'मौन' नहीं हैं मनमोहन सिंह, पढ़ें पूर्व पीएम के ये 10 राज
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को को यूपीए के दस वर्षों के कार्यकाल के दौरान काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। उनकी हमेशा शांत रहने वाली छवि ने कहीं न कहीं उन्हें एक कमजोर प्रधानमंत्री के तौर पर खड़ा कर दिया। देश के प्रधानमंत्री होने के बावजूद मनमोहन सिंह की निर्णय लेने की क्षमता और कम बोलने की वजह से उनका नाम 'मौनमोहन सिंह' भी रख दिया गया।
लेकिन मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने अपनी किताब ‘स्ट्रिक्टली पर्सनल: मनमोहन एंड गुरुशरण' में मनमोहन सिंह के कई राज से लोगों को रूबरू कराया है और कहीं न कहीं उनकी कमजोर छवि को तोड़ने की कोशिश की है।
तो बढ़ाइए स्लाइडल और पढ़िए मनमोहन सिंह के 10 राज, जो उनकी बेटी ने अपनी किताब में शेयर किया है।
डॉक्टरी की पढ़ाई में नहीं लगा मन
मनमोहन सिंह के पिता चाहते थे कि बेटा डॉक्टर बने। लिहाजा मनमोहन सिंह ने अप्रैल, 1948 में अमृतसर के खालसा कॉलेज के प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला भी लिया लेकिन कुछ ही महीनों के बाद पढ़ाई में दिलचस्पी न लगने की वजह से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी।
1948 में हिंदू कॉलेज में आए
पढ़ाई छोड़ने के बाद मनमोहन सिंह अपने पिता की दुकान पर हाथ बँटाने लगे लेकिन यहां भी उनका मन नहीं लगा। ऐसे में मनमोहन सिंह ने तय किया कि वो फिर से कॉलेज में पढ़ने जाएँगे। इसके बाद उन्होंने सिंतबर, 1948 में हिंदू कॉलेज में दाखिला लिया।
अप्रत्याशित था वित्त मंत्री बनना
1991 में जिस वक्त उन्हें देश का वित्त मंत्री बनाए जाने की जानकारी दी गई उस समय वह सो रहे थे। पीटीआई के मुताबिक मनमोहन सिंह के लिए ही यह फैसला उनके लिए अप्रत्याशित था। जब प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीसी एलेक्जेंडर का फोन आया उस वक्त मनमोहन सिंह सो रहे थे।
घरेलु काम नहीं करते हैं
मनमोहन सिंह कोई घरेलू काम नहीं कर पाते हैं। वे न तो अंडा उबाल सकते हैं और न ही टेलीविजन चालू कर सकते हैं।
इंदिरा गांधी से इस कदम की उम्मीद नहीं थी
1975 के आपातकाल का जिक्र करते हुए दमन ने किताब में लिखा है कि इससे मनमोहन सिंह भी आश्चर्यचकित रह गए थे। उनके अनुसार, देश में अशांति का माहौल था लेकिन किसी को भी इंदिरा गांधी से इस तरह के कदम की अपेक्षा नहीं थी।
गरीब और गरीबी विषय में थी दिलचस्पी
मनमोहन सिंह ने बाद में अर्थशास्त्र को अपना विषय बनाया। उनके मुताबिक उन्हें गरीब और गरीबी दोनों विषय में दिलचस्पी थी, वे जानना चाहते थे कि कोई देश गरीब क्यों है और कोई अमीर क्यों हो जाता है? इसी जिज्ञासा ने अर्थशास्त्र में उनकी दिलचस्पी जगाई।
आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा था
वे पढ़ाई के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे। लेकिन वहां, आर्थिक तंगी की वजह से उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। हर साल उनके रहने और पढ़ने का ख़र्च करीब 600 पाउंड था, लेकिन उन्हें स्कॉलरशिप में 160 पाउंड मिलते थे।
आर्थिक तंगी की वजह से मांगा था उधार
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान मनमोहन सिंह ने अपने एक दोस्त से दो साल तक 25 पाउंड सालाना का कर्ज भी मांगा था, लेकिन दोस्त ने महज 3 पाउंड ही भेजे थे।
मौन नहीं हैं मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंह की पहचान भले मौनमोहन की बनी हो, लेकिन अपने दोस्तों के बीच उन्हें मज़ाक करने की आदत भी रही है। इतना ही नहीं, उन्हें लोगों को निकनेम देने में खूब मजा आता रहा है। यहाँ तक कि अपनी पत्नी गुरशरण कौर का निकनेम उन्होंने गुरुदेव रखा हुआ है।
विभाजन में उजड़ गया था घर
मनमोहन के जन्म के कुछ साल बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था। अभी उनका परिवार संभलने की कोशिश ही कर रहा था कि विभाजन ने उनके घर को बसने से पहले ही उजाड़ दिया। साथ ही विभाजन की भागा-भागी में उनके पिता भी परिवार से बिछड़ गए थे।