जब भारत के एक रक्षा मंत्री ने लगातार 8 घंटे भाषण देकर दिया था जवाब
नई दिल्ली। आज यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेंबली (उंगा) में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 71वीं महासभा को संबोधित करेंगी। माना जा रहा है कि सुषमा अपने भाषण में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को करारा जवाब देंगी और आतंकवाद के उसके एजेंडे को दुनिया के बारे में बताएंगी। क्या आप जानते हैं कि भारत के एक रक्षा मंत्री भी थे जिन्होंने कश्मीर पर यूूएन में आठ घंटे तक भाषण दिया।
पहली बार यूएन में गूंजा कश्मीर
हम बात कर रहे हैं भारत के रक्षा मंत्री वेंगालिल कृष्णन कृष्णा मेनन यानी वीके कृष्णा मेनन की जिन्होंने संयुक्त राष्ट्रसंघ (यूएन) की सिक्योरिटी काउंसिल यानी यूएनएससी में एक एतिहासिक स्पीच दी थी। 23-24 जनवरी 1957 को कृष्णा मेनन ने पहली बार कश्मीर पर यूएन के किसी अंतराष्ट्रीय मंच से जिक्र किया था।
पढ़ें-वाजपेयी से लेकर मनमोहन तक ने घेरा है पाक को
सात घंटे 48 मिनट का भाषण
मेनन की स्पीच सात घंटे और 48 मिनट यानी करीब आठ घंटे की थी। मेनन का भाषण 16 जनवरी 1957 को पाकिस्तान के भाषण के बाद हुआ था।
इस भाषण में पाकिस्तान ने कहा था कि भारत का कश्मीर पर हक गैर-कानूनी है। आज भी लोग मानते हैं कि मेनन के उस भाषण ने कश्मीर पर भारत की स्थिति का समर्थन करने और इस मुद्दे पर यूएन की राय को ठोस आकार देने में एक अहम भूमिका अदा की थी।
पढ़ें-UNGA में पाक को बेनकाब करेंगी सुषमा स्वराज
अस्पताल से लौटने के बाद पूरा हुआ भाषण
अपनी मैराथन स्पीच के बीच ही मेनन थकान की वजह से गिर गए थे और उन्हें उस समय तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन जब वह अस्पताल से लौटे तो उन्होंने एक घंटे में अपना भाषण पूरा किया। इस दौरान एक डॉक्टर लगातार उनके ब्लड प्रेशर पर नजर रखे था।
दुनिया ने बदला अपना रवैया
इतिहासकार मानते हैं कि मेनन के भाषण के बाद सोवियत यूनियन ने यूएन प्रस्ताव पर वीटो का फैसला किया था। कहते हैं कि अगर यह भाषण नहीं होता तो शायद कश्मीर, पाक को दे दिया जाता।
दुनिया के अधिकांश देश इस बात को मान चुके थे कि कश्मीर, पाक का हिस्सा है। मेनन के उस एतिहासिक भाषण के सोवियत यूनियन ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन शुरू किया।
पढ़ें-कश्मीर मुद्दे पर अकेला हुआ पाकिस्तान
क्या कहा था मेनन ने
'ऐसा क्यों है कि हमने अभी तक दमन कर रखे गए लोगों की आजादी और पाकिस्तान के अत्याचार से जुड़ी आवाज को नहीं सुना है? ऐसा क्यों है कि हमने कभी नहीं सुना कि इन 10 वर्षों में इन लोगों ने कभी बैलेट पेपर देखा है? ऐसे में किस आवाज के साथ सुरक्षा संघ या फिर कोई और उन लोगों के लिए जनमत संग्रह की मांग कर रहा है जो हमारे तरफ हैं और जिनके पास बोलने की आजादी है और जो कई सैंकड़ों स्थानीय निकायों के तहत कार्य कर रहे हैं? '