जानिए इंदिरा गांधी की अंत्योष्टि से जुड़ी चौंकाने वाली बातें
नई
दिल्ली
(विवेक
शुक्ला)।
पूर्व
प्रधानमंत्री
इंदिरा
गांधी
की
पुण्य
तिथि
31
अक्टूबर
को
यानी
आज
मनायी
जा
रही
है।
देश
भर
में
श्रद्धांजलि
सभाएं,
सेमिनार
और
उनके
जीवन
पर
संगोष्ठियां
आयोजित
की
जा
रही
हैं।
इंदिरा
जी
के
जीवन
के
बारे
में
तो
आपने
भी
बहुत
पढ़ा
होगा,
लेकिन
हम
आपको
यहां
बताने
जा
रहे
हैं
उनकी
अंत्योष्टि
से
जुड़े
वो
तथ्य
जो
शायद
आप
नहीं
जानते
होंगे।
क्यों नहीं आये थे रीगन और कास्त्रो?
क्यूबा के शिखर नेता फिदेल कास्त्रो के इंदिरा गांधी की अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो पाने से भारत निराश था। उधर, अमेरिकी टोली में न राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन थे और न ही उपराष्ट्रपति जॉर्ज शुल्ज। सिर्फ उपराष्ट्रपति जॉर्ज बुश की अगुवाई में एक छोटी सी टोली आई थी 3 नवंबर को हुए अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए।
बुश आगे चलकर अमेरिका के राष्ट्रपति बने। कास्त्रो के इस गमगीन मौके पर न आने को लेकर हैरत इसलिए जताई गई थी क्योंकि इंदिरा गांधी और क्यूबा के नेता गुटनिरपेक्ष आंदोलन के शिखर नेता थे। एक साल पहले यानी 1983 मेंराजधानी के विज्ञान भवन में गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन के श्रीगणेश के दौरान कास्त्रो ने इंदिरा गांधी को अपने गले लगाया था। उस लम्हें की तस्वीर को सभी अखबारों ने शानदार तरीके से छापा था।
बहरहाल,
कास्त्रोके
न
आने
का
कारण
ये
बताया
गया
कि
वे
हवाना
में
चल
रहे
एक
अहम
सम्मेलन
में
भाग
लेने
के
कारण
इंदिरा
जी
के
अंतिम
संस्कार
में
शामिल
नहीं
हो
पाए।
एक सरदार पर थी अंत्योष्टि स्थल की जिम्मेदारी
इंदिरा गांधी गुट निरपेक्ष आंदोलन की शिखर नेता थीं, इसलिए आंदोलन के 127 देशों के राष्ट्राध्यक्ष, उप राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अंत्येष्टि में पहुंचे। यह सभी जानते हैं कि एक सरदार सुरक्षागार्ड (बेअंत सिंह और सतवंत सिंह) ने इंदिरा की हत्या की। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अत्येष्टि स्थल शक्ति स्थल को तैयार करवाने की जिम्मेदारी भी एक सरदार के कंधे पर थी। वो हैं केन्द्रीय मंत्री बूटा सिंह। उन्होंने दिन-रात एक करके शक्ति स्थल को तैयार करवाया।
एक ही व्यक्ति ने करवायी नेहरू-इंदिरा की अंत्योष्टि
डा. गोस्वामी गिरधारी लाल, वो नाम है, जिनकी देखरेख में इंदिरा गांधी की अंत्येष्टि हुई। आपको जानकर हैरत होगी कि यही वो व्यक्ति हैं जिन्होंने इंदिरा के पिता जवाहर लाल नेहरु की भी अंत्येष्टि करवाई थी। वे राजधानी के बिड़ला मंदिर से जुड़े थे। यहां पर बताना उचित रहेगा कि उनके पुत्र दिल्ली सरकार में मंत्री थे।
विदेशी
नेता
फूट-फूट
कर
रोए
और
बोले
मेरी
बहन
नहीं
रहीं
देश रोया था यह तो सब जानते हैं लेकिन एक विदेशी नेता भी उनकी अंत्योष्टि पर राये यह शायद कोई नहीं जानता। डा. गोस्वामी गिरधारी लाल ने एक साक्षात्कार में बताया था कि फिलीस्तीन लिबरेशन फ्रंट के नेता यासर अऱाफात शक्तिस्थल पर फूट-फूटकर रो रहे थे। जाम्बिया के राष्ट्रपति कैनेथकोंडा भी अपने आंसू रोक नहीं पा रहे थे।
अराफात
बहुत
सम्मान
करते
थे
इंदिरा
गांधी
का
क्योंकि
वे
फिलीस्तीन
मसले
पर
उऩका
साथ
देती
थीं।
वे
बार-बार
कह
रहे
थे,
'मेरी
बहन
नहीं
रही'।
श्रीलंका
के
राष्ट्रपति
जे.
आर.
जयवर्धने
भी
अंत्येषिट
में
भाग
लेने
पहुंचे।
इंदिरा
गांधी
ने
उन्हें
पश्चिमी
देशों
का
कठपुतली
कहा
था।
इंदिरा
गांधी
ने
उनको
लेकर
कई
बार
कुछ
इस
तरह
की
टिप्पणियां
की
थीं,
जिसके
चलते
दोनों
नेताओं
के
संबंधों
में
कहीं
न
कहीं
खटास
आ
गई
थी।
लेकिन
इस
मौके
पर
उनकी
आंखें
भी
नम
थीं।
किस पाक नेता के आने से मच गई थी हलचल?
