विधानसभा चुनाव 2017: जानें उस मशीन की खास बातें जिसके जरिए आप डालेंगे वोट
वर्ष 1982 में पहली बार केरल के परूर विधानसभा में 50 पोलिंग बूथ पर पहली बार हुआ था इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग (ईवीएम) का प्रयोग। इसके बाद वर्ष 2004 से हर चुनावों में हो रहा है इनका प्रयोग।
नई दिल्ली। चार फरवरी से सात मार्च तक देश में विधानसभा चुनावों का एक और दौर पूरा होगा। उत्तर प्रदेश, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे और इन राज्यों में पांच वर्ष तक किसकी बादशाहत कायम रहेगी, इसका पता चलेगा।
1960 से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का चलन
हर बार जब आप वोट डालने जाते हैं तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग (ईवीएम) मशीन से रूबरू होते हैं। अमेरिका, बेल्जियम, ब्राजील, फ्रांस, नीदरलैंड और कई बड़े देशों की तरह भारत में चुनावों के दौरान ईवीएम का प्रयोग होने लगा। आज देश में हर चुनावों में इनके जरिए ही वोटिंग होती है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम वर्ष्र 1960 से दुनिया में मौजूद है। उस समय पंच कार्ड सिस्टम के जरिए वोट डाले जाते थे। सबसे पहले अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का प्रयोग हुआ। वर्ष 1964 में अमेरिका के सात राज्यों में इसी सिस्टम के जरिए राष्ट्रपति चुनावों के लिए लोगों ने वोट डाले। नीदरलैंड और यूनाइटेड किंगडम ने जनता की चिंताओं की वजह से इस सिस्टम को बंद कर दिया। भारत में वर्ष 1982 में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का प्रयोग हुआ जब केरल के परूर विधानसभा चुनावों में जनता ने ईवीएम के जरिए अपने वोट्स डाले। एक नजर डालिए ईवीएम से जुड़ी कुछ खास बातों पर क्योंकि अगले तीन माह के अंदर आप इनकी मदद से ही अपना मुख्यमंत्री चुनेंगे।
ईवीएम से जुड़ी कुछ खास बातें
- मई 1982 में केरल के परूर विधानसभा क्षेत्र में 50 पोलिंग बूथ्स पर पहली बार इनका प्रयोग हुआ।
- वर्ष 1983 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद इसका प्रयोग नहीं हो सका था।
- वर्ष 1988 में संसद में एक कानून में संशोधन किया गया।
- इसके तहत रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 में नया सेक्शन 61ए जोड़ा गया।
- इसके बाद आयोग को वोटिंग मशीन का प्रयोग करने की ताकत मिली।
- नवंबर 1988 से हर संसद और विधानसभा के चुनावों, उप-चुनावों में इसका प्रयोग होता है।
- वर्ष 2004 में 1.75 मिलियन ईवीएम का प्रयोग हुआ और तब से इसे नियमित तौर पर प्रयोग किया जाने लगा।
- जैसे ही पोलिंग पूरी हो जाती है इस पर मौजूद रिजल्ट स्विच को दबाकर तुरंत नतीजे पता लगा सकते हैं।
- यह स्विच कंट्रोल यूनिट के सील्ड कंपार्टमेंट में होता है।
- ईवीएम की कंट्रोल यूनिट और बैलेटिंग यूनिट एक तार के साथ जुड़ी होती हैं।
- कंट्रोल यूनिट पोलिंग ऑफिसर के पास होती है बैलेटिंग यूनिट को वोट डालने वाले कंपार्टमेंट में रखा जाता है।
- ईवीएम अवैध या गैर-कानूनी वोट्स की संभावना को खत्म कर देती है।
- एल्कालाइन बैटरी से चलने वाली ईवीएम को बिना बिजली वाले इलाकों में भी ऑपरेट किया जा सकता है।
- अगर उम्मीदवारों की संख्या 64 से ज्यादा नहीं है तो फिर ईवीएम के जरिए चुनाव कराए जा सकते हैं।
- एक ईवीएम अधिकतम 3,840 वोट्स को एक बार में रिकॉर्ड कर सकती है।
- ईवीएम में किसी भी वोट को 10 वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
- ईवीएम को एक सिक्योरिटी चिप के जरिए सील कर दिया जाता है।
- एक मिनट में ईवीएम के जरिए सिर्फ पांच वोट्स ही डाले जा सकते हैं।
- वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में 10 लाख से भी ज्यादा ईवीएम का प्रयोग हुआ था।
- ईवीएम हाई-एंड-सिक्योरिटी फीचर्स से सुरक्षित रखी जाती हैं।