हर तरफ सज गए हैं भगवती के पंडाल, नवरात्रि पर देखिए मां दुर्गा की 9 तस्वीरें
नई दिल्ली। नवरात्रि का पर्व देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। दुर्गा पंडाल सज गए हैं और हर तरफ भक्ति भजन चल रहे हैं। पंडालों में दुर्गा प्रतिमाओं को लाखों रुपये खर्च कर सजाया जा रहा है।
(सभी तस्वीरें- सुधांशु केसरवानी)
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पंडाल पर आने से पहले ये मूर्तियां लंबी मेहनत से तैयार होती हैं। दिल्ली के काली मंदिर और नोएडा के सेक्टर सात में मूर्तियां बनाने वाले कलाकारों ने अपनी कलाकारी साझा की। ज्यादातर कलाकार दूसरे राज्यों से आते हैं।
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मूर्तियों के लिए मिट्टी जुटाना, पुआल, लकड़ी आदि इकट्ठा करने का काम भी काफी कठिन है। कलाकारों को इसके लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है।
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मूर्तियां बनाने के लिए कलाकार मिट्टी भी बाहर से मंगाते हैं। शहरी इलाकों में अच्छी मिट्टी की उपलब्धता आसान नहीं है। नदियों के किनारे की चिकनी और अच्छी मिट्टी लाने के लिए कलाकार काफी पैसा खर्च करते हैं।
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कई जगहों के लिए ये कलाकार एडवांस बुकिंग पर दुर्गा मूर्तियां बनाते हैं और उनकी सप्लाई करते हैं। दुर्गा मूर्तियां बनाने वाले एक कलाकार राजू सोलंकी ने बताया कि यहां 10 हजार से 50 हजार तक में मूर्तियां बिक जाती हैं।
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1 अक्टूबर से हुए नवरात्रि के त्योहार में नोएडा-दिल्ली में जगह-जगह पर भक्त पंडाल सजाकर मां भगवती की प्रतिमा स्थापित कर चुके हैं। यह पूजन नौ दिनों चलेगा।
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कलाकारों ने बताया कि नवरात्रि में पंडाल सजवाने वाले भक्तों में बड़ी मूर्तियों की मांग ज्यादा देखने को मिली है। भक्तों की डिमांड पर दस से 12 फीट ऊंची मूर्ति भी बनाई जा रही हैं।
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इस बार मूर्तियों के दाम भी बढ़े हैं। दाम में करीब दो से पांच हजार रुपये का इजाफा हुआ है। मूर्ति की सजावट को लेकर भी दाम तय होते हैं। सुनहरे गहने और सुनहरी चुनरी वाली मूर्तियों की भी इस साल ज्यादा रही है और इनके दाम भी ज्यादा रहे हैं। मां दुर्गा और शेर की मूर्ति से ज्यादा महंगी मूर्ति महिषासुर के साथ वाली है।
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मूर्तियों की सजावट को लेकर भी कलाकारों को काफी मेहनत करनी पड़ती है। एक कलाकार ने बताया कि रंगों का चुनाव बड़ी सावधानी से करना पड़ता है। मूर्तियां सजाने में दिन-रात काम होता है।
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मूर्तियां बनाने और सजाने के लिए कलाकार दिन-रात एक करते हैं। महीनों की मेहनत के बाद उन्हें मूर्तियां बेचने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ज्यादा मूर्तियां न बनें इसे लेकर भी उन्हें सावधान रहना पड़ता है क्योंकि बची हुई मूर्तियों को अगले साल तक बचाए रखना भी बड़ी चुनौती होती है।