आग की लपटों में जली बेटी, तो स्वयं शाहजहां ने की तीमारदारी
वर्ष 1644 की बात है, जब शाही घराने की बेटी के इत्र में अचानक आग लग गई। वहां रखे कपड़े, कमरे में लगे परदे और बाकी का सारा सामान धू-धू कर जलने लगा। इसी आग में फंसी थी एक 13 साल की बच्ची। वहां मौजूद लोगों ने बच्ची की जान को बचा लिया, लेकिन वो बुरी तरह जल गई थी। ये वो राजकुमारी थी, जिसकी तीमारदारी के लिये एक से एक बड़े वैद्य व सहायक वैद्य आये, लेकिन असली तीमारदारी तो शाह जहां ने की। जी हां वही शाह जहां, जिन्होंने ताजमहल बनवाया था।
हम बात कर रहे हैं जहां आरा की, जो शाहजहां और मुमताज़ महल की बेटी थीं। अपने 13वें जन्मदिन के कुछ ही दिन बाद वो बुरी तरह जल गई थीं। शाह जहां अपनी इस बेटी को इतना चाहते थे कि अपने सारे शाही कार्य छोड़ कर वे खुद बेटी की सेवा में जुट गये थे। और तो और जब राजकुमारी ठीक हो गईं, तो शाहजहां उन्हें खुद अजमेर में मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह ले गये।
जहांआरा के जीवन की कहानी
2 अप्रैल यानि आज ही के दिन जहां आरा का जन्म हुआ था। जहां आरा के पैदा होने पर आगरा के लाल किले को फूलों से सजायाया गया। क्यों न हो शाह जहां और मुमताज महल के प्यार की निशानी जो आयी थी। जहां आरा छठे मुगल शासक औरंगजेब की बड़ी बहन थीं।
अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देते वक्त मुमताज महल का इंतकाल हो गया। उनके जाने के तुरंत बाद जहां आरा को मुगल सल्तनत की पदशाह बेगम बनाया गया। मुमताज महल ने दुनिया को अलविदा कहने से पहले दारा शिकोह की शादी तय की थी। उनके जाने के बाद जहां आरा को पहली जिम्मेदारी दारा शिकोह का निकाह करवाने की मिली। जहां आरा ने पूरी मेहनत के साथ दावत-ए-वलीमा का आयोजन करवाया। आयोजन की बागड़ोर उन्हीं के हाथ में थी।
जहांआरा बेगम की तस्वीरें
शाह जहां अपनी बेटी जहां आरा को इतना चाहते थे कि उन्होंने उसे बहुत छोटी सी उम्र में ही सहीबत अल जमानी और पदीशाह बेगम या बेगम साहिब का दर्जा दिया।
जहां आरा मुगल सल्तनत की एक मात्र राजकुमारी थीं, जिन्हें आगरा फोर्ट के बाहर अपने खुद के महल में रहने की इजाजत मिली थी।
उस वक्त मुमताज की कुल संपत्ति 1 करोड़ रुपए की थी, जिसे शाह जहां ने दो भागों में बांटा। पचास लाख की संपत्ति केवल जहां आरा के नाम की और बाकी के पचास लाख की संपत्ति बाकी की संतानों में बांट दी।
1644 में जब जहां आरा एक हादसे में बहुत बुरी तरह जल गईं, तो उसके बाद उन्हें ठीक होने में कई महीने लगे। जब वो पूरी तरह ठीक होकर दरबार में आयीं, तो शाह जहां ने उन्हें बहुत ही कीमती रत्न व आभूषण दिये और सूरत के पोर्ट से आये पूरे राजस्व को जहां आरा के नाम कर दिया।
नहीं पटती थी औरंगजेब से
जहां आरा और औरंगजेब की सोच मेल नहीं खाती थी। कई मुद्दों में उनकी पटती नहीं थी। जहां आरा उन्हें सफद सांप कहती थीं और उन्हें खतरनाक बाघ बुलाती थीं। यही नहीं उनकी छोटी बहन रोशनारा बेगम से भी उनका झगड़ा हुआ था, जिसका असर शासन पर पड़ा था।
राज गद्दी के लिये दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच बड़ा झगड़ा हुआ, जिसमें जहां आरा दारा के साथ थीं और रौशनारा बेगम औरंगजेब के साथ। उस वक्त दारा चाहता था कि वो शहंशाह बने और उस प्रतिबंध को हटाये, जिसके तहत मुगल घराने की बेटियों को शादी करने की मनाही थी। यह प्रतिबंध अकबर ने लगाया था। लेकिन दारा औरंगजेब से जीत नहीं पाया।
औरंगजेब ने शाहजहां को अंतिम समय में आगरा फोर्ट की जेल में कैद कर लिया था। जहां स्वयं जहां आरा पहुंचीं और अपने बीमार पिता की तीमारदारी जेल में रहकर की। जब तक शाहजहां जीवित रहे, तब तक जहां आरा ने जेल में रहकर उनकी तीमारदारी की।
बाद में भले ही जहांआरा और औरंगजेब के बीच मनमुटाव खत्म हो गया, लेकिन जहांआरा ने दोबारा शासन स्वीकार नहीं किया और उनकी जगह रोशनआरा को पदशाह बेगम बना दिया गया।
हिंदुओं के हक के लिये लड़ीं जहां आरा
जहां आरा ने आगे चलकर समाज में अपना एक मुकाम हासिल किया और औरंगजेब के उस कानून के खिलाफ आवाज़ उठायी, जिसमें गैर मुसलमानों से चुनाव-कर वसूलने की बात कही गई थी। जहां आरा का कहना था कि हिंदू-मुसलमान के नाम पर कानून बनाने से देश बंट जायेगा बिखर जायेगा, सब अलग-थलग हो जायेंगे। जहां आरा ने अपने जीवन के अंत तक आम जनता के अधिकारों के लिये आवाज़ उठाई।
उनका निधन 67 वर्ष की आयु में 16 सिसम्बर 1681 को हुआ। उन्हें नई दिल्ली में निजामुद्दीन दरगाह भवन में दफनाया गया।
जहां आरा के जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
- जहां आरा जिस सराय में रुकती थीं, वही आज चांदनी चौक के नाम से मशहूर है।
- जहां आरा फारसी, अरबी, उर्दू और हिंदी की लेखिका थीं।
- मुगल शासन में अपने कार्यकाल के दौरान जहां आरा का मुख्य कार्य मस्जिदों के सही रखरखाव की जिम्मेदारी थी।
- जहां आरा ने स्वयं एक पानी का जहाज तैयार डिजाइन किया था, जिसका नाम सहीबी था।
- जहां आरा का पानी का जहाज हर साल मक्का-मदीना उसकी आमदनी में से हर साल पचास कोनी (उस वक्त की करंसी) मक्का में दान किये जाते थे।
- 1648 में आगरा की जामी मस्जिद को बनवाने में जहां आरा का बड़ा हाथ था।
- जहां आरा ने अजमेर के मुइनुद्दीन चिश्ती की बायोग्राफी लिखी थी।
- चांदनी चौक में जिस सराय में जहां आरा रहती थीं, वो बाद में टाउन हॉल बन गया और वह चौराहा घंटाघर।