अंत्येष्टि स्थल पर अचानक से पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह और राष्ट्रपति जिया उल हक के आने से शोकाकुल लोगों के बीच हलचल मच गई थी। इंदिरा गांधी को शक था कि उस दौर में चल रहे खालिस्तानआँदोलन को गति देने में पाकिस्तान की भूमिका है। जिया पहले तीन मूर्ति भवन भी गए थे इंदिरा जी के शव पर फूल चढ़ाने के लिए।
गुस्से में थीं ब्रिटेन की प्रथम महिला प्रधानमंत्री
ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर भी तीन मूर्ति भवन गईं थीं इंदिरा जी के शोकाकुल परिवार से मिलने के लिए। वे शाम को शक्ति स्थल पर भी मौजूद थीं। थैचर ने यहां पहुंचने पर पत्रकारों से बातचीत के दौरान अपने देश में उन लोगों की कठोर शब्दों में निंदा की थी जिन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जश्न मनाया था। मार्गरेट उस वक्त हत्यारों के ऊपर बेहद गुस्से में दिखाई दे रही थीं।
बीमार थीं मदर टेरेसा फिर भी आयीं
अंत्येष्टि का कार्यक्रम शुरू होने से काफी पहले मदर टेरेसा शक्ति स्थल पहुंच गईं थीं। 1979 के नोबेल पुरस्कार विजेता अस्वस्थता के बावजूद आईं थी। जुबिन मेहता भी थे।
कहां खड़े थे अमिताभ बच्चन
बॉलीवुड
से
राज
कपूर,
सुनील
दत्त
और
अमिताभ
बच्चन
भी
वहां
मौजूद
थे।
अमिताभ
बच्चन
तो
लगातार
इंदिरा
जी
के
शव
के
समीप
ही
खड़े
थे,
जैसे
कोई
बेटा
अपनी
मां
के
अंतिम
वक्त
पर
खड़ा
हो।
जब
से
पार्थिव
शरीर
को
तीन
मूर्ति
भवन
में
रखा
गया
था
जनता
के
दर्शनों
के
लिए
उस
वक्त
भी
अमिताभ
निरंतर
वहीं
खड़े
रहे।
अमिताभ
बच्चन
को
तो
इंदिरा
गांधी
पुत्र
ही
मानती
थीं।
गांधी
परिवार
के
बच्चन
परिवार
से
संबंधों
को
कौन
नहीं
जानता।
इंदिरा के रिश्तेदार जो वहां मौजूद थे
उधर, नेहरु-गांधी परिवार की तरफ से अंत्येष्टि के वक्त उनकी बुआ विजयलक्ष्मी पंडित पहुंची थीं। हालांकि दोनों के संबंध बरसों से कटु चल रहे थे। विजयलक्ष्मी पंडित ने जनता पार्टी के गठन के दौर में इंदिरा गांधी की कार्यशैली और उऩके देश में इमरजेंसी थोपने के फैसले की कई मंचों से कठोर निंदा की थी। बी.के.नेहरु भी मौजूद थे। वे बड़े नौकरशाह रह चुके थे। वे रिश्ते में इंदिरा गांधी के भाई थे।
कत्लेआम की वजह से बहुत लोग नहीं पहुंच पाये
तीन मूर्ति से इंदिरा गांधी के शव को राजधानी के मुख्य चौराहों से शक्ति स्थल लाया गया। समूचे रास्ते पर लाखों लोग सड़क के दोनों तरफ खड़े थे इंदिरा जी के दर्शनों के लिए। हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि राजधानी में सिखों के खिलाफ हुए कत्लेआम के कारण बहुत से लोग शवयात्रा के मार्ग पर नहीं भी पहुंचे। तीन मूर्ति भवन सेशक्तिस्थल पर उनके शव को सेना के शव वाहन में रखने में कंधा देने वालों में फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉह भी थे।
अंत्येष्टि का कार्यक्रम 3.55 बजे शुरू हुआ। शक्ति स्थल पर ‘इंदिरा गांधी अमर रहो' के नारे लग रहे थे। राजीव गांधी ने अपनी मां की चिता को मुखागनि दी। वहां पर राहुल गांधी भी खड़े थे सफेद-कुर्ता पायजामा पहने हुए। योग गुरु धीरेन्द्र ब्रहमचारी भी थे। राजीव गांधी के मुखागनि देने के कुछ देर के बाद चिता के पास एनटीरामाराव भी अचानक से पहुंच गए। वे गेरुए वस्त्र पहने हुए थे।
करीब साढ़े पाँच बजे तक चिता ठंडी पड़ने लगी थी। देश ने अपनी बेहद लोकप्रिय नेता को अंतिम विदाई दे दी। अँधेरा छाने लगा था। फिजाओं में ठंडक महसूस की जा रही थी। उसके बाद शोक में डूबे लोग अपने-अपने घरों के लिये रवाना हो गये और इंदिरा जी की अंत्योष्टि इतिहास के पन्नों में दफ्न हो गई।
आगे पढ़ें- वाह रे हिंदूस्तान, इंदिरा कांग्रेस की तो पटेल भाजपा के हो गये।