भारत-पाक के बीच क्या है युद्धविराम समझौता जिसका बार-बार होता है उल्लंघन
क्या था भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 2003 में हुआ युद्धविराम समझौता और आज भी क्यों इस समझौते के बाद भी बना हुआ दोनों देशों के बीच तनाव।
नई दिल्ली। जब से इंडियन आर्मी ने एलओसी पार सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया है तब से ही पाकिस्तान मानों बौखला गया है। उस घटना के बाद से अब तक पाकिस्तान की ओर से 99 बार युद्धविराम को तोड़ा जा चुका है।
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भारत और पाकिस्तान ने वर्ष 2003 में एलओसी पर एक औपचारिक युद्धविराम का ऐलान किया था। भारत और पाकिस्तान के बीच 25 नवंबर 2003 की आधी रात से युद्धविराम लागू हुआ था। लेकिन आज इस युद्धविराम के शायद कोई मायने नहीं रह गए हैं।
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13 वर्ष बाद भी पाक की ओर से लगातार फायरिंग जारी है और जवाब देने के लिए भारत को भी फायरिंग करनी पड़ती है।आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर युद्धविराम होता क्या है और भारत और पाक क्यों इस पर राजी हुए थे?
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क्या होता है युद्धविराम
युद्धविराम किसी भी युद्ध को अस्थायी तौर पर रोकने को जरिया होता है। इसके तहत हुए समझौते में दो पक्ष सीमा पर आक्रामक कार्रवाई न करने का वादा देता हैं। युद्धविराम को आप दो देशों के बीच हुई एक औपचारिक संधि मान सकते हैं। साथ ही इस समझौते के तहत दो देशों के सेनाओं के बीच भी एक अनौपचारिक समझौता होता है। युद्धविराम बॉर्डर पर लड़ाई को खत्म करने के समझौते से कहीं ज्यादा होता है। एक सफल युद्धविराम कभी-कभी शांति समझौते में तब्दील हो जाता है।
कहां हैंं भारत और पाकिस्तान
25 नवंबर 2003 की आधी रात से भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम लागू हुआ। इसका मकसद एलओसी पर 90 के दशक से जारी गोलीबारी को बंद करना था। उस समय लॉस एंजिल्स टाइम्स ने लिखा था कि अमेरिका और यूरोप के दबाव में आकर भारत और पाकिस्तान दोनों युद्धविराम पर राजी हुए हैं। जब यह युद्धविराम समझौता लागू हुआ तब तक भारत में कश्मीर में आतंकवाद नए सिरे पर पहुंच चुका था और दोनों देश कारगिल की जंग का सामना कर चुके थे जिसमें पाक को मुंह की खानी पड़ी थी।
जॉर्ज बुश थे अमेरिकी राष्ट्रपति
भारत और पाकिस्तान के बीच जब सीजफायर लागू हुआ तो उससे पहले वर्ष 2002 में दोनों देश कारगिल के बाद एक और जंग की ओर बढ़ रहे थे। इसकी वजह थी दिसंबर 2001 में भारतीय संसद पर हुआ हमला। भारत ने पाक की इंटेलीजेंस एजेंसी पर संसद हमले की साजिश का आरोप लगा था। उस समय जॉर्ज बुश अमेरिका की सत्ता पर काबिज थे और बुश को हमेशा से पाक के लिए एक नरम रुख रखने वाला राष्ट्रपति माना जाता था।
सीमा पर जंग लड़ रही थीं दोनों देशों की सेनाएं
वर्ष 1989 से कश्मीर घाटी के हालात बिगड़ने लगे थे और एलओसी पर तब से ही स्थिति तनावपूर्ण होने लगी थी। वर्ष 1971 के बाद से दोनों देश एक ऐसे मोड़ पर थे जहां पर सिर्फ और सिर्फ जंग ही नजर आ रही थी। 14 वर्ष बीत जाने के बाद और एक जंग के बाद हालात बेकाबू होने लगे थे। वर्ष 1989 से 2003 तक सीमा पर हुए घमासान ने 65,000 से ज्यादा लोग की जान ले ली थी।
युद्धविराम से शांति की उम्मीद
