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मासिक धर्म के कारण.. अपवित्र नहीं, अति पवित्र हैं हम

By आंचल श्रीवास्तव
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लखनऊ। कक्षा 9 में जीव विज्ञान की किताब में एक अध्याय था 'ह्यूमन रिप्रोडक्शन', जब एक सामान्य प्रकिया से पढ़ने वाला विद्यार्थी कक्षा 9 में होता है तो उसकी एक औसत उम्र होती है लगभग चौदह या पंद्रह साल, हम सब भी उसी उम्र के आसपास ही थे क्योंकि हमारा स्कूल एक को-एजुकेशन स्कूल था तो जाहिर सी बात है की क्लास में लड़के और लड़कियां दोनों ही थे।

उम्र के इस पड़ाव में दोनों के ही शरीर में कुछ प्राकृतिक और मनोवैज्ञानिक बदलाव आते हैं, हमारे समाज की ये अजीब विडंबना है की यहाँ जिन बातों पर चर्चा होनी जरुरी होती है उन्हें सौ पर्दों के भीतर छुपा कर रखते है और जिन चीजों पर रोक होनी चाहिए उन्हें खुले आम करते हैं जैसे गंदगी।

उन बातों पर चर्चा होती ही नहीं जिस पर होनी चाहिए

अब क्योंकि सेक्स एजुकेशन और मासिक धर्म जैसी चीजों के बारे में कभी बात ही नहीं होती तो किताब में उसके बारे में एक विस्तृत अध्याय और चित्रों के साथ पूरा विश्लेषण उस उम्र में हमें बहुत आकर्षित करता था।यह आज से कुछ दस वर्ष पुरानी बात है जब इन्टरनेट था तो पर स्मार्ट फ़ोन्स के रूप में हमारे हाथों में नहीं था हालांकि आज के बच्चे तो इन्टरनेट साथ ले कर पैदा होते है |

आखिर पीरियड्स पर लोग चुप्पी क्यों साध लेते हैं

तो शुरुआत वहीँ से हुई, जब मैडम ने ह्यूमन रिप्रोडक्शन वाला अध्याय पढाया ही नहीं, उस वक़्त हमारे मनों में भी घर वालों की शिक्षा थी की बेटा ये सब बाते छुपा के रखी जाती हैं| 13 से 14 वर्ष की आयु में जब मासिक धर्म शुरू हुआ तो तमाम चीज़ें बदल गयीं। एक पढ़े लिखे समझदार परिवार से होने के बाद भी मुझे पूजा पाठ से दूर रखा गया और अचार को छूने पर सख्त पाबन्दी लगा दी गयी। उस समय मन में सवाल तो थे पर मां और दादी के पास न जवाब था और न हिम्मत इन अंधविश्वासों से ऊपर उठने की, ये सिर्फ मेरी कहानी नहीं यह कहानी है आधी आबादी की।

यह कड़वा सच है आधी आबादी का

अभी हाल ही में माहवारी के दौरान कपड़ों से बिस्तर पर लगे खून के दाग की एक फोटो ने इन्स्टाग्राम पर तहलका मचा दिया, लोगों ने इसके खिलाफ अपने अपने विचार दिए पर सवाल इतना है की इसमें गलत क्या है?

<strong>मासिक कोई अपराध नहीं..प्राकृतिक सच है</strong>मासिक कोई अपराध नहीं..प्राकृतिक सच है

माहवारी एक प्राकृतिक प्रकिया है जिसमे महिला का शरीर अपनी परिपक्वता पर आने की शुरुआत करता है और शरीर से गंदगी का परित्याग होता है, इस तौर पर तो महिला इसी दौरान सबसे पवित्र हुई, फिर आराधना करने की मनाही क्यों ? और अचार छूने पर रोक क्यों ? क्या इसका कोई लॉजिकल जवाब है ?

महिलाएं अपवित्र क्यों हो जाती हैं?

आधी आबादी की एक बड़ी और वाजिब प्रक्रिया को समाज तभी स्वीकारेगा जब कक्षाओं में इन चैप्टर्स का एक प्रशिक्षित शिक्षक द्वारा एक गहन अध्ययन करवाया जाए, घरों में अभिभावक इस विषय पर खुल कर अपने बच्चों से बात करे चाहे वो लड़की हो या लड़का। दोनों के लिए ही ये बाते समझना जरुरी है | अपने बच्चों को इस दौरान स्वच्छता के विषय में समझाए।

घर में बच्चों से इस विषय में बात करें

पैड्स के प्रयोग के विषय में समझाए क्योंकि आपके बच्चों को इन चीजों की समझ इन्टरनेट से बेहतर आप खुद दे सकते हैं। बेटी की परवरिश शर्म के परदे में और बेटे की परवरिश लापरवाही में ना हो।इसी से हमारे समाज में बदलाव आएगा जिसकी हमें जरूरत है।मासिक धर्म को टैबू न बनाये इसे एक स्वाभाविक प्रक्रिया ही रहने दें, सामाजिक कुरीतियों से ऊपर उठकर महिलाओं की इज्ज़त करें, विश्वास करें आपको खुद में बेहतर महसूस होगा।

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English summary
During menstruation, why are women not allowed to touch anything related to God or be involved in any religious activity asked School Girls, Its not sin, its a natural process.
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