साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने दिए ऐसे फैसले जिन्होंने रचा इतिहास
न्यायापालिका की नजरों से देखें तो साल 2016 कई मायनों में राजनीतिक और निजी जिन्दगियों को प्रभावित करने वाले फैसले रहे। तो आईए आपको बताएं कि साल 2016 में हुए कौन-कौन से फैसले चर्चा का विषय रहे।
किसी
भी
देश
में
न्याय
व्यवस्था
उस
देश
का
आईना
होता
है।
खासतौर
से
मुल्क
की
सबसे
बड़ी
अदालत
जिसे
सर्वोच्च
न्यायालय
या
सुप्रीम
कोर्ट
भी
कहा
जाता
है।
इनके
फैसलों
की
मिसालें
दी
जाती
हैं।
इनकी
नजीर
बना
कर
कई
फैसले
दिए
जाते
हैं।
साल
2016
में
भारतीय
न्याय
व्यवस्था
और
उसे
संचालित
करने
वाले
न्यायाधीशों
ने
कई
ऐसे
फैसले
दिए
जो
भविष्य
के
लिए
नजीर
तो
बने
ही
हैं,
साथ
ही
उन
पर
कई
विवाद
भी
उत्पन्न
हुए।
तो
आईए
जानते
हैं
कि
वे
कौन-कौन
से
फैसले
हैं
जिन्होंने
साल
2016
में
भारत
के
लोगों
की
जिन्दगी
को
एक
हद
तक
छुआ
और
उन
फैसलों
के
आधार
पर
आगे
भी
कई
फैसले
दिए
जाने
की
संभावना
है।
सिनेमाघरों में राष्ट्रगान
इस साल नवंबर के आखिरी दिन यानी 30 नवंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने भोपाल में गैर सरकारी संगठन (NGO) चलाने वाले श्याम नारायण की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि देश के हर सिनेमा हॉल में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाए और लोग खड़े होकर इसका सम्मान करें। राष्ट्रगान जब बजाया जाए तो स्क्रीन पर देश का झंडा दिखाया जाए। सर्वोच्च न्यायालयने यह भी कहा था कि अब समय आ गया है जब सभी लोग यह महसूस करें कि वे एक राष्ट्र में रहते हैं। बेंच ने कहा, 'जब राष्ट्रगान बजाया जाय तो सबको इसके प्रति आदर और सम्मान का भाव दिखाना जरूरी है। यह उनमें देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना भरेगा।' हालांकि इसका बड़े स्तर पर विरोध भी हुआ था। फैसला सर्वोच्च न्यायालय की ओर से दिए होने के कारण लोग खुल कर इसे विरोध में तो नहीं उतरे लेकिन सोशल साइट्स पर लोगों ने इस न्यायालय के इस फैसले पर सवाल उठाए। गौरतलब है कि वर्ष 1975 से पहले भी सिनेमाहालों में राष्ट्रगान बजाया जाता था। पर 1975 में राष्ट्रगान बजते वक्त उसे उचित सम्मान ना मिल पाने के कारण इसे बंद कर दिया गया था। राष्ट्रगान के संबंध में 2003 में महाराष्ट्र सरकार ने आदेश दिया था कि थिएटर में फिल्म शुरू होने से पहले इसे बजाया जाए।
राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब की बिक्री
सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिसंबर को दिए आदेश में कहा था कि राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य के राजमार्गों से पांच सौ मीटर यानी आधा किलोमीटर के दायरे में शराब की दुकानें नहीं होंगी। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है। याचिका में कोर्ट से निवेदन किया गया था कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हाईवे के किनारे शराब की बिक्री न हो। आदेश में कहा गया है कि जिनके पास लाइसेंस हैं वो खत्म होने तक या 31 मार्च 2017 तक जो पहले हो, तक इस तरह की दुकानें चल सकेंगी। मतलब 1 अप्रैल 2017 से राजमार्गों के किनारे शराब नहीं बिकेगी। न्यायालय का यह फैसला सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा। आदेश में कहा गया है कि राजमार्गों के किनारे लगे शराब के सारे विज्ञापन और साइन बोर्ड हटाए जाएंगे। साथ ही राज्यों के मुख्य सचिव और डीजीपी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कराने की निगरानी करेंगे।
मां-बाप से अलग करने के लिए मजबूर करना बना तलाक का आधार
इसी साल अक्टूबर में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू समाज में एक लड़के का पवित्र दायित्व है कि वो अभिभावकों की देखभाल करे। अगर पत्नी इस बात के लिए विवश करे कि पति अपने माता-पिता से अलग रहे तो यह क्रूरता है, जिसके कारण वह तलाक मांग सकता है। यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश अनिल आर दवे और एल. नागेश्वर राव की पीठ ने कर्नाटक के एक तालक के मामले में की थी। कहा था कि भारत में हिन्दू बेटों के लिए यह सामान्य या वांछनीय संस्कृति नहीं है कि वो शादी के बाद अपने परिवार से पत्नी के कहने पर परिवार से अलग हो जाए, वो भी तो बिल्कुल नहीं जब पूरे परिवार में अकेला बेटा ही कमाने वाला हो। एक माता पिता अपने बेटे की शिक्षा से लेकर हर तरह की परवरिश करते हैं। ऐसे में बेटे का कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है कि वो माता पिता की से देखभाल करे।
पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटूज को सुप्रीम कोर्ट ने दी अवमानना की नोटिस
