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बेजा नहीं है संघ प्रमुख की चिंता, 7 राज्यों में अल्पसंख्यक हुए हिंदू!

By शिवानन्द द्विवेदी
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नयी दिल्‍ली। आगरा में एक युवा दम्पतियों के बीच बोलते हुए संघ के सर संघचालक मोहन भागवत ने कहा कि कौन सा कानून कहता है कि हिंदुओं की जनसंख्या नहीं बढ़नी चाहिए। जब अन्यों की जनसंख्या बढ़ रही है तो उन्हें कौन रोक रह है। मुद्दा हमारी व्यवस्था से जुड़ा नहीं है, ऐसा इसलिए है क्योंकि सामाजिक माहौल ऐसा है।' इस बयान के बाद मीडिया ने फिर वही दुष्प्रचार शुरू किया कि मोहन भागवत हिन्दुओं से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं।

Hindus are in minority in 7 Indian States, RSS chief's concerns are genuine

जबकि मोहन भागवत की चिंता पर कोई चर्चा नहीं कर रहा है। भागवत की चिंता को जनसंख्या से संबंधित आंकड़ों के माध्यम से समझने की जरूरत है। दरअसल जनसंख्या का बेलगाम बढ़ना एक समस्या है और तमाम समुदायों के बीच जनसंख्या का असंतुलन एक दुसरी समस्या! दुसरी समस्या पहली समस्या से ज्यादा गंभीर है।

दूसरे धर्म वाले जब इतने बच्‍चे पैदा कर रहे हैं तो हिंदू क्‍यों नहीं: भागवत दूसरे धर्म वाले जब इतने बच्‍चे पैदा कर रहे हैं तो हिंदू क्‍यों नहीं: भागवत

क्‍या कहते हैं आंकड़े

जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में मुसलमानों की कुल जनसंख्या 17 करोड़ 22 लाख है, जो कि कुल आबादी का 14.2 फीसद है। पिछली यानि 2001 की जनगणना में यह आबादी कुल आबादी की 13.4 फीसद थी। अर्थात मुसलमानों की आबादी में आनुपातिक तौर पर .8 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं देश का बहुसंख्यक समुदाय अर्थात हिन्दू समुदाय कुल जनसंख्या का 79.8 फीसद है, जो कि 2001 में 80.5 फीसद था।

अर्थात, कुल जनसंख्या में हिन्दुओं की हिस्सेदारी कम हो रही है। इसके अतिरिक्त अगर अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की बात करें तो इसाई समुदाय और जैन समुदाय की स्थिति में कोई कमी नही आई है जबकि सिक्ख समुदाय की हिस्सेदारी में .2 फीसद की मामूली कमी आई है। कमोबेस ऐसी ही स्थिति बौध समुदाय की भी है। अब अगर कुल जनसंख्या में इन समुदायों की वृद्धि दर अथवा कमी गिरावट की दर का विश्लेषण करें तो मुस्लिम समुदाय की वृद्धि दर कुल जनसंख्या की वृद्धि दर से 6.9 फीसद ज्यादा है।

देश की जनसंख्या इन वर्षों में 17.7 फीसद की दर से बढ़ी है जबकि मुसलमान समुदाय की वृद्धि दर 24.6 फीसद रही है। वहीं इन्हीं मानदंडों पर अगर हिन्दू समुदायों के वृद्धि दर की बात करें तो कुल जनसंख्या के वृद्धि दर की तुलना में हिन्दुओं की जनसंख्या .9 फीसद की कमी के साथ 16.8 फीसद की वृद्धि दर से बढ़ी है। इसके इतर भी कुछ अन्य आंकड़े वर्गीकृत हुए हैं जैसे देश में लगभग 29 लाख लोग किसी को धर्म को नहीं मानने वाले हैं जो कि कुल जनसंख्या का बहुत छोटा हिस्सा है।

उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों में मुस्लिम आबादी तुलनात्मक रूप से अधिक है। उत्तर प्रदेश के 21 जिले ऐसे हैं जहां मुसलमानों की हिस्सेदारी 20 फीसद से अधिक है। उत्तर प्रदेश के ही 6 जिले ऐसे हैं जहां मुसलमान समुदाय हिन्दू समुदाय के बराबर अथवा ज्यादा भी है। असम और पश्चिम बंगाल में कम हो रही हिन्दू जनसंख्या और मुसलमानों की बेलगाम बढ़ती जनसंख्या पर इसलिए भी चिंता स्वाभाविक है क्योंकि यह एक संस्कृति की कम होती जनसंख्या के संरक्षण से जुडा प्रश्न है।

कुछ महीने पहले रांची बैठक में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल जी ने इसी चिंता की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा, 'असम और पश्चिम बंगाल में बड़ी तेजी से जनसंख्या का स्वरूप बदल रहा है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उपमन्यू हजारिका आयोग की रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार की जरूरत है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान परिस्थितियों में बदलाव न होने पर 2047 तक असम में भारतीय जनसंख्या से अधिक विदेशी जनसंख्या होगी।' उन्होंने कहा कि कमोबेश पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही स्थिति है।;

सात राज्यों में अल्पसंख्यक हुए हिन्दू!

