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लखनऊ की बेलीगारद जहां है आत्माओं का निवास!

By Ajay Mohan
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अगर आप लखनऊ में हैं और बात अगर भूत, प्रेत व आत्माओं की आ जाये, तो बेलीगारद यानी रेजीडेंसी का नाम जुबां पर जरूर आ जायेगा। जी हां ऐसा इसलिये क्योंकि एक समय था, जब शाम ढलते ही इस जगह पर लोग जाने तक से डरते थे। खास बात यह है कि बेलीगारद उस रास्ते पर स्थ‍ित है, जो पुराने लखनऊ को नये लखनऊ से कनेक्ट करता है। एक समय था, जब हजरतगंज में रहने वाले लोग रात को पुराने लखनऊ की तरफ जाने से डरते थे, कारण था बेलीगारद।

रोंगटे खड़े करने वाली एक सच्ची कहानी

बात 1971 की है, जब लखनऊ विश्वविद्यालय के लाल बहादुर शास्त्र हॉस्टल में पढ़ने वाले तीन दोस्तों के बीच शर्त लगी कि किसमें इतनी हिम्मत है, जो रेजीडेंसी के अंदर रात बिता सके। यहां अकेली रात बिताना हर किसी के बस की बात नहीं, क्योंकि यहां वो कब्रिस्तान है, जिसमें 1857 की जंग में मारे गये अंग्रेजों को दफनाया गया था। सभी कब्रों पर एक-एक पत्थर लगा है और पत्थरों पर मरने वाले का नाम।

खैर उन दोस्तों में से एक ने हिम्मत दिखाई और शर्त कबूल कर ली। अगले दिन सफेद रंग के कुर्ते पैजामे में तीनों दोस्त विश्वविद्यालय से निकले और नदवा कॉलेज और पक्का पुल के रास्ते से होते हुए रेजीडेंसी पहुंचे। रात के करीब 11 बजे थे, सन्नाटा छाया हुआ था। अधपक्की सड़क पर महज एक दो इक्के (पुराने जमाने में चलने वाले तांगे) ही नजर आ रहे थे।

तीनों दोस्त बेलीगारद के अंदर पहुंचे। उन दिनों बेलीगारद के चारों ओर बाउंड्री वॉल टूटी हुई थी, कोई भी आसानी से अंदर जा सकता था। रात के बारह बजते ही तीन में से दो उठे और बोले, ठीक है, दोस्त हम चलते हैं, सुबह मिलेंगे। अपने दोस्त को सूनसान कब्रिस्तान में अकेला छोड़कर दोनों चले आये। [हॉन्टेड हाउस]

सभी के होश फाख्ता हो गये दूसरे दिन

दूसरे दिन सुबह उठते ही जब दोनों दोस्त रेजीडेंसी पहुंचे, तो वहां दोस्त नहीं, उसकी लाश मिली। पुलिस के डर से दोनों फरार हो गये। बाद में पुलिस ने रेजीडेंसी पहुंच कर युवक की लाश को अपने कब्जे में लिया और पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों के हवाले कर दी।

पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट में पता चला कि युवक की मौत हार्ट अटैक से हुई। हार्ट अटैक की वजह वो डर बताया गया, जिसका सामना भूत के साय में वह उस रात कब्रिस्तान में नहीं कर पाया।

रेजीडेंसी से जुड़े रहस्य और कई अन्य बातें पढ़ें स्लाइडर में तस्वीरों के साथ। कुछ रहस्य रोंगटे खड़े करेंगे तो कुछ आपकी आंखें खोल देंगे।

रात को आज भी कोई नहीं जाता

रात को आज भी कोई नहीं जाता

लखनऊ में शहीद स्मारक के सामने एक टूटा हुआ पुराना किला है। इस किले को 1857 में अंग्रेजों ने नेत्सनाबूत कर दिया था। उस वक्त हजारों की संख्या में भारतीय मारे गये थे और सैंकड़ों अंग्रेज भी। मारे गये अंग्रेजों को इसी रेजीडेंसी में दफना दिया गया था। रात को इसके अंदर जाने से आज भी लोग डरते हैं।

रास्ते में मिलता था भूत

रास्ते में मिलता था भूत

आस-पास रहने वाले लोग बताते हैं कि एक समय था, जब कोई इसके सामने से गुजरता था, उसे एक अजीब सा आदमी रास्ते में मिलता और रोक कर माचिस मांगता। अगर माचिस या बीड़ी दे दी, तो वह उसके पीछे पड़ जाता था। वो और कोई नहीं बल्क‍ि प्रेत हुआ करता था। जो कुछ दूर जाते ही ओझल हो जाता था।