इसी साल सर्वोच्च न्यायालय ने एक और इतिहास रचा, जब अपने ही पूर्व न्यायाधीश को हाजिर होने के लिए कहा था। मामला पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू से जुड़ा हुआ था। उन्होंने सौम्या मर्डर केस में जजों के फैसले पर टिप्पणी की थी। केरल के चर्चित सौम्या मर्डर केस में दोषी गोविंदाचामी की फांसी की सजा रद्द करने को एक गलत फैसला बताने पर बताने पर जस्टिस मार्कंडेय काटजू को सुप्रीम कोर्ट ने समन किया है।केस की सुनवाई कर रही तीन जजों की बेंच ने नोटिस में कहा था कि काटजू कोर्ट में पेश होकर अपनी बात रखें। काटजू ने सौम्या के मर्डर पर फैसला आने के बाद अपनी फेसबुक पोस्ट में कहा था कि मैंने फैसले को पढ़ा है, इसमें कई खामियां हैं। उन्होंने लिखा कि गाविंदाचामी को मर्डर के चार्ज से बरी करना बड़ी गलती है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा- फिलहाल टोल फ्री रहेगा नोएडा DND
नोएडा रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से 2012 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अक्टूबर में यह कहते हुए इस फ्लाइवे को टोल फ्री कर दिया था कि टोल कानूनी प्रावधान के अनुकूल नहीं है। इसके बाद मामले से जुड़ा दूसरा पक्ष सर्वोच्च न्यायालय चला गया। जहां से फैसला आया कि फिलहाल डीएनडी टोल फ्री रहेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ नोएडा टोल ब्रिज कंपनी लिमिटेड (NTBCL) सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी।
रेप पीड़िता को मिली गर्भपात की इजाजत
इस साल सर्वोच्च न्यायालय ने गर्भवती महिला को गर्भधारण के 24 हफ्ते बाद अबॉर्शन कराने की इजाजत दी थी। गौरतलब है कि कोई भी महिला अपने 20 हफ्ते के भ्रूण का ही गर्भपात करा सकती है। न्यायालय ने यह फैसला उस महिला की याचिका पर दिया था जिसने कहा था कि गर्भ में उसका बच्चा विकृत है। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक मेडिकल बोर्ड का गठन किया था। इस मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि भ्रूण की वजह से मां की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। इसी को आधार मानते हुए कोर्ट ने गर्भपात कराने की इजाजत दी है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका में मुंबई की रेप पीड़ित महिला ने इस एक्ट को अंसवैधानिक बताते हुए चुनौती दी थी और गर्भपात कराने की इजाजत मांगी थी। महिला को जब पता चला वह गर्भवती है तो उसने कई मेडिकल टेस्ट कराए, जिससे पता चला कि अगर वह गर्भपात नहीं कराती तो उसकी जान जा सकती है।
MBBS के लिए NEET
इसी साल अप्रैल महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसले में साल 2015 से ही देशभर के कॉलेजों में MBBS और BDS पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए एक ही कॉमन टेस्ट NEET को हरी झंडी दे दी थी। यानी अब देशभर के सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिले इसी के आधार पर होंगे।
बची उत्तराखंड सरकार
उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार पर मंडरा रहे संकट के बादल को सर्वोच्च न्यायालय ने इसी साल 11 मई को फ्लोर टेस्ट के नतीजे का एलान कर हटाया। कोर्ट ने कहा था इस रावत के पक्ष में 33 विधायक थे और बीजेपी के पक्ष में 28। इसी के बाद राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया था। इस फैसले से भाजपा, यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को विपक्ष ने घेर लिया था।
अरुणाचल में भी सरकार
अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक संकट खत्म करने में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का खास योगदान रहा। न्यायालय इस साल जुलाई में अरुणाचल प्रदेश में बनी कलीखो पुल की सरकार को असंवैधानिक करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की सरकार को फिर से बहाल करने का आदेश दिया था। फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने 15 दिसंबर 2015 की स्थिति बहाल करने का आदेश दिया था। गौरतलब है कि साल 2015 से ही यह विवाद चला आ रहा था। उस वक्त राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री नबाम तुकी थे, जिन्होंने 16 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था। इस दौरान न्यायालय ने कहा था कि राज्यपाल का समय से पहले विधानसभा सत्र बुलाने का फैसला, उसकी पूरी प्रक्रिया और स्पीकर को हटाना असंवैधानिक थी। न्यायालय के फैसले के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था PM को लोकतंंत्र का मतलब समझाने के लिए न्यायालय को थैंक्यू।
ये बी पढ़ें: IIT के बाद अब रेलवे की परीक्षा में भी आधार कार्ड होगा अनिवार्य, रेलवे भर्ती बोर्ड ने जारी किया आदेश