मजदूरों के नेता वीवी गिरी कैसे बने थेे भारत के राष्ट्रपति?
आंचल श्रीवास्तव
लखनऊ। स्वतंत्र भारत के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरी को दिवंगत हुए आज 36 साल हो गये। माननीय वीवी गिरी जी का पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरी था।
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परिचय
इनका जन्म 10 अक्टूबर 1894 में ओडिशा के बेरहामपुर में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इन्होंने अपनी शिक्षा बेरहामपुर कोलेज ओए यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन से पूरी की। 1916 में आयरलैंड से हटाये जाने के बाद ये भारत आ गये और यहाँ इन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस को ज्वाइन किया।
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल भी रहे
इन्हें आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन का संस्थापक भी माना जाता है, इसी दौरान ये दो बार आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के प्रमुख भी बने। 1947 में इन्हें सीलोन का हाई कमिश्नर नियुक्त किया गया। 1957 से 1967 के बीच उत्तर प्रदेश; केरल और मैसूर के राज्यपाल रहने के दौरान ही इन्हें 1967 में उप राज्यपाल के पड़ के लिए चुना गया।
निर्दलीय उम्मेदवार होकर जीता चुनाव
राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद 3 मई 1969 से 20 जुलाई 1969 तक यह कार्यकालिक राष्ट्रपति रहे और 1969 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में ये कांग्रेस के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को पिछाड कर निर्दलीय राष्ट्रपति बने।
भारत रत्न वीवी गिरी
वीवी गिरी को 1975 में भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। 1974 में पोस्ट एंड टेलीग्राफ डिपार्टमेंट ने इनके उपर एक पोस्टेज स्टाम्प भी इशू किया| 1995 में नेशनल लेबर इंस्टिट्यूट को वीवी गिरी इंस्टिट्यूट के नाम से जाना जाने लगा, गिरी के जन्मस्थान पर एक स्कूल ; एक पूरा बाज़ार और एक जानी मणि सड़क इनके नाम पर ही है।
लेखन भी किया गिरी जी ने
गिरी जी ने इंडस्ट्रियल रिलेशन्स और लेबर प्रोब्लेम्स इन इंडियन इंडस्ट्री सरीखी दो किताबों का लेखन भी किया है। 1976 में उनकी रचनाओं का संग्रह माय लाइफ एंड टाइम्स के नाम से छपा।
हृदयाघात के कारण हुई मृत्यु
24 जून 1980 को वीवी गिरी जी हार्ट अटैक के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए, उन्हें राजकीय सम्मान और श्रद्धांजली दी गयी और भारतीय सरकार ने एक हफ्ते का लम्बा शोक घोषित किया। एच बालाकृष्णन ने अपनी किताब में इनके बारे में लिखा है की ये मजदूरों के वो नेता थे जो राष्ट्रपति बने।