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जमात-उल-मुजाहिद्दीन-भारत में बांग्‍लादेश से आया आतंक

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में हुए ब्‍लास्‍ट्स भारत के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहे हैं। यह ब्‍लास्‍ट इशारा है कि देश में एक बार फिर से बांग्‍लादेश से प्रयोजित हो रहे आतंक की वापसी हो रही है।

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वर्ष 2006 में बांग्‍लादेश के जमात-उल-मुजाहिद्दीन (जेएमबी) पर बांग्‍लादेश में कड़ी कार्रवाई हुई थी। इस आतंकी संगठन के बांग्‍लादेश के उत्‍तर पश्चिमी हिस्‍से में 2500 मॉड्यूल्‍स सक्रिय थे जो सिमट कर 120 मॉड्यूल्‍स पर आ गए।

बांग्‍लादेश का खतरनाक संगठन

संख्‍या भले ही कम हो गई हो लेकिन आज भी यह संगठन काफी खतरनाक संगठन है। संगठन ने काफी धैर्य रखा और एक बार फिर से अपनी वापसी सुनिश्चित की और वह भी एक बड़े अंदाज में। बर्दवान ब्‍लास्‍ट से पहले भी यह संगठन कई बड़े हमलों को अंजाम देने की फिराक में था।

जेएमबी का सिर्फ एक मकसद था और वह था शेख हसीना की सत्‍ता को बांग्‍लादेश से उखाड़ फेंकना। इं‍टेलीजेंस ब्‍यूरो के एक डॉजियर में इस हैरान कर देने वाले सच का खुलासा हुआ है।

इंटेलीजेंस ब्‍यूरो के इस डॉजियर में ऐसी कई जानकारियां मौजूद हैं कि कैसे यह संगठन बांग्‍लादेश की सत्‍ताधारी आवामी लीग को सत्‍ता से बाहर फेंक देने के एकमात्र मकसद से वापस लौटा था।

क्‍यों और कैसे आया भारत

वर्ष 2006 के बाद जब इस संगठन के खिलाफ शुरुआती जांच की गई तो पता चला की अब इस संगठन के बस कुछ ही मॉड्यूल्‍स बाकी बचे हैं। संगठन के आकाओं को इस बात का इल्‍म हो चुका था कि अब उनके लिए बांग्‍लादेश में आसानी से काम करना काफी मुश्किल है।

ऐसे में उन्‍होंने इस देश से बाहर अपनी जमीं को मजबूत करने का इरादा किया। अपने इस इरादे के तहत संगठन ने असम और पश्चिम बंगाल में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी।

संगठन के इरादों को लश्‍कर-ए-तैयबा और अल कायदा जैसे खतरनाक आंतकी संगठनों की मदद चाही थी। इस आतंकी संगठन की ओर से दो दवाह चलाए गए ताकि वह खुद को पुन:स्‍थापित किया जा सके।

हालांकि जेएमबी की ओर से तय किया गया था कि वह संगठन को पुन:स्‍थापित करते समय भी किसी भी तरह के युद्ध में खुद को शामिल नहीं करेंगे जहां पर नागरिकों को सीधा निशाना बनाया जा सके।

क्‍यों बचता आया नागरिकों को निशाना बनाने से

दवाह का मकसद सिर्फ बांग्‍लादेश की सरकार को निशाना बनाना था न कि नागरिकों को निशाना बनाना। संगठन के दो दवाह चलते हैं जिनमें से एक धार्मिक और एक मिलिट्री तक सीमित है।

संगठन ने फैसला लिया कि वह सिर्फ बांग्‍लादेश की सरकार को निशाना बनाएगा। अगर वह नागरिकों को निशाना बनाता है तो उसे जो स्‍थानीय मदद मिल रही है, वह चली जाएगी।

संगठन यह खतरा किसी भी कीमत पर नहीं उठा सकता था। संगठन किसी भी कीमत पर स्‍थानीय समर्थन को नहीं खो सकता था। इसके अलावा अगर वह नागरिकों निशाना बनाता तो उसकी लोकप्रियता कम हो जाती।

ऐसे में संगठन ने इस्‍लामी छात्र शिबिर, अहले हादीथ और जमात-ए-इस्‍लामी की मदद से भर्ती की प्रक्रिया को शुरू किया। जमात-ए-इस्‍लामी ने संगठन को पश्चिम बंगाल के स्‍थानीय नागरिकों से उनका परिचय कराने में मदद की।

जमात-ए-इस्‍लामी पहले से ही सिमी से जुड़ा हुआ था और ऐसे में उसे ऐसा करने में ज्‍यादा मुश्किलें नहीं आई।

अहले हादीथ ने संगठन को नए कैडर्स के लिए बीच उसकी विचारधारा को मजबूत करने का काम किया जबकि इस्‍लामी छात्र शिबिर मदरसा की ओर से संगठन के लिए तमिलनाडु और केरल में जमीन मजबूत करने काम किया गया।

साथ ही यह सुनिश्चित किया गया कि संगठन को मिडिल ईस्‍ट से आने वाले फंड में भी कभी कोई कमी न हो।

महिलाओं का अहम रोल

महिला कैडर्स ने जेएमबी को पुन:स्‍थापित करने में काफी मदद की। महिला कैडर युवाओं को इस संगठन में शामिल होने के लिए प्रोत्‍साहित करतीं। साथ ही यह सुनिश्चित करतीं कि सारे मॉड्यूल्‍स किसी न किसी परिवार से जुड़े रहें।

