बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी..
आंचल श्रीवास्तव
नानी दादी की कहानियां तो याद होंगी आपको, हमारा आपका बचपन उन्ही में तो बीता है.. कभी सुंदरबन के घने जंगल तो कहीं मिट्ठू मियां की सुरीली बोली और कहीं परियों संग दूर गगन की सैर। हमारे साथी मोबाइल और एक्स बॉक्स गेम्स नहीं मोगली और सिम्बा होते थे। उन्ही के साथ बड़े हुए है हमलोग..मुझे याद है की जिस दिन पापा चंपक या नन्दन लाते थे उसी दिन वो पूरी किताब पढ़ कर कम्प्लीट कर लेती थी।
आसमां को छू लूं..क्यूंकि तुम हो हमारे प्यारे Doraemon..
इन कहानियों ने ही हमे जीने के तरीके और कई नैतिकता सिखायीं हैं.. यह भी एक प्रकार का साहित्य ही जिसे हम बाल साहित्य कहते हैं।
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क्या होता है बाल साहित्य?
छोटे बच्चों को ध्यान में रख कर लिखा गया साहित्य बाल साहित्य होता है। बाल-साहित्य लेखन की परंपरा अत्यंकत प्राचीन है। नारायण पंडित ने पंचतंत्र नामक पुस्तक में कहानियों में पशु-पक्षियों को माध्याम बनाकर बच्चों को शिक्षा प्रदान की। आचार्य विष्णु शर्मा ने पंचतन्त्र की कहानियों को लिखा है। पंचतंत्र की कहानियां भारतीय इतिहास की सबसे पुरानी कहानियों में से एक हैं। ये कहानियां पांच भागों में लिखी जाती हैं। जिन्हें जानवर के पात्रों से बयां किया जाता है| ये कहानियां बेहद आम विषयों पर लिखी जाती हैं।
बच्चों को मोरल वैल्यूज सिखाती हैं ये कहनियां
कहानियों सुनना तो बच्चों की सबसे प्यारी आदत है। कहानियों के माध्यम से ही हम बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं। बचपन में हमारी दादी, नानी हमारी मां ही हमें कहानियां सुनाती थी। कहानियां सुनाते-सुनाते कभी तो वे हमें परियों के देश ले जाती थी तो कभी सत्य जैसी यथार्थवादी वाली बातें सिखा जाती थीं।
बच्चों के लिए भी है बुक ट्रस्ट
श्री के. शंकर पिल्लंई द्वारा बाल साहित्य के संदर्भ में चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट की स्थानपना 1957 में की गई थी। इस ट्रस्ट ने बच्चों के लिए असमिया, बंगाली, हिन्दी्, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, पंजाबी, तमिल और तेलगू भाषाओं में सचित्र पुस्तीकें प्रकाशित की हैं।
इस ट्रस्ट के परिसर में ही डा. राय मेमोरी चिल्ड्र न वाचनालय तथा पुस्त कालय की स्थाकपना की गई है। जो केवल 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए है। इसमें हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा की 30,000 से अधिक पुस्तमकें हैं। इसी क्रम में सन् 1991 में शंकर आर्ट अकादमी की स्थांपना की गई है। जहॉं पर पुस्तमक, चित्र, आर्ट तथा ग्राफिक के कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
कहाँ है हमारी चंपक
चंपक का पहला संस्करण 1968 में प्रकाशित हुआ। दिल्ली प्रेस द्वारा प्रकाशित हमारी चम्पक 8 भाषाओँ में प्रकाशित होती है। दिल्ली प्रेस ने जानी मानी अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला को एक टी-शर्ट भेंट की थी जिस पर चंपक लिखा था।
चंदा मामा दूर के
चन्दामामा में भारतीय लोककथाओं, पौराणिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित कहानियाँ प्रकाशित होती हैं। 1947 में इस पत्रिका की स्थापना दक्षिण भारत के नामचीन फिल्म निर्माता बी नागी रेड्डी ने की, उनके मित्र चक्रपाणी पत्रिका के संपादक बने। 1975 से नागी रेड्डी के पुत्र विश्वनाथ इस का संपादन करते हैं। मार्च 2007 में मुम्बई स्थित सॉफ्टवेयर कंपनी जीयोडेसिक ने पत्रिका समूह का अधिग्रहण कर लिया। जुलाई 2008 में समूह ने अपनी वेबसाईट पर हिन्दी, तमिल व तेलगु में पत्रिका के पुराने अंक उपलब्ध कराने शुरू किये।
नेहरु जी की याद में नंदन
नंदन की शुरुआत 1964 में पंडित नेहरू की स्मृति मे हुई थी। नंदन का पहला अंक पंडित नेहरू को ही समर्पित था। प्रमुख रूप से नंदन की कहानियॉ पौराणिक एवं परी कथाएँ होती थी पर समय के साथ एवं अपने बाल पाठको की बदलती रुचि को ध्यान रख कर नंदन मे समकालिन विषयो एवम प्रसिध जीवनीया भी प्रकाशित करना शुरु कर दिया। आज तक नंदन मे १०,००० से भी ज्यादा कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी है। नन्दन में छपने वाले टीटू नीटू बहुत फेमस थे।
और भी तो है साथी
बचपन के साथियों में चाचा चौधरी; साबू; पिंकी; मोगली; बघीरा; नागराज ;बिल्लू और ना जाने कितने और साथी थे हमारे। आप भी अपने बच्चों को अपने बचपन के दोस्तों से मिलवाईयेगा ज़रूर।