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भूत प्रेत से बचने के लिये नदी में डालते हैं सिक्‍के!

By रामलाल जयन
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बांदा। इसे अंधविश्वास कहा जाए या रूढि़वादी परम्परा, बुंदेलखंड में नवजात शिशु हो या नई नवेली दुल्हन के नदी पार करने का पहला अवसर, यहां अब भी नदी को धातु का सिक्का भेंट करने की पुरानी परम्परा जीवित है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग इसे प्रेतिक बाधा से निजात पाने की तरकीब तो आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से जुड़े लोग पानी की शुद्धता बनाए रखने का तरीका मानते हैं।

बीसवीं सदी के ब्रिटिश शासन काल में दश में चलने वाले तांबे, पीतल व चांदी के सिक्कों का सरकारी नाम कुछ भी रहा हो, पर बुंदेली इन सिक्कों को ग्वालियर छाप, घोड़ा छाप, रानी विक्टोरिया व बादशाही छाप, धेलही, अधन्ना, दुकरी व छेदहा, चवन्नी व अठन्नी नाम से जानते रहे हैं।

नवजात शिशु के ननिहाल, हाट-बाजार या अस्पताल जाने का मामला हो या नई नवेली दुल्हन के पीहर अथवा नैहर जाने का अवसर हो, घर की बुजुर्ग महिलाएं धोती या गमछे में धातु के फुटकर सिक्के बांधना नहीं भूलती थीं। यह इसलिए नही कि खर्च-खराबा में काम आएंगे, बल्कि इसलिए कि रास्ता बीच कोई नदी या जलाशय मिले तो उसे भेंट करना होगा। इसके पीछे बुजुर्ग लोग भूत-प्रेत बाधा से छुटकारा पाना बताते हैं।

सिक्‍कों से जुड़ी कुछ और रोचक बातें-

भूत-प्रेत का साया

भूत-प्रेत का साया

बांदा जनपद में तेन्दुरा गांव के बुजुर्ग दलित बुलुआ सन् 1903 के कुछ सिक्के दिखाते हुए कहते हैं, "भूत-प्रेत का साया नदी या जलाशय नहीं पार करता, इसलिये नवजात शिशु या नई दुल्हन के सिर से सात बार उतार कर तांबे का सिक्का नदी में डाला जाता था। अब पीतल, तांबा या चांदी के सिक्कों का चलन बंद होने से लोग स्टील के सिक्के नदी को भेंट कर रहे हैं।"

इतिहास गवाह है

इतिहास गवाह है

इसी गांव के धर्म ग्रंथों के जानकार पंडि़त मना महाराज गौतम बताते हैं, "यह परम्परा अनादि काल से चली आई है, चैदह वर्ष के वनवास से सकुशल लौटने पर मां सीता ने सरयू नदी को सिक्के व सोने-चांदी के आभूषण भेंट किए थे।" पनगरा गांव की बुजुर्ग महिला सुखिया बताती है, "अब भी नवजात बच्चे की कमर में टोटके के तौर पर धागे से तांबे का छेद वाला सिक्का बांधा जाता है, ताकि बच्चे को किसी की नजर न लगे।"

सब बकवास है

सब बकवास है

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से जुड़े चिकित्सक बुजुर्गों की इन बातों से इत्तेफाक नहीं रखते, अतर्रा कस्बे के आयुर्वेद चिकित्सक डा. महेन्द्र सिंह कहते हैं, "सिक्कों के साथ प्रेतिक बाधा से निजात पाना महज बकवास है। सच यह है कि विभिन्न धातुओं के मिश्रण से पानी की शुद्धता बरकार रहती है। मानव जीवन के लिए जड़ी-बुटी या धातुओं की आवश्यकता बहुत जरूरी है, इस रूढि़वादी परम्परा से जलाशयों के पानी में लौह, तांबा व पीतल के तत्व समाहित होते रहे हैं। आज भी कई दुर्लभ धातुओं के भस्मों से गम्भीर बीमारी का उपचार किया जाता है।"

टोटके का वैज्ञानिक तर्क

टोटके का वैज्ञानिक तर्क

डा. महेन्द्र सिंह कहते हैं, "डेढ़ दशक पूर्व ग्रामीण लोहे की कड़ाही में सब्जी पकाया करते थे, जिससे शरीर में लौह की कमी नहीं होती थी, अब जमाने के साथ स्टील या एल्मीनियम के बर्तन से पूरा भोजन पकाया जाने लगा, जिससे तकरीबन हर व्यक्ति में लौह की कमी पाई जाती है।" राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय एवं महाविद्यालय अतर्रा के प्राचार्य डा. एसएन सिंह बताते हैं, "तांबे के पात्र (बर्तन) में भरा पानी पीने से जहां पेट के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं, वहीं चर्म रोगों से भी छुटकारा मिलता है। वह कहते हैं कि ‘बुजुर्गों का यह ‘टोटका' आयुर्वेद पद्धति का उपचार ही है।"

Comments
English summary
Many people in Bundelkhand as well as central Uttar Pradesh use to throw coins in river while crossing it. What is the story behind this?
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