इतिहास के पन्नों से- जिधर की मिठाई खाते रहे अटल जी से लेकर रफी साहब
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) घंटेवाले मिठाई की दूकान। बेशक,ये देश की सबसे पुरानी मिठाई की दूकान थी। जिस पर बुधवार को ताला लग गया। दिल्ली-6 के दिल यानी चांदनी चौक की नाक पर ये बीते 225 सालों से चल रही थीं।
इधर का सोहन हलवा, गाजर का हलवा, मूंगी की दाल का हलवा, रबड़ी वगैरह खा कर कितनी पीढ़ियां बड़ी हुईं। ये 1790 में शाह आलम के दौर में 1790 में शुरू हुई थी। तब से ये दूकान चल रही थी। हालांकि वक्त बदला पर इसका जलवा बरकरार रहा।
बंद होने की वजह
आप पूछ सकते हैं कि तो फिर ये बंद क्यों हुई। हालांकि इस बाबत अलग-अलग बातें कही जा रही हैं। पर जानकारों का कहना है कि घंटेवाले के मालिकों में आपसी विवाद के चलते इसे बंद करना पड़ा। इस दूकान को परिवार के कुछ लोग बेचकर मोटा पैसा कमाना चाहते हैं।
रफी-मुकेश भी
दिल्ली के इतिहासकार आर.वी.स्मिथ साहब बताते हैं कि इधर आते रहे हैं मुंह मीठा करने के लिए गायक मोहम्मद रफी, मुकेश से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी। वाजपेयी जी को इधर की देसी घी से तैयार जलेबी बहुत पसंद थीं।
सबकी पसंदीदा
दिल्ली वालों को मालूम है कि इसी दूकान से हिन्दू दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के लिए मिठाई लेते रहे और मुसलमान ईद के लिए। यहां पर रोज सैकड़ों लोग मिठाई खाने और खरीदने आते थे। हालांकि घंटेवाले के साथ कंवरजी, स्टैडर्ड स्वीट्स, अन्नपुर्णा स्वीट्स जैसी मिठाई की तमाम दूसरी दूकानें भी हैं, पर घंटेवाले का तो नाम ही काफी था।
चांदनी चौक निवासी संजय अग्रवाल कहते हैं कि वे बचपन से यहां की रबड़ी अपने पेरेन्ट्स के साथ खाने जाते थे। स्वाद लाजवाब था यहां की रबड़ी का। वे बहुत भावुक होकर बताते हैं।
सीसगंज के साथ
घंटेवाले की दूकान दिल्ली के गुरुद्वारा सीस गंज के बेहद करीब थी। इसलिए देश भर से आने वाले सिख तीर्थ यात्री भी इधर की मिठाई का स्वाद लेने नहीं भूलते थे। अब तो घंटेवाले की यादें ही रह जाएंगीं।