जनगणना-2011 की रिपोर्ट जारी होने के बाद एक रोचक तथ्य यह भी सामने आया है कि भारत के कुल सात राज्य ऐसे हैं जहाँ बहुसंख्यक कहा जाने वाला हिन्दू समुदाय ही अल्पसंख्यक की स्थिति में है। जम्मू-काश्मीर, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड सहित कुल सात राज्यों में हिन्दू न सिर्फ अल्पसंख्यक हैं बल्कि उनकी संख्या भी गिरावट की तरफ है। इतना ही नही पिछले कुछ सालों में जिस ढंग से इन राज्यों में हिन्दुओं की जनसंख्या कम हुई है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इन राज्यों में हिन्दूओं की समाजिक हिस्सेदारी को अगर राज्य द्वारा सुनिश्चित नही किया गया तो भविष्य में यह समुदाय इन सात राज्यों में बचेगा ही नही।

इन सात राज्यों में हिन्दू समुदाय की जनसंख्या की हो रही लगातार गिरावट से यह प्रमाणित होता है कि कहीं न कहीं या तो यहाँ से हिन्दू पलायन कर रहे हैं अथवा इनका धर्मान्तरण हो रहा है! क्योंकि हिन्दुओं में हो रही कमी के समानंतर दुसरे समुदायों की हो रही वृद्धि, इस बात का प्रमाण है कि यहाँ अल्पसंख्यक होने के बावजूद अल्पसंख्यक का दर्जा न मिलने की वजह से हिन्दुओं पर पलायन अथवा परिवर्तन का समाजिक दबाव है।

ऐसे में क्या इन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर वो सभी लाभ नही दिया जाना चाहिए जो एक अल्पसंख्यक को मिलना चाहिए ? रोचक तथ्य यह है कि बढ़ोत्तरी सिर्फ उन धर्मों (पंथों) वाली जनसंख्या में हो रही है जो अ-भारतीय एवं पूर्णतया आयातित है। सीधे शब्दों में कहें तो भारतीय धर्म का प्रसार और जनसँख्या में हिस्सेदारी भारत में ही कमजोर हुई है, जबकि बाहर से आयातित धर्म जनसंख्या के रूप में बढ़ रहे हैं।

इसमें कोई शक नही है कि इसाई धर्म की जनसंख्या में हुई वृद्धि के पीछे फंडिंग के बूते भारत में घुसे मिशनरियों का बड़ा हाथ है। क्रिश्चियन मिशनरिया बड़े स्तर पर सक्रीय हैं। क्रिश्चियन मिश्निरियों द्वारा आर्थिक प्रलोभनों के जरिये आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण की तमाम घटनाएँ सामने आती भी रही हैं।
अल्पसंख्यक होने का पैमाना क्या है ?

भारत में अल्पसंख्यक शब्द की अवधारणा पुरानी है। सन 1899 में तत्कालीन ब्रिटिश जनगणना आयुक्त द्वारा कहा गया था भारत में सिख,जैन, बौध, मुस्लिम को छोड़कर हिन्दू बहुसंख्यक हैं। यहीं से अल्पसंख्यकवाद और बहुसंख्यकवाद के विमर्श को बल मिलने लगा। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में कुल जितनी जनसँख्या मुसलमानों की है उतनी संख्या में देश के कई राज्यों एवं भू-क्षेत्रों में हिंदू समुदाय दुर्दिन में जिन्दगी बसर कर रहे हैं।

गौर करना जरूरी है कि इंडोनेशिया के बाद अगर सबसे ज्यादा मुसलमानों की आबादी किसी मुल्क में रहती है तो वो भारत ही है,लेकिन बावजूद इसके मुसलमान भारत में अल्पसंख्यक हैं। एक सवाल यह भी है कि आखिर मुसलमान कबतक अल्पसंख्यक रहेगा ? आखिर कुल जनसँख्या के कितने प्रतिशत वाले समुदायों को अल्पसंख्यक माना जाएगा ? क्या मुसलमान तबतक अल्पसंख्यक माना जाएगा जबतक उसकी जनसँख्या बहुसंख्यको की जनसँख्या के पार न पहुच जाए?

ब्रिटिश नियामकों से एक कदम आगे बढ़कर भारत में जब राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया तो माननीय सर्वोच्च नयायालय के मुख्य न्यायाधीश आरएस लाहोटी ने अपने एक निर्णय में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग भंग करने का सुझाव तक दिया था लेकिन उसपर कोई अमल नहीं हुआ। अल्पसंख्यक शब्द को लेकर संघीय ढाँचे में संघ के राज्यों के विविध भौगोलिक परिवेश के अनुकूल यह तय किया जाय कि कहां कौन 'अल्पसंख्यक' माना जा सकता है।

जिस ढंग से अल्पसंख्यक शब्द को आज परिभाषित किया गया है वो 'हिन्दू समुदाय' के लिए वाकई चिंताजनक है और हिन्दू सगठनों की चिंता बेजा नही है। आज अगर संघ प्रमुख जनसंख्या के इस असंतुलन पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं तो उसके विविध पक्षों क समझने की जरुरत है न कि प्रोपगंडा वाली पत्रकारिता के झांसे में आने की जरुरत है।

नोट: यह लेखक की अपनी राय है। लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च फेलो हैं।

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English summary
Hindus are in minority in 7 Indian States, RSS chief's concerns are genuine.
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