यादों में रीगल: जहां नेहरू ने 1956 में देखी थी ‘चलो दिल्ली’
जिस रीगल थिएटेर का आगाज सन 1932 में हुआ था, उस पर पर्दा गिरने जा रहा है। ये नई दिल्ली का पहला सिनेमा घर है।
नई दिल्ली। जरा सोचिए कि दिल्ली में कुतुब मीनार न रहे या यहां के सबसे खासमखास कमर्शियल प्लेस और बाजार कनॉट प्लेस पर ताला जड़ दिया जाए? अकल्पनीय है यह सब सोचना भी। पर कुछ अकल्पनीय होने जा रहा है यहां पर। राजधानी के फिल्मों के शैदाइयों का सबसे पसंदीदा सिनेमाघर रीगल बंद हो रहा है। आगामी 31 मार्च को इसमें आखिऱी शो देखा जा सकेगा अनुष्का शर्मा की फिल्म फिल्लौरी का।
1932 में शुरू हुआ था रीगल थियेटर
जिस थिएटेर का आगाज सन 1932 में हुआ था, उसपर से पर्दा गिरने जा रहा है। ये नई दिल्ली का पहला सिनेमा घर है। जब नई दिल्ली का निर्माण हुआ और उस क्रम में कनॉट प्लेस सन 1931 में बनकर तैयार हुआ तो रीगल भी बना। यानी नई दिल्ली और रीगल ने एक साथ संसार में कदम रखा। और 31 मार्च को राजधानी का सबसे पुराना सिंगल स्क्रीन थियेटर इतिहास के पन्नों में दफन हो जाएगा।
रीगल में ताला लगने की वजह नोटबंदी के बाद दर्शकों का सिनेमाघरों से दूर होना बताया जा रहा है। जिसके चलते मैनेजमेंट को तगड़ा घाटा हुआ। हालांकि अंदर की बात यह है कि अब इसमें फिल्म प्रेमी आना पसंद नहीं करते। उन्हें ज्यादा आधुनिक बने सिनेमाघरों में जाकर फिल्म देखना पसंद है।
लार्ड माउंटबेटन आते थे रीगल
हालांकि पुरानी दिल्ली,जिसे दिल्ली-6 भी कहते हैं, में तो पहले भी कई सिनेमाघर थे, पर नई दिल्ली में पहला सिनेमाघर रीगल ही था। इधर शुरूआती दौर में अंग्रेजी के नाटक खेले जाते थे। अब भी इधर है नाटकों का स्टेज। इधर ही आकर लार्ड माउंटबेटन और उनकी श्रीमती जी ने कई अंग्रेजी नाटकों को देखा। इधर पहली फिल्म 1939 में गॉन विद द विंड लगी। ये अंग्रेजी फिल्म थी। अब इधर नाटकों के साथ या फिल्में भी दिखाई जाने लगीं। इधर ही आकर देश के पहले राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने कई फिल्में देखी। नेहरु जी ने इधर 1956 में ‘चलो दिल्ली' नाम की फिल्म देखी थी।
जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता विभाग से जुड़े हुए वरिष्ठ पत्रकार जलीस अहमद कहते हैं,मेरा बचपन दिल्ली 6 में गुजरा है। रीगल से बहुत यादें जुड़ी हैं। कोई नयी फिल्म लगते ही मैं और मेरा ज़िगरी दोस्त दौड जाते थे वहां। रीगल के ऊपर रिस्तरां में चवन्नी देकर मशीन से खुद की पसंद का गाना, खुद ही लगाने का रोमांच ही कुछ और था। फिर 2 रुपए में कॉफी के साथ एक बिस्कुट भी मिल जाता था।
रीगल की खास बात ये है कि इसमें कई बॉक्स हैं। जिसमें आप सपरिवार या मित्रों के मजे में पिक्चर देख सकते हैं। यानी आपको एक छोटा स्पेस मिल जाता है,जिसमें बैठकर आप पिक्चर का आनंद ले सकते हैं। इनमें बैठकर कई प्रेम परवान चढ़े। इधर दिल्ली-6 के मुस्लिम परिवारों की औरतें भी अपने परिवारों या सहेलियों के साथ फिल्में देखना पसंद करती थीं।
