27 वीं राजपूत बटालियन: वीरता और बुद्धिमत्ता का बेजोड़ उदाहरण
आंचल श्रीवास्तव
बीते दिनों एक विशेषअवसर पर 27वें राजपूत रेजिमेंट के अफसरों के साथ उनका रेजिंग डे मनाने का मौका मिला। 27वीं राजपूत रेजिमेंट का नाम 1999 के भारत पाक कारगिल युद्ध से जोड़ा जाता है। उनलोगों में इतना अनुशासन और इतना धैर्य जो किसी भी जड़ से जड़ीले व्यक्ति को हिला दे। पत्थर को पिघलने की ताकत और पर्वत को हिलाने ही हिम्मत है भारतीय सेना की इस टुकड़ी में। इनके बारे में कुछेक बातें जो आपके सामने रखना चाहती हूं।
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राजा राम की जय से होता है विजय घोष
इनका इतिहास बहुत पुराना नहीं है। उत्तर प्रदेश के फतेहगढ़ में 1988 में इनकी बटालियन का निर्माण हुआ| इनका उद्देश्य है सर्वदा सर्व श्रेष्ठ, कारगिल युद्ध में इन्होने पॉइंट 5770 पर विजय हासिल की थी जिसके बाद ये संयुक्त राष्ट्र के एक मिशन के लिए इथोपिया चले गये। फतेगढ़ में इनका युद्ध स्मारक है जो छतरी के अकार का है और छ स्तम्भों पर खड़ा है जो उस समय हर बटालियन को एक ढाल के रूप में दिखाता है। इनका युद्ध घोष है राजा राम चन्द्र की जय।
कारगिल युद्ध 1999
भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था। इसकी शुरुआत हुई थी 8 मई 1999 से जब पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को कारगिल की चोटी पर देखा गया था। यह लड़ाई 14 जुलाई तक चली थी। माना जाता है कि पाकिस्तान इस ऑपरेशन की 1998 से तैयारी कर रहा था। 8 मई को कारगिल युद्ध शुरू होने के बाद 11 मई से भारतीय वायुसेना की टुकड़ी ने इंडियन आर्मी की मदद करना शुरू कर दिया था।
पॉइंट 5770 की कहानी
जनरल वीपी मालिक ने अपनी किताब ; कारगिल में लिखा है की चलूंग ला का पास ग्योंग ला पास और एनजे 9842 के बीच में है जिसका पूर्वी भाग भारत के और पश्चिमी भाग पाकिस्तान के पास आता है। इसके पश्चिमी ओर पर ही पॉइंट 5770 है। इससे पहले भी पाकिस्तान इस पर कब्जा करने की नापाक कोशिशें कर चूका था, इस पॉइंट पर कब्ज़े से सियाचिन थोइसे एयर बेस और दूसरी जगहों पर भी हमला करने में आसानी होती। इससे भारतीय सेना की सप्लाई लाईने भी होकर जाती थी।
कोई सैनिक नहीं हुए शहीद
दिसम्बर 1997 में पाकिस्तान ने इस पॉइंट पर हमले की योजना बनाई। और 1998 तक वहां पर उनका कब्जा हो गया। 27 वीं राजपूत बटालियन ने उन खड़ी पहाड़ियों पर चढ़ाई कर दी। 27 जून को मंगलवार के दिन उन्हें यह एहसास हो गया था की वो दिन उन्ही का है। दोपहर की 2 बजे हमारे सैनिक बिना किसी के ध्यान में आये उपर पहुँच चुके थे| पाक सैनिक इस बात से एकदम अनभिग्य अपने दैनिक काम में व्यस्त थे। बस फिर क्या था आधे घंटे के अंदर पॉइंट 5770 भारत के कब्जे में वापस था, इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी की २७वीं राजपूत का कोई भी सैनिक शहीद नही हुआ था।
फिल्में भी बयां करतीं है इनकी विजय गाथा
इनकी वीर गाथा पर हमारी फिल्म इंडस्ट्री ने बॉर्डर; loc कारगिल और लक्ष्य जैसी कई फिल्मे बनाई हैं। बेशक हमारी पूरी सेना दुनिया श्रेष्ठतम सेनाओं में से है पर इस टुकड़ी से मिलकर मुझे एक अनोखा अनुभव हुआ। औरतों को जितना सत्कार ये देतें है वो किसी आम आदमी के बस की बात तो कतई नहीं। ये मेरे अपने विचार हैं जो कई स्थानों पर तथ्यों के आधार पर संशोधित किये जा सकते हैं।
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