जेएमबी की रणनीति के तहत परिवार के सभी सदस्‍यों को आपस में जोड़े रखने का काम किया गया ताकि सभी के काम करने का तरीका एक सा रहे। इसके अलावा उन्‍होंने संगठन के कई सदस्‍यों को इस बात के लिए प्रोत्‍साहित किया कि वह इन महिलाओं से शादी कर लें जिससे यह सुनिश्चित हो सके संगठन एक पूरे परिवार की तरह है।

पैसे का खेल
सुरक्षा और जांच एजेंसियों ने अपनी जांच में पाया गया कि संगठन की ओर से दो तरह की रणनीतियों पर काम किया जा रहा था जिससे संगठन के लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा फंड इकट्ठा हो सके।

संगठन की ओर से कुवैत में हुंडी के जरिए पैसा इकट्ठा हो रहा था तो बांग्‍लादेश और सउदी अरब से भी डोनेशंस आ रही थीं। इन दोनों ही तरीकों से संगठन के पास फंड बढ़ता ही चला गया।

जालसाजी के जरिए पैसा इकट्ठा करने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। जेएमबी के कई समर्थ मीडिल इस्‍ट में मौजूद हैं जो संगठन के लिए हुंडी के जरिए पैसा इकट्ठा करने का काम करते हैं।

बांग्‍लादेश कैसे पहुंचता है पैसा

जो कुछ भी पैसा इस संगठन के पास आता है वह मीडिल ईस्‍ट में रहने वाले बिजनेसमेन के जरिए आता है और वह भी हुंडी के जरिए। इस पैसे को बाद में हवाला के जरिए बांग्‍लादेश भेज दिया जाता है।

संगठन काफी हद तक बांग्‍लादेश में फसलों के जरिए होने वाली आय पर भी निर्भर करता है। यह इस संगठन की पूरी मॉडेस ऑपरेंडी है और संगठन इस पर काफी हद तक निर्भर था।

संगठन ने अपनी पहुंच सिर्फ ग्रामीण इलाकों तक ही रखी थी जहां पर किसान उन्‍हें कुछ रकम दे सकें जिससे इस संगठन को आर्थिक मदद मिल सके।

कुछ किसानों की ज्‍यादा पैसा कमाने की चाहत ने इस संगठन को और मदद मिली। इन किसानों ने संगठन के लिए ऐसे लोगों की कमी पूरी की जो बिना झिझक भारत में दाखिल हो सकें।

फेक करेंसी और जेएमबी

देश भर में फेक करेंसी यानी नकली नोट इस संगठन की जरूरतों को पूरा करने का सबसे बड़ा जरिया है। ईडी के अहम एजेंडे में भी यह मुद्दा सबसे ऊपर है।

इंटेलीजेंस ब्‍यूरो के अधिकारियों के मुताबिक वर्ष 2007 से 2008 के बीच फेक करेंसी के जरिए फंड इकट्ठा करने के तरीकों में खासा इजाफा हुआ है। जेएमबी की ओर से पाकिस्‍तान के बैन आतंकी संगठन लश्‍कर-ए-तैयबा के साथ इस मकसद को पूरा करने के लिए हाथ मिलाया गया।

पाक से लश्‍कर के कैडर जेएमबी के सदस्‍यों के साथ मिलकर भारत में नकली मुद्रा को पूरे देश में फैलाने का काम करते।

घुसपैठियों का स्‍वागत जेएमबी में

भारत में दाखिल होने के लिए ऐसे कई घुसपैठिए तैयार बैठे थे जिन्‍हें बस एक मीडियम की जरूरत थी। बांग्‍लादेश में खराब हालात और गरीबी ने उन्‍हें ऐसा करने के लिए मजबूर दिया था।

जेएमबी ने ऐसे लोगों को प्राथमिकता दी। इन घुसपैठियों की मदद से जेएमबी ने भारत में नकली नोटों को फैलाने के अपने काम को बखूबी

अंजाम दिया। वहीं अब इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं कि संगठन को ब्रिटेन से भी मदद मिलने लगी है क्‍यों‍कि वहां पर भी काफी बड़ी तादाद में बांग्‍लादेशी
नागरिक रहते हैं।

जेएमबी और अधिकारियों का ताल्‍लुक

आईबी को इस बात के संकेत भी मिले हैं कि पश्चिम बंगाल में सरकारी जमीन पर मदरसों की स्‍थापना में संगठन को काफी हद तक आर्थिक मदद मिली। सूत्रों की मानें तो कुछ जेएमबी सदस्‍यों और स्‍थानीय अधिकारियों के बीच पैसों का लेनदेन हुआ था।

इसके बाद इन अधिकारियों ने जेएमबी को गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीन पर मदरसों को स्‍थापित करने में मदद की। आईबी के अधिकारियों के मुताबिक जेएमबी के कुछ सदस्‍यों ने ग्राम पंचायत के अधिकारियों की भी मदद ली।

इन ग्राम पंचायतों की वजह से इस संगठन के सदस्‍यों के लिए कई ऐसे दस्‍तावेज तैयार किए गए जिनसे सदस्‍यों की भारतीय नागरिकता साबित हो सके और संगठन को बड़े पैमाने पर मदद मिल सके।

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English summary
Burdwan blast: Why India should be worried about comeback of Bangla terror outfit JMB.
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