अफजल गुरु और अजमल कसाब नहीं सैनिक के सम्मान के लिए लड़िए!
श्रीनगर। 48 घंटों के ऑपरेशन के बाद जम्मू कश्मीर के पंपोर में चला एनकाउंटर आखिरकार खत्म हो गया। 48 घंटों में इंडियन आर्मी ने 23 वर्ष के कैप्टन पवन कुमार बेनीवाल, 26वर्ष के कैप्टन तुषार महाजन और 32 वर्षीय लांस नायक को गंवा दिया।
वहीं सीआरपीएफ के भी दो जवान इस एनकाउंडटर में शहीद हो गए। इन बहादुरों की शहादत को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। वहीं हैरानी तब होती है जब हर मुद्देपर सोशल मीडिया पर आकर अपनी राय देने वाले लोगों के ग्रुप में से सिर्फ कुछ ही लोग आगे आकर श्रद्धांजलि देते है।
आतंकियों की गोली के साथ कश्मीर के लोगों की गालियां खा रहे थे सैनिक
पिछले वर्ष रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि भारत में अब लोग सैनिकों और पूर्व-सैनिकों को सम्मान देने से कतराने लगे हैं।
अगर यह हकीकत है तो फिर वाकई बहुत दुख की बात है। आगे की स्लाइड्स पर नजर डालिए और सोचिए कि क्या वाकई आप सैनिक को सम्मान देने में पीछे हैं।
रक्षा मंत्री ने मानी बात
रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने पिछले वर्ष कहा था कि इंडियन आर्मी के लिए लोगों की नजर में जो सम्मान पहले था, वह अब नहीं है। रक्षा मंत्री ने इस दौरान उन कमांडिंग ऑफिसर्स का जिक्र किया था जिन्होंने जिला प्रशासन को उनका ध्यान रखने से जुड़ी कुछ चिट्ठियां लिखी थीं।
सिर्फ युद्ध पर ही मिलेगा सम्मान!
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत ने पिछले कई वर्षों से कोई युद्ध नहीं लड़ा और इस वजह से ही देश के लोगों में सेनाओं के लिए सम्मान कम हो रहा है। आपको बता दें कि पाक की ओर से आतंकियों की घुसपैठ में चार गुना तक इजाफा हो चुका है। जरा सोचिए वॉर न होने के बाद भी सुरक्षाबलों के लिए स्थिति वॉर से कम नहीं है।
जेएनयू पर चर्चा शहीद को दो शब्द नहीं
पिछले 15 दिनों से जेएनयू और यहां पर बने माहौल पर 24 घंटे तक चर्चा होती है। यह सब उस दिन शुरू होता है जब सियाचिन से लांस नायक हनुमनथप्पा को दिल्ली लाया जाता है।
अफजल गुरु पर बात करने से पहले सोचिए
आपके पास हर वर्ष फरवरी में अफजल गुरु को फांसी क्यों दी गई, इस पर चर्चा करने के लिए, सेमिनार बुलाने के लिए समय है। आपको बता दें कि कारगिल वॉर में 530 सैनिक शहीद हुए थे। वर्ष2000 से 2012 के बीच 3,987 सैनिकों ने अपनी जान देश के नाम की थी।
सोशल मीडिया खामोश
फिसी भी फिल्म की रिलीज, किसी भी नए प्रॉडक्ट की लांचिंग, किसी एक्टर की ट्वीट को रि-ट्वीट करना, आप एक हैशटैग के साथ सब करते हैं। आप इन सबको ट्रेंडिंग टॉपिक्स में ले आते हैं। फिर आप पंपोर एनकाउंटर और कैप्टन पवन जैसे बहादुरों की शहादत पर खामोश क्यों रहते हैं।
क्या कैंडल लाइट मार्च करेंगे आप
कैप्टन पवन कुमार और कैप्टन तुषार के साथ देश के हर सैनिक और पूर्व सैनिक के पास जेएनयू की डिग्री है। क्यों किसी ऑफिसर की शहादत पर इन कॉलेज कैंपस में कोई कैंडल मार्च या फिर दो मिनट का मौन नहीं होता? क्यों सिर्फ अफजल गुरु और याकूब मेमन जैसे लोगों के लिए समर्थन नजर आता है?
रीयल हीरो के लिए रील हीरो को देखते हैं आप
यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जब एलओसी जैसी फिल्में रिलीज होती हैं, आपको मालूम चलता है कि अभिषेक बच्चन ने जिस कैप्टन विक्रम बत्रा का रोल प्ले किया है, वह कोई रीयल कैरेक्टर था। आपको विक्रम बत्रा जैसे रीयल हीरो की याद दिलाने के लिए अभिषेक बच्चन जैसे कलाकार केसहारा लेना पड़ा।
सैनिकों के मानवाधिकार के लिए कौन लड़ेगा
कारगिल वॉर के समय कैप्टन सौरभ कालिया के साथ पांच जवानों को पाकिस्तान की सेना ने जिस तरह से प्रताड़ित किया, वह आज पूरी दुनिया जानती है। लेकिन आज उनके माता-पिता इंसाफ की लड़ाई अकेले लड़ रहे हैं। आखिर क्यों कभी कोई किसी सैनिक के मानवाधिकार के लिए लड़ाई नहीं लड़ता लेकिन अजमल कसाब जैसे आतंकी के मानवाधिकारों की बात की जाने लगती है?
एनकाउंटर के समय लगते देशविरोधी नारे
जिस समय पंपोर में इंडियन आर्मी और सुरक्षाबल के जवान लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों के साथ लड़ रहे थे, लोगों का हुजूम पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगा रहा था। हैरानी की बात है दिल्ली में जब यह सब होता है, सब शोर मचाते हैं लेकिन जब आतंकियों के साथ मोर्चा लेते समय सैनिकों को अपने लिए गालियां तक सुननी पड़ती है, सब खामोश रहते हैं।
'देश की सेवा के लिए ही बने हैं'
अक्सर आपको नेताओं की ओर से इस तरह के बयान सुनने को मिल जाएंगे। सेना और सुरक्षाबल के जवान देश की सेवा और शहादत के लिए ही बने हैं। छोटे-छोटे बयानों को तिल का ताड़ बना देने वाले बाकी नेता थोड़े दिनों बाद इस तरह के बयानों पर कुछ कहना ही बंद कर देते हैं।