिक्षण दिया जाए तो ये बेहतर काम कर अपना भविष्य संवार सकते हैं।"

महिला आयोग करता है पैरवी

किन्नर रंजीता सिन्हा कहती हैं कि जिस तरह से महिला आयोग महिलाओं से जुड़े मामलों व मुद्दों पर नजर रखता है, उसके लिए पैरवी करता है। ठीक उसी तरह से किन्नरों के अधिकारों व सम्मान के लिए भी एक संस्था या आयोग का गठन किया जाए। उन्होंने राजनीति में किन्नरों की भागीदारी की भी बात कही कि जब तक राजनीति में किन्नरों को स्थान नहीं मिलेगा, उनके हित में नीतियां बनाने में ढील बरती जाएगी।

ऐसा नहीं है कि किन्नरों की दशा को सुधारने की दिशा में कोई काम नहीं हुआ हो। कुछ कारगर कदम उठाए गए हैं। तमिलनाडु में किन्नर अधिकारों के लिए संघर्षरत सत्यश्री शर्मिला को किन्नर श्रेणी में देश का पहला पासपोर्ट जारी किया गया है।

अपना पासपोर्ट दिखाते हुए सत्यश्री ने बताया, "यह मेरी जीत है। मेरी पहचान है।"

साफ है कि थोड़ा हुआ है, बहुत कुछ करना बाकी है। किन्नरों के कल्याण के लिए सिर्फ नीतियां बनाने से कुछ नहीं होगा। जरूरत है, उन्हें कारगर ढंग से लागू करने की।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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English summary
Sad part of transgenders' lives. The eunuchs in India are living in very bad condition.
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