इतिहास के पन्नों से- बात देश के पहले महिला मेडिकल कालेज की
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) साल 1918। जरा सोचिए कि तब देश में महिला शिक्षा की हालत किस तरह की होगी। जनाब,तब दिल्ली में लेडी हार्डिग मेडिकल कालेज स्थापित हो गया था। इसकी खासियत यह थी और है कि इधर सिर्फ लड़कियों को ही दाखिला मिल सकता था। ये देश का महिलाओं का पहला मेडिकल कालेज था।
क्नाट प्लेस के करीब
राजधानी
के
दिल
कऩाट
प्लेस
से
जो
सड़क
गोल
मार्केट
की
तरफ
जाती
है
उसकी
नाक
पर
स्थित
है
यह
कालेज।
इसके
ठीक
आगे
शिवाजी
स्टेडियम
है।
करीब
60
एकड़
में
फैला
है
इस
कालेज
का
परिसर।
चारों
तरफ
हरियाली
को
आप
देख
सकते
हैं
इधर।
हालांकि
इसके
परिसर
से
निकलते
ही
आपको
राजधानी
का
कोलाहल
सुनने
को
मिल
जाएगा
पर
अंदर
का
सारा
माहौल
बेहद
सुकून
भरा
है।
चारों
तरफ
पढ़ने-लिखने
का
माहौल
है।
[इतिहास
के
पन्नों
से-
आओ
चलें
स्वामी
विवेकानंद
से
लेकर
नेताजी
के
कालेज
में]
लेड़ी हार्डिंग का रोल
इसे शुरू करवाने में भारत के तब के वाइसराय हार्डिंग की पत्नी लेडी हार्डिंग ने खासी अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए ही उनके नाम पर इस कालेज का नाम रखा गया। [इतिहास के पन्नों से- जेएनयू जाने वाली बस नंबर 615]
नई-नई सुविधाएं
हाल के सालों में इधर की प्रधानाचार्य डा. कस्तूरी अग्रवाल को भी बहुत क्रेडिट मिलता है क्योंकि उन्होंने इधऱ के मैदान को बेहतर करवाया, लाइब्रेयरी में बैठने की बेहतर व्यवस्था करवाई और सभागार बनवाया।
लाहौर से संबंध
मजे की बात ये है कि 1947 तक इधर की छात्राएं अपना सालाना इम्तिहान देने के लिए लाहौर जाती थीं। उनका इम्तिहान किंग एडवर्ड मेडिकल कालेज में होता था। तब ये कालेज पंजाब यूनिवर्सिटी का हिस्सा था। लेडी हार्डिंग मेडिकल कालेज साल 1950 में दिल्ली यूनिवर्सिर्टी का हिस्सा बना।
बेजोड़ लाइब्रेयरी
इधर कई करीब 35 साल पहले छात्रा रही डा. सुविरा गुप्ता ने कहा कि हमारे कालेज की लाइब्रेयरी बेजोड़ है। इसमें आपको मेडिकल क्षेत्र की हजारों दुर्लभ किताबें मिलती हैं। इनसे यहां की छात्राओं को बहुत लाभ होता है।
आप जब इस कालेज के परिसर का चक्कर लगाते हैं तो आपको मेन गेट पर लेडी हार्डिंग की आदमकद मूर्ति मिलती है। उसे देखकर आपके मन में सम्मान का भाव पैदा होता है। लगता है कि सारे गोरे तो खराब नहीं थे।