हमेशा अच्छा नहीं होता यूं आंखें मिलाना
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के प्राध्यापक व अध्ययन के पहले लेखक फ्रांसेस चेन ने कहा, "लोगों को प्रभावित करने के लिए आंखे मिलाने को शक्तिशाली समझने के बहुत से सांस्कृतिक विचार हैं।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने चेन के हवाले से कहा, "लेकिन हमारा निष्कर्ष दर्शाता है कि प्रत्यक्ष तौर पर आंखें मिलाना , संशयी श्रोताओं के विचारों को विरला ही बदल पाता है। इससे उतना प्रभाव नहीं होता है, जितना पूर्व में कहा जाता था।"
हाल में विकसित नेत्र गतिविधियों संबंधी प्रौद्योगिकी की मदद से शोधकर्ताओं ने परीक्षणों की एक श्रृंखला में आंखें मिलाने के प्रभावों की जांच की। उन्होंने पाया कि विविध विवादास्पद मुद्दों पर श्रोताओं ने वक्ता की आंखों में देखा जबकि वे वक्ता के तर्को से सहमत नहीं थे।
शोधकर्ताओं के मुताबिक वक्ता के बोलते वक्त श्रोताओं का उसकी आंखों में देखना उनके बीच केवल अधिक से अधिक ग्रहणशीलता दर्शाता है जबकि वे उस मुद्दे पर पहले से ही वक्ता से सहमत थे।
हार्वर्ड के केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट की अध्ययन की सह-लेखक जूलिया मिंसन ने कहा, "ध्यान रखने वाली बात यह है कि चाहे आप एक राजनेता हों या एक अभिभावक, अगर आप अलग मान्यताएं रखने वाले व्यक्ति से आंखें मिलाने का प्रयास कर रहे हैं तो संभवत: उसकी उलट प्रतिक्रिया मिलेगी।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।