बॉबी से बूट पालिश तक, राजकपूर से खास रिश्ता
हिन्दी फिल्मों के शो-मैन राजकपूर का तो रीगल से गहरा संबंध रहा। उनकी इधर बहुत सी फिल्में रीलिज हुईं। जिनमें बाबी,जागते रहो, संगम, बूट पालिश रीगल के मैनेजर अमर वर्मा बताते हैं कि उनकी आखिरी पिक्चर लगी थी सत्यम शिव सुंदरम।रीगल को वी. शांताराम भी बहुत पसंद करते थे। इसलिए उनकी दहेज(1950) तथा दो आंखें बारह हाथ(1958) इधर रीलिज हुई। इधर ही कागज के फूल (1959) और मदर इंडिया (1959) जैसी कालजयी जैसी फिल्में भी रीलिज हुई।
रीगल और सेंट स्टीफंस कालेज
सुजान सिंह पार्क, सेट स्टीफंस कालेज और रीगल सिनेमा में क्या समानता है? पहली नजर में इस सवाल का जवाब देना थोड़ा मुशिकल जरूर लगेगा। वजह यह हैकि इन तीनों का चरित्र अलग है। सुजान सिंह पार्क आवासीय इमारत है, सेट स्टीफंस कालेज कालेज है और रीगलसिनेमा घर। जाहिर हैकि इनमें उस तरह से तो कोई समानता नहीं है। पर इन तीनों को जोड़ते हैं वाल्टर जार्ज।वाल्टर जार्ज नई दिल्ली के निर्माण के दौर में इधर आये थे।
यह सन 1920 के आसपास की बातें हैं। जार्ज ने इसके भीतर ठीक ऊपर एक रेस्तरां का भीस्पेस निकाला ताकि फिल्म या नाटक देखने के बाद रेस्तरां में बैठकर कॉफी पीते हुए गप मारसकें। भारत के आजाद होने के बाद भी वे यहां पर ही रहे। उनके प्रयसों से ही राजधानी में स्कूलआफ प्लेनिंग एंड आर्किटेक्चर स्थापित हुआ। भारत में करीब 50 साल गुजारने के बाद जार्जका 1961 में निधन हो गया था।
एक बात और भी दिल्ली की दक्षिण भारतीय आबादी का भी रगील पसंदीदा सिनेमा घर रहा है। दरअसल इधर मार्निंग शो पर दक्षिण भारत की फिल्में दिखाई जाती थीं। इसलिए इधर राजधानी के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले दक्षिण भारतीय परिवार भी यहां पर आकर पिळ्म देखना पसंद करते थे।
गोलचा भी हो चुका है बंद
दरअसल दिल्ली की फिल्मी बिरादरी के लिए रीगल का आने वाले दिनों में बंद होना दूसरा झटका होगा। बीते कुछ हफ्ते पहले गोलचा पर ताले पड़ गए थे। इसे दिल्ली-6 का सबसे आधुनिक सुविधाओं से लैस सिनेमा हॉल माना जाता था। इसका उदघाटन 1954 उपराष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने किया था 1954 में किया था। इसके बंद होने की वजह भी सिंगल स्क्रीन का होना और अपने खर्चे निकाल न पाना माना जा रहा है।
कहते हैं कि बॉलीवुड की कालजयी फिल्म मुगले-ए-आजम इधर रीलिज होने के चार दिन तक दर्शकों को अपनी तरफ खींच नहीं पाई तो लगा कि ये पिट जाएगी। पर उसके बाद इसे जिस तरह से दर्शकों का प्यार मिला उसे अब किसी को बताने की जरूरत नहीं है। इसने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले थे। गोलचा में मधुमति( 1958), मुगले आ आजम( 1960), दोस्ती(1964), गाइड (1965) हसीना मान जाएगी( 1968) जैसी बढी फिल्में चलीं।
देखा जाए तो राजधानी में बीते 6 माह के दौरान 5 सिंगल स्क्रीन थिएटर बंद हो चुके हैं। और रीगल पर ताले लगने के बाद तो दिल्ली में फिल्में देखने का पहले वाला मजा ही नहीं रहेगा।