गलत मेडिकल सर्टिफिकेट लगाकर न करें अमरनाथ यात्रा
और जैसा कि उम्मीद की जा रही थी, उनके मुख अपने सरकारी अमले या श्राइन बोर्ड के लिए कोई चेतावनी या हिदायत नहीं निकली। उलटे उन्होंने यात्रियों को ही नसीहत दे डाली कि वे गलत मेडिकल सर्टिफिकेट लेकर यात्रा पर न निकलें और अपनी सेहत की सही सही स्थिति की जानकारी दें। कुल मिलाकर उन्होंने गेंद खटाक से श्रद्धालुओं के पाले में ही डाल दी और एक तरह से यात्रियों की विश्वसनीयता पर भी बड़ा सा प्रश्न चिन्ह दाग दिया।
परंतु क्या यह मामला महज श्राइन बोर्ड की विज्ञप्तियों में झलकने वाली महामहिम की चिंता अथवा मुख्यमंत्री उमर की गंभीरता रहित टिप्पणियों तक सीमित रह जाएगा? न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद तो संभवतः सरकारी मशीनरी ऐसा करने का दुस्साहस नहीं कर सकेगी। सरकारी एजेंसियों को पड़ताल करनी चाहिए कि इतने यात्री आखिर क्यूं काल का ग्रास बन रहे हैं? कहीं मार्ग की जटिलताओं को कम करने की जिस जिम्मेदारी को श्राइन बोर्ड व राज्य सरकार का अमला संभाले हुए हैं, उसके निर्वहन में कोई बड़ी चूक तो नहीं हो रही है?
क्यों कोताही बरती जा रही है
यह भी पता लगना चाहिए कि यात्रा-मार्ग पर किए जा रहे सरकारी प्रबंध और खासकर स्वास्थ्य सेवाएं क्या अत्याधुनिक हैं? और यदि नहीं तो वे कौन लोग या सरकारी इदारे हैं जो इस मामले में कंजूसी या कोताही बरत रहे हैं? जम्मू के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक के अनुसार वह जब अपने कुछ साथियों के साथ जम्मू के भगवतीनगर स्थित शिविर में प्रबंधों का जायजा लेने गए तो मौके पर कोई वरिष्ठ चिकित्सक मौजूद न पाकर चौंक गए। जो डाक्टर वहां मौजूद थे, उनसे जब यह पूछा गया कि उन्हें सामाजिक संगठनों से किसी खास दवा या मदद की दरकार है तो उन्होंने सहजता से उपलब्ध रहने वाली एक औषधि के सौ टीके मुहैया कराने की बात कही। इससे जाहिर होता है कि कहीं न कहीं तो व्यवस्था में कुछ झोल है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस यात्रा मार्ग बहुत जटिल है। बाबा बहुत उंची कंदरा में विराजमान हैं। रास्ते में आक्सीजन की बहुत कमी हो जाती है। कमजोर या पहले से ही रक्तचाप व हृदयरोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए इस स्थिति से पार पाना चिकित्सकों के अनुसार संभव नहीं हैं। इस स्थिति को देखते हुए ही बोर्ड ने यात्रियों के लिए मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त करना और यात्रा पर निकलने से पहले सेहत की प्राथमिक जांच अनिवार्य की हुई है। मगर यह पता लगाने की आवश्यकता है कि कहीं सेहत संबंधी प्रमाणपत्र व जांच हमारे गले-सडे़ तंत्र की ढेरों अन्य कागजी रस्म-अदायगियों की तरह महज औपचारिकता बन कर तो नहीं रह गए हैं?
डॉक्टरों ने ताक पर रखे सीएम के आदेश
जैसा कि मुख्यमंत्री उमर अंदेशा जता रहे हैं, इस बात की भी संभावना है कि कुछ जुनूनी श्रद्धालु अपने चिकित्सकों की हिदायतों को ताक पर रख कर उनसे जैसे कैसे फिटनेस का प्रमाणपत्र लेकर यात्रा पर निकल पड़ते हों। ऐसा होने से कैसे रोका जाए, यह भी तो आखिर श्राइन बोर्ड समेत समूची सरकारी मशीनरी को ही सोचना होगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि बोर्ड यात्रियों के समक्ष यात्रा की जटिलता और जोखिमों को कायदे से पेश न कर पा रहा हो? लिहाजा,नौका में छेद जहां भी है, उसे तलाशने और उसे बंद करने की जिम्मेदारी सरकार और बोर्ड की ही है। और यह काम लोकसपंर्क विभाग की विज्ञप्तियां तैयार करने और ऑनलाइन चिटर-पिटर करने से कहीं कठिन, गंभीर और महत्वपूर्ण है।
श्रद्धालुओं को यात्रा मार्ग पर यूं प्राण न गंवाने पडें, इसके लिए यात्रा मार्ग को और सुगम बनाने के उपाय क्यों नहीं किए जाते? आधुनिक तकनीक और संसाधनों के उपयोग से ऐसा करना असंभव नहीं है। यदि यह कार्य करने में कहीं धन की किल्लत है तो वह बात भी खुल कर देशवासियों के सामने आनी आवश्यक है। अमरनाथ यात्रियों की संख्या हर साल बढ़ रही है और सरकार यात्रा की अवधि को साल दर साल कम करती जा रही है। व्यवस्था पर यात्रियों की संख्या का बढ़ा हुआ दबाव ही तो कहीं बदइंजामी का सबब नहीं बन रहा? इन तमाम सवालों के सही जवाब बारीकी से उच्च स्तीय जांच करके ही तलाशे जा सकते हैं। पीड़ादायक बात यह है कि राज्य सरकार और श्राइन बोर्ड असल सवालों की तह में जाने के बजाय यात्रा की अवधि को सिकोड़ने जैसे अलगाववादियों के हिड्डन एजेंडे की माला गले में डालकर भोलेपन का नाटक करते प्रतीत होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय की न्याय-दंड का इन पर कितना और क्या असर होगा, यह भी आने वाला समय ही बताएगा।
लखक परिचय- वीरेन्द्र सिंह चौहान एक स्वतंत्र टिप्पणीकार व शिक्षाविद हैं।