जनता और अपना समय बर्बाद कर रहे हैं बाबा रामदेव
हम इस बात को सिद्ध करने से पहले केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की वह बात रखेंगे, जिसमें उन्होंने बाबा के खिलाफ कटाक्ष किया था। खुर्शीद ने कल ही कहा था, "रामलीलायें तो बहुत होती रहती हैं।" इस बात पर बाबा के समर्थक बिदक गये, लेकिन सच पूछिए तो उन्होंने गलत नहीं कहा था। अगर आंदोलन की बात करें तो उसकी परिभाषा के अनुसार आप लोकतांत्रिक ढंग से प्रदर्शन करते हैं, अनशन पर बैठते हैं और धरने पर बैठ जाते हैं। यहां बाबा ने तीन दिन के अनशन की बात कर औपचारिकता पूरी कर दी। सच पूछिए तो जिस सरकार को टीम अन्ना के 8 दिन के अनशन से कोई फर्क नहीं पड़ा उसे तीन दिन के अनशन से क्या फर्क पड़ेगा।
रामदेव के अनशन में चोरों की चांदी, पहले दिन 60 चोरियां
अगर आप कहेंगे कि बाबा धरने पर बैठे हैं, तो धरने पर बैठते वक्त संगीत नहीं बजता है। अगर असली धरना देखना है तो लखनऊ के धरना स्थल पर जाइये जहां लोग अपनी मांगों को लेकर महीनों-सालों तक बैठे रहते हैं। वहां जाइये जहां संत गोपाल दास बैठे रहे। वहां कोई संगीत नहीं बजता है। बारिश से बचने के लिये कोई इंतजाम नहीं होते हैं। दोनों टाइम हल्वा-पूड़ी नहीं मिलता है। सच पूछिए तो अगर बिना टू-स्टार इंतजाम के अगर बाबा रामदेव धरने पर बैठ जायें, तो इनमें से आधी भीड़ ऐसे ही छंट जायेगी।
कहां हो रहा पुलिस का समय बर्बाद
दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी के मुताबिक इस समय सिर्फ राज्य पुलिस के अधिकारियों और अन्य पुलिसकर्मियों की ही नहीं, बल्कि इंफॉर्मेशन ब्यूरो से लेकर लोकल इंटेलीजेंस तक के अधिकारियों की नींदें हराम हैं। क्योंकि आंदोलन चाहे बाबा रामदेव का हो, या अन्ना हजारे का और या फिर किसी पार्टी की रैली। पुलिस की ड्यूटी होती है उन्हें सुरक्षा प्रदान करना।
पुलिस पर सबसे बड़ा दबाव होता है आयोजन स्थल की सुरक्षा को लेकर। ऐसे आयोजन में आतंकी कभी भी किसी वारदात को अंजाम दे सकते हैं। कहीं कोई आतंकी साजिश तो नहीं रच रहा है, इस बात को लेकर खुफिया विभाग पर दबाव ज्यादा होता है। कहीं कोई भगदड़ न मच जाये। कहीं आग न लग जाये, आदि इस प्रकार कई कारण होते हैं, जिनकी वजह से पुलिस हमेशा चिंता में रहती है, क्योंकि कोई भी घटना होने के बाद सबसे पहला दोष पुलिस के मत्थे ही मढ़ा जाता है, फिर चाहे गलती किसी की भी हो। सच पूछिए तो बाबा के आयोजन की वजह से पुलिस का समय व्यर्थ में खर्च हो रहा है।