सफेद पोषाक में प्रेत, मारो काटो की आवाजें

सफेद पोषाक में प्रेत, मारो काटो की आवाजें

उसी दौर की बात है, जब रेजीडेंसी के पास से गुजरने पर मारो-काटो की आवाजें सुनायी देती थीं। अक्सर वहां पेड़ों पर सफेद पोशाक में प्रेत लटकते हुए दिखाई देते थे। अक्सर बेलीगारद के पीछे लाशें पायी जाती थीं।

वक्त बदला पर डर नहीं

वक्त बदला पर डर नहीं

हालांकि अब समय बदल गया है। सरकार ने बेलीगारद को संरक्ष‍ित करते हुए चारों तरफ बाउंड्री वॉल ख‍िंचवादी और लाइट की व्यवस्था कर दी। अब यह रोड रात भर चलती है। तमाम रौशनी और लाइट के बावजूद लोग इस कब्रिस्तान के अंदर जाने से आज भी डरते हैं।

क्या बताते हैं पुराने लोग

क्या बताते हैं पुराने लोग

बेलीगारद के बारे में दो कहानियां लखनऊ के चौक इलाके में रहने वाले 89 वर्षीय फरहद अंसारी से बातचीत पर आधारित है। फरहद आपने जो पढ़ा उसपर शायद आपको विश्वास नहीं हुआ होगा, लेकिन फरहद अंसारी ने जो अंत में बताया, उसे पढ़ने के बाद आप इन घटनाओं पर यकीन जरूर कर लेंगे।

कौन था वो जो मांगता था बीड़ी

कौन था वो जो मांगता था बीड़ी

बेलीगारद के सामने सूनसान अंधेरी सड़क पर आधी रात को बीड़ी मांगने वाले और कोई नहीं स्थानीय लुटेरे हुआ करते थे। 80 के दशक में जब पुलिस ने अभ‍ियान चलाया तो दो दर्जन से ज्यादा लोगों को पकड़ा, जो रात को लोगों को डरा कर उन्हें लूट लिया करते थे।

कैसे हुई थी 1971 में जब युवक की मौत

कैसे हुई थी 1971 में जब युवक की मौत

फरहद के अनुसार- दो दोस्त अपने जिग्री यार को कब्रिस्तान में घास पर बैठा अकेला छोड़कर चले गये तब, उसके कुछ ही देर बाद जब वो उठा, तो पाया कि किसी ने उसे पीछे से पकड़ा हुआ है। वो डर गया और हार्ट अटैक से मौत हो गई। सुबह पुलिस ने देखा जमीन में एक कील गड़ी हुई थी, जिसमें उसका कुर्ता फंसा हुआ था। यह कील किसी और ने नहीं उसी के दोस्तों ने जाने से पहले कुर्ते के ऊपर से जमीन में गाड़ी थी।

सफेद कपड़ों में प्रेतों का राज

सफेद कपड़ों में प्रेतों का राज

बाकी सफेद कपड़ों में पेड़ पर लटके प्रेतों के बारे में फरहद बताते हैं कि पास में बलरामपुर अस्पताल है, जहां हड्डी रोग विभाग से जब कटने के बाद प्लास्टर निकलता था तो लोग मजा लूटने के लिये पेड़ों पर लटका दिया करते थे।

लाशें पाये जाने का राज

लाशें पाये जाने का राज

रही बात बेलीगारद में लाशें पाये जाने की, तो उसके ठीक पीछे बलरामपुर अस्पताल की मर्चरी है। वहां से निकलने वाली लावारिस लाशें अक्सर वहीं फेंक दी जाती थीं। बाद में पुलिस ने पहरा बढ़ा दिया, तो लाशें फेंकने का सिलसिला बंद हो गया।

सुबह में रेजीडेंसी

सुबह में रेजीडेंसी

भूत प्रेत होता है या नहीं इसका जवाब हमारे पास नहीं है। लेकिन हां ऐसी तमाम कहानियों की वजह से बेलीगारद रात के सन्नाटों में हॉन्टेड प्लेस बन जाती है। लेकिन सुबह की सैर के लिये लखनऊ में इससे अच्छी कोई जगह नहीं।

शिमला की टनल नंबर 33

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English summary
Read haunted stories related ancient monument Residency in Lucknow. It is said to be a haunted place of the city.
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