1962 में भारत-चीन के साथ हुई जंग के ये हैं पांच 'खलनायक'
नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सिक्किम और भूटान के बीच के डोकलाम क्षेत्र की वजह से तनाव बना हुआ है। चीन की मीडिया कई बार इस मुद्दे को लेकर युद्ध की धमकी तक दे चुकी है। दोनों देशों साल 1962 में जंग के मैदान में आमने-सामने आ चुके हैं। 20 अक्टूबर 1962 को जब चीन की सेना ने भारत पर हमला किया था तो भारत उस हमले को झेलने के लिए तैयार नहीं था। इसके बाद युद्ध पर हेंडरसन ब्रुक्स-भगत की रिपोर्ट जारी हुई और इस रिपोर्ट को पूरी तरह से सीक्रेट रखा गया था। रिपोर्ट में भारत की सबसे बड़ी सैन्य हार का विस्तार से विश्लेषण किया गया था। वर्ष 2014 में इस रिपोर्ट के 190 पेज को ऑस्ट्रेलिया के लेखक और पत्रकार नेविले मैक्सवेल ने इंटरनेट पर अपलोड किया था। जंग के समय मैक्सवेल द टाइम्स लंदन के भारत में पत्रकार के तौर पर मौजूद थे। एक नजर डालिए कि ब्रुक्स ने उस जंग के लिए किन लोगों को एक विलेन के तौर पर माना था।
कृष्णा मेनन, रक्षा मंत्री
कृष्णा मेनन जंग के समय रक्षा मंत्री थे और ब्रुक्स ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि उन्हें यह बात जानकार काफी हैरानी हुई थी कि बतौर रक्षा मंत्री वह सैन्य नेतृत्व के साथ हुई वार्ता का ब्यौरा नहीं रखना चाहते थे। उनके इस फैसले की वजह से काफी गंभीर परिणाम हुए क्योंकि किसी भी बड़े फैसले के समय किसी को भी अहम जिम्मेदारी नहीं दी जा सकी। इसकी वजह से जो फैसले लिए गए वह बिल्कुल ही लापरवाही भरे थे और इसका खामियाजा आगे चलकर भुगतना पड़ा।
बीएम मलिक, इंटेलीजेंस ब्यूरों के निदेशक
बीएम मलिक जंग के समय इंटेलीजेंस ब्यूरों (आईबी) के निदेशक थे। हैंडरसन ने अपनी किताब में लिखा कि आईबी के पास जो भी जानकारी थी वह बिल्कुल ही अकाल्पनिक थी और इसे अप्रभावशाली तरीके से आगे बढ़ाया गया। उन्होंने लिखा था कि ऐसा लगता था कि आईबी निदेशक इस बात को मान चुके थे कि चीनी नई पोस्ट पर भारत के कब्जे को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे और किसी भी तरह की सेना का प्रयोग नहीं करेंगे। हैंडरसन ने लिखा था कि बॉर्डर पर चीन की तैयारियों को लेकर आईबी सोती रही और उसने इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया।
लेफ्टिनेंट जनरल बीएम कौल
लेफ्टिनेंट जनरल बीएम कौल सेना की चौथी कोर के कमांडर थे। ब्रुक्स ने कौल के लिए लिखा है कौल ने एकदम असंभव लक्ष्यों के बारे में सोचा। बतौर चीफ ऑफ जनरल स्टाफ जनरल कौल ने सरकार की इस गलतफहमी को मजबूती दी कि चीनी सेना बिल्कुल भी प्रतिक्रिया नहीं देगी। बीएम कौल छुट्टी लेकर दिल्ली आ गए थे। कौल उस समय नार्थ ईस्ट के जनरल ऑफिसर इन कमांड यानी जीओसी थे।
एमजे देसाई विदेश सचिव
विदेश सचिव एमजे देसाई और रक्षा मंत्री कृष्णा कौल के बीच 22 सितंबर 1962 को एक मीटिंग हुई थी। रक्षा मंत्री के कमरे में हुई इस मीटिंग में देसाई ने भी वहीं बात दोहराई कि चीन, भारत की फॉरवर्ड पॉलिसी पर कोई प्रतिक्रियर नहीं देगा लेकिन शायद एक या दो पोस्ट्स पर कब्जा कर लेगा।
ब्रिगेडियर डीके पालित
ब्रिगेडियर डीके पालित जंग के समय डायरेक्टर मिलिट्री ऑपरेशंस थे। अगस्त 1962 में उन्होंने खुलेआम सेना की चौथी इंफ्रेंट्री डिविजन से यह ऐलान कर दिया था कि चीन बिल्कुल प्रतिक्रिया नहीं देगा। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने तो यह तक कह डाला कि चीनी सेना जंग लड़ने के लायक ही नहीं है।