जुलाई 2001 में उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ आगरा सम्मेलन के दौरान मिले। इस सम्मेलन के बाद दोनों देशों के बीच तनाव में कुछ कमी देखने को मिली। लेकिन संसद पर आतंकी हमले के बाद संबंध फिर से मुश्किल हो गए। जब यह युद्धविराम समझौता हुआ तो विशेषज्ञों ने कहा कि यह समझौता दोनों देशों के बीच काफी अहम है क्योंकि पहला मौका है जब दोनों देशों ने शांति की पेशकश को ठुकराने के बजाय इसे अपनाया है।
बांटी गई थी ईद की मिठाईयां
25 नवंबर 2003 को मंगलवार का दिन था और भारत के विदेश मंत्रालय की ओर बयान जारी किया गया। बयान में कहा गया कि युद्धविराम को एक हफ्ते चली मीटिंग के बाद अंतिम रूप दिया गया है। इस मीटिंग में भारत और पाकिस्तान के सीनियर मिलिट्री ऑफिसर्स मौजूद थे। विदेश मंत्रालय की ओर से बताया गया 450 मील लंबी एलओसी, इंटरनेशनल बॉर्डर और सियाचिन ग्लेशियर पर भी युद्धविराम समझौता लागू होगा। इस समझौते से दो दिन पहल पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री मीर जफरुल्ला खान जमाली ने ईद के मौके पर युद्धविराम की पेशकश की थी। युद्धविराम के बाद ईद की मिठाईयां भी बांटी गई थी।
इंडियन आर्मी ने दी थी चेतावनी
भारत के विदेश मंत्रालय की ओर इस बात को जोर देकर कहा गया कि युद्धविराम की सफलता पाकिस्तान पर निर्भर करती है। पाकिस्तान को आतंकियों को भारत की सीमा में दाखिल होने और इंडियन आर्मी ट्रूप्स और नागरिकों पर हमला करने से रोकना होगा। वहीं इंडियन आर्मी ने पाक को चेतावनी दी थी कि अगर आतंकी सीमा के अंदर दाखिल हुए और हमले की कोशिश की गई तो फिर उन्हें माकूल जवाब दिया जाएगा।
आदत से मजबूर थे परवेज मुशर्रफ
पाक के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की ओर से बार-बार यह भरोसा दिलाया गया कि आतंकियों को सीमा पार करने से रोका जा रहा है, इंडियन आर्मी कमांडर्स ने कहा कि आतंकी रोजाना सीमा पार कर रह हैं और उन्हें पाक सेना का पूरा समर्थन मिल रहा है। इंडियन आर्मी ने पाक आर्मी पर आर्टिलरी फायरिंग को आतंकियों के कवर के तौर पर करार दिया। दिसंबर के मध्य में जब भारी बर्फबारी हुई तो उस समय भी आतंकियों ने सीमा पार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
एलओसी पर बैरियर्स
भारत ने एलओसी पर वर्ष 1990 में बैरियर्स लगाने का काम शुरू किया था लेकिन वर्ष 2000 में इस काम में कई रुकावटें आईं। युद्धविराम समझौते के बाद इस काम को फिर से शुरू किया गया और वर्ष 2004 के अंत बैरियर्स के काम को पूरा कर लिया गया। 30 सितंबर 2004 को कश्मीर घाटी और जम्मू क्षेत्र में एलओसी की फेंसिग का काम पूरा हुआ। इंडियन आर्मी के मुताबिक एलओसी पर फेंसिंग की वजह से आतंकियों की घुसपैठ में कई गुना कमी आई थी। हालांकि पाक एलओसी पर बैरियर्स के काम से खफा हो गया था और उसने कहा कि भारत ऐसा करके द्विपक्षीय संबंघों को बिगाड़न का काम कर रहा है।
हर बार युद्धविराम तोड़ता पाक
29 सितंबर से जहां पाकिस्तान की ओर से 99 बार युद्धविराम को तोड़ा जा चुका है तो वहीं वर्ष 2011 से इसमें इजाफा हो रहा है। वर्ष 2011 में पाक की ओर कुल 62 बार सीजफायर तोड़ा गया। वर्ष 2012 में 114 बार, वर्ष 2013 में 347 बार, वर्ष 2014 में 583 बार और वर्ष 2015 में 30 नवंबर तक 400 बार युद्धविराम तोड़ जा चुका था। पाकिस्तान की ओर से चार वर्षों में युद्धविराम को तोड़ने की घटना में चार गुना तक इजाफा हुआ है।