सावधान! तेजाब से कम नहीं केमिकल वाले रंग
लखनऊ। होली का त्यौहार हो और रंगों की बरसात न हो ऐसा कैसे हो सकता है। उत्तर प्रदेश में होली के सप्ताह भर पहले से लखनऊ वासियों ने रंगों की खरीदारी शुरू कर दी है। लेकिन बाजार में रासायनिक रंगों की भरमार है, जिसे लेकर लोगों को सावधान रहने की जरूरत है, वरना रसायन युक्त रंग आपकी होली के रंग में भंग डाल सकते हैं।
वरिष्ठ
चिकित्सकों
एवं
वैज्ञानिकों
के
अनुसार,
इन
दिनों
बाजारों
में
हर्बल
रंगों
से
कहीं
अधिक
रासायनिक
रंगों
की
भरमार
है,
जो
त्वचा
के
लिए
हानिकारक
होते
हैं।
इसलिए
रंगों
की
खरीदारी
करते
समय
सतर्कता
बरतने
की
जरूरत
है।
वरिष्ठ
चिकित्सक
एस.
के.
निगम
बताते
हैं
कि
बाजार
में
उपलब्ध
ज्यादातर
रंग
भारी
धातु
और
अम्ल
मिले
होते
हैं।
ये
रंग
न
केवल
त्वचा
को
नुकसान
पहुंचाते
हैं,
बल्कि
पेट
में
चले
जाने
पर
पर
उल्टी
से
लेकर
कैंसर
तक
की
वजह
बन
सकते
हैं।
रासायनिक
रंगों
की
बाजार
में
धड़ल्ले
से
हो
रही
बिक्री
काफी
चिंताजनक
है।
लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वरिष्ठ चिकित्सक एस. राठौर ने कहा, "हर्बल रंगों के नाम पर बाजार में जो रंग बेचे जा रहे हैं, उनकी सच्चाई को कहीं परखा नहीं जाता, इसीलिए वे विश्वसनीय भी नहीं हैं।"
चिकित्सक बताते हैं कि सूबे की राजधानी की ही बात करें तो हरा, नीला, लाल, काला, सिल्वर, गुलाल और अबीर में तरह-तरह के रसायन मिले होते हैं और इनकी वजह से लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। हरा रंग यदि आखों में चला जाए तो आखों में जलन से लेकर अंधेपन की समस्या तक सामने आ सकती है। वहीं लाल रंग से त्वचा कैंसर, पक्षाघात की समस्या हो सकती है।
डॉ. अवनीश गुप्ता कहते हैं कि होली के मौके पर रंगों के शरीर के भीतर जाने से कई परेशानियां हो सकती हैं। ये तत्व लम्बे समय तक शरीर में मौजूद रहने पर काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं। गुप्ता के मुताबिक रसायनिक रंगों की जगह लोगों को हर्बल रंगों का उपयोग करना चाहिए। हर्बल कम्पनियां राजधानी में याहियागंज, आईटी चौराहा, अमीनाबाद और पत्रकारपुरम में अपनी दुकानें लगावा रही हैं, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इनका लाभ मिल सके।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।