इस फैसले के बाद CM अखिलेश की लोकप्रियता का हो जाएगा 'THE END' ?
लखनऊ। शिवपाल, मुलायम एवं सूबे के मुखिया अखिलेश के बीच चल रही तनातनी की खबरों से आप सभी मुखातिब हैं। हालांकि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर एक समारोह के दौरान जब शिवपाल के बयान पर सपा सुप्रीमों मुलायम ने बेटे अखिलेश के ऊपर तिउरी काढ़ी तो अखिलेश मान-मनौव्वल के लिए भी पहुंच गए।
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लेकिन वक्त गुजरा और मुलायम ने शिवपाल और अखिलेश के बीच गहरी हो रहीं राजनीतिक खाईयों को दूर करने का प्रयास करते हुए कहा कि सब कुछ आठ दिनों के भीतर ठीक करो, वरना मैं करूंगा। लेकिन ऐसे वक्त में सीएम अखिलेश का एक और फैसला राजनीतिक अनुभव कह दें या फिर पार्टी में अहमियत अधिक होने की भेंट चढ़ने जा रहा है। जी हां शिवपाल यादव द्वारा सपा में कौमी एकता दल के विलय के संदर्भ में बात कर रहे हैं हम। हालांकि इस फैसले के विरोध में सीएम अखिलेश खुलकर सामने आ गए थे।
अखिलेश वाकई सिर्फ लर्निंग सीएम हैं?
लेकिन अब उसी फैसले पर मुहरबंदी होने की चर्चा से लोगों में इस बात की सुगबुगाहट है कि अगर ऐसा होता है तो मतलब साफ है कि अखिलेश वाकई सिर्फ लर्निंग सीएम हैं....राजनीति सीखने के लिए उन्हें सूबे की कमान सौंपी गई थी। जबकि इसकी बागडोर असल में दूसरे लोगों के हाथों में ही है।
जल्द शुरू हो सकती है विलय की चर्चा
अखिलेश को डांटने और शिवपाल को दुलारने के क्रम के बाद कौमी एकता दल कके सपा में विलय की चर्चा फिर से शुरू हो गई है। जानकारी की मानें तो सपा में कहा जा रहा है कि जल्द ही इस बात की घोषणा भी की जा सकती है। जिससे शिवपाल की नाराजगी को दूर करने के साथ ही प्रदेश में मुस्लिम वोटों में हो रही सेंधमारी पर लगाम कसी जा सके।
जैसा होगा नेता जी का आदेश, वैसा होगा!
जनता के मुताबिक राजनीतिक अहम् के चलते वरिष्ठ नेताओं के द्वारा सीएम अखिलेश के फैसलों पर बार-बार कैंची चला दी जाती है। जो कि बिलकुल भी सही नहीं है। वहीं शिवपाल यादव का कौमी एकता दल के विलय पर कहना है कि जैसा नेता जी का आदेश होगा, वैसा होगा। मतलब साफ है कि मुलायम शिवपाल यादव के फैसले में समर्थन में हैं।
''मुलायम की टेंशन टाइट''
आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में नए सियासी समीकरणों को देखते हुए मुलायम को आगामी 2017 विधानसभा चुनावों की फिक्र सताने लगी है। प्रदेश की 15 मुस्लिम पार्टियों ने मिलकर फ्रंट बनाने का प्रयास कर रही हैं। हालांकि इनका बड़े स्तर पर तो कोई नाम एवं पहचान नहीं है लेकिन सीमित इलाकों में ये मुस्लिम मतदाताओं के बीच काफी अहमियत रखती हैं। फ्रंट के संयोजक, मुस्लिम लीग के सुलेमान इस बात पर तवज्जो अधिक दे रहे हैं कि किसी भी तरह से मुस्लिमत में बिखराव की स्थिति न हो। जिसे देखकर मुलायम को ये चिंता सता रही है कि उनका पारंपरिक मतदाता उनके हाथों से फिसल सकता है।
आंकड़ों ने बढ़ाई सपा खेमे की फिक्र
प्रदेश की कुल आबादी में 19 फीसदी की हिस्सेदारी मुसलमानों की है। जिसमें से एक बड़ा वर्ग मुलायम से नाराज दिखाई पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी मायावती के साथ गठबंधन की मंशा जाहिर कर चुके हैं। कट्टरता की वजह से ओवैसी को समर्थन मिलेगा जिसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन समर्थन से सपा कमजोर पड़ेगी ये भी एक तय बात है।
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वहीं असदुद्दीन के प्लान के मुताबिक वे दलित + मुसलमान का मतलब = जीत समझ रहे हैं। हालांकि प्रदेश में 21 फीसदी दलित वोट बैंक और 19 फीसदी मुसलमान वोटबैंक के मिल जाने के बाद इस गठबंधन के मजबूत स्थिति में आने के आसार जरूर हैं। लेकिन समूचा वोटबैंक किसी भी एक पार्टी का नहीं है। जिसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसमें से मुसलमान वोटबैंक सपा के साथ भी खिसकेगा और दलित वोटबैंक भाजपा के साथ भी जाने की उम्मीद है। कुल मिलाकर बड़ा खामियाजा सपा को ही भुगतना पड़ेगा, इसे देखते हुए मुलायम हर संभव कोशिश में जुटे हैं कि किसी तरह से उन्हें नुकसान न हो।
समीकरणों में क्या उतार-चढ़ाव आता है?
हालांकि देखना दिलचस्प होगा कि कौन किसके साथ विलय करता है और समीकरणों में क्या उतार-चढ़ाव आता है। क्योंकि इन्हीं समीकरणों के आधार चुनावी नतीजों का आंकलन किया जाएगा।