दिलचस्प : कुछ यूँ हुआ और थम गई हादसों की झड़ी!
मेहमदाबाद (राकेश पंचाल)। जीवन में भक्ति, प्रार्थना और श्रद्धा का बहुत महत्व होता है, लेकिन अक्सर श्रद्धा और अंधश्रद्धा के बीच की पतली भेद रेखा को पहचानना बहुत मुश्किल हो जाता है। अंधश्रद्धा की दुकानें देश में कई जगह चल रही हैं, जिनके खिलाफ उंगली उठाने के कई खतरे हो सकते हैं और इसीलिए आँखें बंद कर उन्हें झेलना पड़ता है। वो तो हमारा नसीब जाग जाए और ऐसी अंधश्रद्धा की किसी दुकान को लेकर हंगामा मचे और दुकान बंद हो जाए, तो ईश्वर की कृपा ही कहलाएगी।
गुजरात में खेडा जिले की मेहमदाबाद तहसील में नेनपुर चौकड़ी गाँव की ओर जाते हुए आपको अनेक साड़ियाँ पेड़ों पर फहरती दिखाई देती हैं। पेड़ों पर झूलती साड़ियाँ वैसे तो देश में कई स्थानों पर देखी जा सकती हैं, लेकिन नेनपुर चौकड़ी गाँव की ओर जाने वाले मार्ग पर जो साड़ियाँ पेड़ों पर फहरा रही हैं, उसके पीछे एक खास कारण है। ये साड़ियाँ आपको यहाँ ठहरने पर मजबूर कर देती हैं। हजारों की संख्या में साड़ियाँ हैं और शायद उन्हें फहराने वालों की संख्या तथा उनकी श्रद्धा की तो गिनती भी करना मुश्किल है।
दरअसल नेनपुर चौकड़ी रोड पर चुड़ैल माता का मंदिर है, जहाँ लोग साड़ियाँ चढ़ाते हैं। यह मंदिर वर्ष 2010 में बना था। इस मंदिर के नेनपुर चौकड़ी रोड पर बनने का कारण भी दिलचस्प है। 2010 से पहले नेनपुर चौकड़ी से नेनपुर गाँव तक की सड़क पर बेतहासा दुर्घटनाएँ होती हैं। इसी कारण एक व्यक्ति को ख्याल आया कि यदि भूत योनि में से चुड़ैल माता का मंदिर बनाया जाए, तो शायद दुर्घटनाएँ रोकी जा सकती हैं। उस व्यक्ति ने गाँव के अग्रणियों से चर्चा की और यहाँ चुड़ैल माता के मंदिर की स्थापना की। इसमें पाँच ईंट तथा श्रृंगार का सामान रख कर छोटी-सी देरी बनाई गई। देरी बनाने के बाद दुर्घटनाएँ थम गईं और स्थानीय लोगों के अनुसार हाल में इस सड़क पर कोई हादसा नहीं हो रहा है।
हादसों से बचने के लिए साड़ियाँ व श्रृंगार
जब चुड़ैल माता का मंदिर बनाया गया, तब अधिकांशतः लोग हादसों से बचने के लिए साड़ियाँ व श्रृंगार चुड़ैल माता को चढ़ाते थे, लेकिन अब तो किसी छोटी-बड़ी समस्या के निवारण के लिए भी लोग यहाँ साड़ी-श्रृंगार चढ़ाते हैं। समग्र राज्य से लोग यहाँ आते हैं। हालाँकि लोगों की समस्याएँ हल हो रही हैं। यही कारण है लोगों की श्रद्धा भी बढ़ रही है।
रविवार को भीड़
चुड़ैल माता के मंदिर के बाहर श्रृंगार-सामान बेचने वाले दो ठेले वाले रोज करीब पाँच सौ रुपए आराम से कमा लेते हैं। रविवार को मंदिर में खास भीडड़ रहती है, जिससे इनका धंधा उस दिन हजार रुपए तक हो जाता है। इस मंदिर में रोजाना करीब दो सौ लोग आते हैं और रविवार को यह संख्या पाँच सौ के करीब पहुँच जाती है।
अन्य पीड़ा भी दूर
जिस चुड़ैल माता की देरी की स्थापना हादसों की रोकथाम के लिए की गई थी, वह अब अन्य पीड़ाएँ भी दूर कर रही है। देरी की स्थापना के बाद से हादसे तो थम गए हैं। अतः लोग अन्य पीड़ाओं के निवारण के लिए भी यहाँ साड़ियाँ लेकर आते हैं और पेड़ों पर लटका जाते हैं।
पैंतीस हजार से ज्यादा साड़ियाँ
वैसे इसे अंधश्रद्धा के नाम पर साड़ियों की बर्बादी कहा जा सकता है। कहने वाले ये भी कहते हैं कि इन साड़ियों को यदि गरीबों में दे दिया जाए, तो उनके काम आ सकती हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि चुड़ैल माता का मंदिर भूत योनि में से बना है और यहाँ चढ़ाई गई किसी भी वस्तु का उपयोग अन्य लोग नहीं कर सकती, जिससे साड़ियों को पेड़ पर लटकाए रखना ही हितावह है। हाल में यहाँ करीब पैंतीस हजार साड़ियाँ पेड़ पर झूल रही हैं और दिन-ब-दिन उनकी संख्या बढ़ती जा रही है।