मुलायम बनाम अखिलेश: बुरा है 'साइकिल' का इतिहास, बार-बार होती है पंचर
आंध्र प्रदेश में इसी 'साइकिल' के लिए चंद्रबाबू नायडू ने 1995 में अपने ससुर एनटी रामाराव से पार्टी की कमान छीन ली थी।
लखनऊ। सपा के अंदर इस समय वर्चस्व की लड़ाई चल रही है, रविवार को राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को पार्टी के महासचिव और कार्यकर्ताओं ने अपना बिग बॉस चुन लिया है और मुलायम सिंह को भीष्म पितामह का रोल दे दिया गया है, जिसके बाद अब लड़ाई एसपी के चुनाव चिह्न 'साइकिल' पर अटक गई है, जिसके लिए मुलायम आज चुनाव आयोग से मिलने वाले हैं। सपा दंगल: 'जलवा कायम, नाम मुलायम'...क्या सच में अब बीती बात?
चुनाव चिह्न 'साइकिल' के लिए झगड़ा
अब मुलायम बनाम अखिलेश की इस लड़ाई में कौन जीतेगा, ये तो आने वाला वक्त बताएगा लेकिन यहां हम आपको बताते हैं कि ये कोई पहला मौका नहीं है जब चुनाव चिह्न 'साइकिल' के लिए झगड़ा हो रहा है।
चंद्रबाबू नायडू ने 1995 में अपने ससुर एनटी रामाराव से पार्टी की कमान छीनी थी
इतिहास के सियासी पन्नों को अगर पलट कर देखेंगे तो आप पाएंगे कि 'साइकिल' को लोग अपशगुन कहते हैं क्योंकि आंध्र प्रदेश में इसी 'साइकिल' के लिए चंद्रबाबू नायडू ने 1995 में अपने ससुर एनटी रामाराव से पार्टी की कमान छीन ली थी।
तेलुगू देशम पार्टी का चुनाव चिन्ह 'साइकिल'
आपको बता दें कि एनटी रामाराव जिस तेलुगू देशम पार्टी के नेता थे, उसका चुनाव चिन्ह भी 'साइकिल' ही है, एनटी रामाराव के ही दम पर आंध्रप्रदेश की राजनीति में चमके नायडू ने उन्हें ही वक्त आने पर साइड लाइन कर दिया और पूरी पार्टी पर खुद का कब्जा कर लिया।
सपा की 'साइकिल' रफ्तार पकड़ती है या फिर 'पंचर' होती है
ठीक वैसी ही बानगी आज यूपी की सियासत में दिख रही है, जहां बेटे अखिलेश ने अपने पिता मुलायम की सत्ता पर कब्जा कर लिया है। सत्ता खोने पर एनटीआर, चंद्रबाबू नायडू को पीठ में छुरा घोंपने वाला औरंगजेब कहते थे, आज इसी तरह के शब्द सीएम अखिलेश यादव के लिए प्रयोग हो रहे हैं, फिलहाल देखते हैं कि सपा की 'साइकिल' रफ्तार पकड़ती है या फिर 'पंचर' हो जाती है।