अरे भाई कौन कहता है नहीं पढ़ती दिल्ली?
नई
दिल्ली
(विवेक
शुक्ला)।
पहले
कुछ
आशंका
जताई
जा
रही
थी
कि
राजधानी
में
चल
रहा
विश्व
पुस्तक
मेला
आईसीसी
क्रिकेट
वर्ल्ड
कप
2015
के
कारण
फीका
रहेगा।
पर
यह
नहीं
हुआ।
मेले
में
लगातार
भीड़
बढ़ती
जा
रही
है।
रोज
हजारों
लोग
किताबों
को
देख
रहे
हैं,खरीद
रहे
हैं।
प्रकाशक
बिरादरी
खुश
है।
पहले कहा जा रहा था कि इसमें वर्ल्ड कप के कारण पुस्तक प्रेमी नहीं आ पाएंगे। हालांकि बारत-पाकिसतान के बीच हुए मैच में तो प्रगति में चल रहे पसतक मेले में कम लोग पहुंचे थे। पर बाकी दिनों में तगड़ी भीड़ रही।
हालांकि
जानकारों
का
कहना
है
कि
जिस
दिन
भी
भारत
का
मैच
होगा
या
कोई
और
खास
मैच
होगा,
उस
दिन
इधर
लोग
नहीं
आएंगे।
लोग
टीवी
पर
मैच
देखना
पसंद
करेंगे।
हालांकि
राजधानी
के
प्रकाशन
क्षेत्र
से
जुड़े
रवि
कुमार
कहते
हैं
कि
कायदे
से
पुस्तक
मेले
को
विश्व
कप
से
पहले
ही
आयोजित
कर
लेना
चाहिए
था।
अब
विश्व
कप
शुरू
होने
के
बाद
इधर
लोगों
को
लाना
कठिन
होगा।
अफसोस जताया
इस बीच, हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार प्रताप सहगल ने भी कहा कि यह खुशी की बात है कि मेले में खूब भीड़ जुट रही है। सभी उम्र के लोग पुस्तकें ल रहे हैं। इस बीच, वरिष्ठ कवि और पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि हिंदी के लेखकों का अहंकार उनकी जीभ से भी बड़ा है। आज पुस्तअक मेले में एक लेखक को मैंने कल होने वाले वरवर राव के कार्यक्रम का न्योहता दिया, तो वे ऐंठकर बोले, ''मेरा मानना है कि कोई अच्छाा क्रांतिकारी भले हो सकता है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि वह अच्छां कवि भी हो।
उसी तरह कोई व्येक्ति जिसका विचारधारा से कोई लेना-देना न हो, वह भी अच्छीी कविताएं लिख सकता है।'' ऐसा बोलकर वे अपनी कही बात की स्वतयंभू मौलिकता में लटपटा कर दोहरे हो गए।
काम की किताबें
इस बीच, वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल ने कहा कि वे मेले में जा रहे हैं। मगर एक भी काम की किताब नहीं मिली। वर्नाक्यूलर भाषाओं का मंडप हाल नंबर 12 है। वहां पर हिंदी में कथा, कहानी और कविता व गीत की किताबों की तो भरमार है लेकिन एक भी ढंग की किताब इतिहास, भूगोल व समाजशास्त्र तथा धर्म के समाजशास्त्रीय अध्ययन की नहीं मिली।
साहित्य ही साहित्य
राजकमल
से
लेकर
हिन्द
पाकेट
बुक्स
के
स्टाल
में
साहित्य
की
पुस्तकें
ही
हैं।
उर्दू
और
संस्कृत
के
स्टाल
पर
गीता
और
कुरान
के
असंख्य
संस्करण
थे।
वे
सवाल
पूछते
हैं
कि
क्या
हिंदी
का
मतलब
फिक्शन
और
संस्कृत,
उर्दू
का
मतलब
बस
धर्म
भर
रह
गया
है।
यह
एक
गंभीर
प्रश्न
है
और
भाषा
के
एजेट्स
को
इस
पर
विचार
करना
चाहिए।
एक
और
सज्जन
ने
कहा
कि
मेले
में
अंग्रेजी
में
ज्ञान,
विज्ञान,
इतिहास
और
भूगोल
सब
की
पुस्तकें
उपलब्ध
हैं।
पर
हिंदी
में
नहीं
हैं।
वे
इसकी
वजह
तलाश
रहे
थे।
किताबों का महाकुंभ
महत्वपूर्ण है कि पुस्तकों के इस महाकुंभ में हर वर्ग के पुस्तक प्रेमियों के लिए प्रकाशक किताबें लेकर आए है। इस वर्ष मेले की थीम ‘सूर्योदय: पूवरेत्तर भारत के उभरते स्वर' है। इसके साथ ही, प्रकाशकों, लेखकों तथा पुस्तक प्रेमियों के उत्साह को देखते हुए पिछले वषों की भांति ही इस वर्ष भी मेले में ‘सीईओ स्पीक' का आयोजन किया जा रहा है।
इस बीच,विश्व पुस्तक मेले में सिनेमा की किताब ‘दिल्ली फोर शोज' की जिस तरह से बिक्री होती दिखी,उससे लगा कि नौजवान पाठक साहित्य से ज्यादा फिल्मी किताब पढ़ना चाहता है। दिल्ली फोर शोज के लेखक जिया उस सलाम अपने पाठकों के सामने थे। पाठक सवाल पूछ रहे थे। वे जवाब दे रहे थे। सवाल फिल्मों के बदलते मिजाज से लेकर मल्टीपलेक्स में फिल्म देखने से संबंधित थे।
धड़ाधड़ बिक्री
बातचीत का सिलसिला खत्म हुआ तो उनकी किताब की करीब 100 प्रतियां तुरंत बिक गईं। नेशनल बुक ट्रस्ट की यामिनी ने बताया कि नौजवान पाठक सिनेमा की किताबों में दिलचस्पी लेते हैं। कुछ समय पहले दिलीप कुमार पर उदय तारा नायर की लिखी पुस्तक की तगड़ी सेल हुई थी।