सायरस मिस्त्री ने टाटा नैनो को लेकर किया बड़ा खुलासा, कई अन्य प्रोजक्ट पर भी उठाए सवाल
सायरस मिस्त्री ने एक ईमेल के जरिए कहा है कि टाटा नैनो कार की परियोजना रतन टाटा द्वारा शुरू की गई थी, जो एक घाटे वाली परियोजना है।
मुंबई। टाटा समूह के चेयरमैन पद से हटाए जाने के बाद सायरस मिस्त्री ने अब रतन टाटा पर ही कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने देश की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो को लेकर भी बड़े खुलासे हुए हैं। सायरस मिस्त्री का कहना था कि उन्हें 'एक निरीह चेयरमैन' की स्थिति में धकेल दिया गया था।
सायरस मिस्त्री ने एक ईमेल के जरिए कहा है कि टाटा नैनो कार की परियोजना रतन टाटा द्वारा शुरू की गई थी, जो एक घाटे वाली परियोजना है। मिस्त्री बोले कि टाटा नैनो को कुछ भावात्मक कारणों के चलते टाटा नैनो को बंद नहीं किया जा सका। टाटा नैनो के चलते ही ग्रुप का घाटा करीब 1000 करोड़ रुपए बढ़ गया है।
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इतना ही नहीं, इसे बंद न करने का एक बड़ा कारण यह भी था कि इसे बंद कर देने से बिजली का कार बनाने वाली एक इकाई को नैनो ग्लाइडर उपलब्ध कराने में दिक्कत होती, इसलिए इसे चलने दिया गया। उन्होंने बताया कि इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली इस इकाई में रतन टाटा की भी हिस्सेदारी है।
सायरस का मानना है कि टाटा नैनो के प्रोजेक्ट को बंद कर देना चाहिए था, क्योंकि वह कंपनी के लिए घाटे का सौदा थी। मिस्त्री ने अपने ईमेल में आरोप लगाते हुए बताया है कि कैसे रतन टाटा ने बिना किसी सलाह के ही टाटा ग्रुप के ज्वाइंट वेंचर एयर एशिया और सिंगापुर एयरलाइन में निवेश करने के लिए मजबूर किया।
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उन्होंने कहा है कि रतन टाटा के दबाव में ही कंपनी ने कई प्रोजेक्ट में निवेश किया। उन्होंने कहा कि उन्हें चेयरमैन के पद से हटाने से पहले कोई बात नहीं की गई और जल्दबाजी में उन्हें हटा दिया गया। मिस्त्री ने उन्हें निकाले जाने को इतिहास की एक अनूठी घटना कहा है।
मिस्त्री ने कहा कि टाटा ग्रुप के इस फैसले ने मुझे चौंका दिया है। उन्होंने बोर्ड की प्रक्रिया को अवैध और गैर कानूनी करार दिया है। मिस्त्री ने आरोप लगाया है कि उन्हें टाटा ग्रुप के बिजनेस के संभालने के लिए पूरी स्वतंत्रता नहीं दी गई थी।
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सायरस मिस्त्री का कहना है कि टाटा संस के आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन में कुछ बड़े बदलाव किए गए थे, जिनके चलते एक चेयरमैन की ताकत में काफी कमी आ गई।
उन्होंने बोर्ड पर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्हें चेयरमैन के पद से हटाने से पहले न तो उनकी सलाह ली गई ना ही उन्हें हटाने के बाद बोलने का मौका दिया गया। इसे उन्होंने इतिहास का एक अजीबो गरीब फैसला कहा है।