यह है मॉडर्न इंडिया की अनदेखी कहानी, आप भी जरूर पढ़ें
भावना तिवारी
नई दिल्ली। मोबाइल है लेकिन उसे चार्ज करने के लिए बिजली आने का इंतजार करना पड़ता है। फेसबुक, ट्विटर जैसे तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बारे में जानकारी है, लेकिन उनसे जुड़ नहीं पा रहे। कोचिंग या स्कूल-कॉलेज जाते हैं तो आने-जाने में ही सारा समय खप जाता है। बस, ट्रक और ट्रैक्टर या बैलगाड़ी से आने-जाने में कई मुसीबतें झेलनी पड़ती है।
मॉडर्न इंडिया और सरकारी उदासीनता
महिलाओं को शौच जाने के लिए अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता है। आपको इन गांवों में मॉडर्न इंडिया और सरकारी उदासीनता का यह विरोधाभास आसानी से दिख जाएगा। एक तरफ कवायद चलती है कि गांवों से पलायन रुकना चाहिए, विकास का रास्ता अपने निवास स्थल से बनाना चाहिए, दूसरी तरफ ऐसे भी हालात हैं गांवों के जहां विकास के नाम पर सिर्फ बातें हैं। हर मौसम इनके लिए मुसीबत लेकर आता है। बरसात में मलेरिया, डेंगू, डायरिया, पीलिया जैसी बीमारियों का प्रकोप तो जाड़ों में हाड़कंपाउ ठंड से जान को खतरा। गर्मी में लू लगकर मुसीबत में फंसना।
गांवों में रहने वालों की जैसे नियति ही बन गई है। ऐसा नहीं है कि गांव का यह जो नजारा हमें दिख रहा है, हर तरफ वैसा ही है। एक ही गांव में बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो आलीशान जिंदगी का लुत्फ उठाते नजर आते हैं। उनके लिए हर सुख सुविधा है, खूब सारी जमीन है। जमीन उनकी, मेहनत किसी की और मौज उनकी। बिजली नहीं है तो उसका वैकल्पिक उपाय भी मौजूद है।
नेटवर्क नहीं है तो दूसरा फोन है और भी बहुत कुछ। दूसरी तरफ मेहनतकश के सामने कई तरह की दिक्कतें। कहीं जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद भी लोग जमींदार बने बैठे हैं तो किसी-किसी के पास अपनी ही जमीन का मालिकाना हक भी नहीं। बिल्कुल किसी कहानी के निरीह चरित्र की तरह, जिसे किसी भी तरह जीवन व्यतीत करना है।
गांवों का विकास!
भारत को गांवों का देश कहा जाता है। गांधी जी ने भी कहा था कि हमारे देश का कल्याण तभी संभव है जब गांवों का विकास होगा। सवाल ये कि गांवों का विकास कैस होगा और कौन करेगा? इस बारे में जानकार कहते हैं कि सबसे पहले मूल जरूरतों को पूरा किए जाने की जरूरत है।
आज भी हजारों गांव ऐसे हैं जहां महिलाओं को शौच जाने के लिए अंधेरा होने का इंतजार करना पड़ता है। कितनी बड़ी विडंबना है यह। हाल ही में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि शौचालय की उचित व्यवस्था न होने के कारण महिलाएं बीमारी से ग्रसित हो रही हैं।
डर के साये में महिलाएं
एक आश्चर्यजनक तथ्य तो यह सामने आया था कि कई महिलाएं डर के मारे पानी नहीं पीतीं। पानी पिया तो फिर शौच कैसे जाएंगी! अब इसे बदलते भारत कि तस्वीर कहेंगे तो इसमें बेसुरे रंगों के सिवा कुछ नहीं। जरूरत बस इस बात की है कि इस बदलती तस्वीर को सही रंगों से भरा जाए ताकि यहां रह रहे लोगों की जिंदगी में कुछ खूबसूरत रंग बिखर सकें।
गांवों में विकास की हरियाली
असल में गांवों की सिर्फ नकारात्मक तस्वीर ही नहीं है। गांवों में विकास की हरियाली भी है। आधुनिकता की भी छाप है, लेकिन परेशानियों के मुकाबले बहुत कम। निजी कंपनियों ने कैसे अपने मोबाइल गांव-गांव तक पहुंचा दिए। कैसे आज फोन जिंदगी में अनिवार्य वस्तु बन गया है जबकि कुछ वक्त पहले तक यह विलासिता की श्रेणी में आता था। फिर क्यों मूलभूत सुविधाएं गांवों में नहीं पहुंचाई जा सकतीं?
तालमेल का अभाव
असल में कई बार तालमेल का अभाव दिखता है, तो कई बार नीति नियंता ही गांवों की अनदेखी करते हैं। मीडिया भी कुछ अलग नहीं है, उसके पास अपनी मजबूरियां हैं जैसे- कभी टीआरपी तो कभी टारगेट ऑडिएंस। क्यों दिखाए गांवों की तस्वीर? हां, कभी-कभी पीपली लाइव की तरह कोई घटना बन ही जाती है, जो मीडिया में आए। वैसे असल जिंदगी का डौंडीया खेडा तो याद होगा ही आप सभी को, आखिर सोने की खोज को कौन भूल सकता है।
सिर्फ भरोसे की जरूरत...
ऐसे में बस उम्मीद ही की जा सकती है कि ये गांव सिर्फ कहानियों में ही न याद किये जाएं बल्कि असल में भी इन्हें याद रखा जाए बस कभी फिल्म और कभी ऐसी गलतफहमियां बस इन्हीं सब में सिमटकर रह जाता है एक गांव। लेकिन ऐसा नहीं कि ये गांव कहीं पीछे हैं, यहां बहुत कुछ ऐसा है जिसे सिर्फ भरोसे की जरूरत है और हौसलों की उड़ान तो दूर उंचे आसमान में लेकर जाती है।