इतिहास के पन्नों से- जंतर-मंतर प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति का केंद्र
नई दिल्ली। राजस्थान के किसान ने दिल्ली के जंतर-मंतर के मैदान पर लगे पेड़ पर लटक कर खुदकुशी कर ली। पार्टियों ने राजनीतिक रोटियां सेकनी शुरू कर दीं और जंतर मंतर बदनाम होता गया। लेकिन क्या आप इस जंतर मंतर के सुनहरे इतिहास से वाकिफ हैं? बीते 15-20 सालों से जंतर-मंतर प्रदर्शनकारियों- आंदोलनकारियों का गढ़ बन चुके जंतर-मंतर का इतिहास काफी वृहद और गौरवशाली है।
ग्रहों का अध्ययन
राजधानी के दिल कनॉट प्लेस के बीचों-बीच स्थित जंतर-मंतर का निर्माण सवाई जय सिंह ने 1724 में करवाया था। चारों चरफ से गगनचुंबी इमारतों से घिरी जंतर-मंतर की इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। राजा जयसिंह के बारे में कहा जाता है कि उनकी खगोल विज्ञान और ज्योतिष में गहरी दिलचस्पी थी। वे इनका अध्ययन करते थे। उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं।
कहते हैं कि दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद की वेधशाला से प्रेरित है। ग्रहों के अध्ययन के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए। जंतर-मंतर परिसर में एक सुंदर सा बगीचा भी है। इधर लोग दिन के वक्त कुछ आराम के लिए इस्तेमाल करते हैं।
सवाई मानसिं ने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार के लिए एक जगह एकत्र भी किया। हिन्दू, इस्लामिक और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया। दरअसल जंतर मंतर से पहले राजधानी में प्रदर्शन-धरने के लिए बोट क्लब हुआ करता था।
आबाद हुआ जंतर-मंतर
जब उसे सुरक्षा कारणों से आंदोलनकारियों के लिए निषिद्ध स्थान घोषित किया गया उसके बाद जंतर-मंतर आबाद हो गया। जंतर-मंतर से चंदेक कदम की दूरी पर राजधानी का प्राचीन हनुमान मंदिर और शिव मंदिर भी है। इधर रोज सैकड़ों लोग पूजा अर्चना करने के लिए पहुंचते हैं।
जंतर-मंतर का अध्ययन करने के लिए अब भी बहुत से इतिहास के छात्र और खगोलशास्त्री आते हैं। आप जब राजा जयसिंह द्वारा बनाए गए जंतर-मंतर परिसर में होते हैं, तो आपको बाहर जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारों की आवाज सुनाई देती है। इधर धरने लगातार जारी रहते हैं।