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मोदी का नाम देख राजनीति के प‍ंडितों के उड़े होश

By किशोर त्रिवेदी
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Narendra Modi
हाल ही में दो सर्वेक्षण कराये गये जिनके परिणामों ने भारत के राजनीति के बड़े-बड़े पंडितों के होश उड़ा दिये। यहां भी नरेंद्र मोदी का नाम सबसे ऊपर था, जिन्‍हें कुल वोट का 36 फीसदी मिला। वहीं राहुल गांधी को 15 फीसदी। बिहार के नी‍तीश कुमार 12 फीसदी वोट के साथ तीसरे स्‍थान पर रहे। नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के बीच सीधा सवाल किया गया तो 71 फीसदी लोगों ने मोदी के पक्ष में वोट दिया। सबसे मजेदार बात यह है कि 38 फीसदी लोगों ने जेडीयू के बजाये भाजपा को वोट देने की बात कही। जेडीयू के पक्ष में मात्र 16 फीसदी लोग दिखे।

इस लेख से यह मतलब नहीं है कि सर्वे के परिणामों से पूरे देश को एक ही रंग में रंग दिया जाये (क्‍योंकि वे सोशल म‍ीडिया और उसके आगे पहले ही लोगों की पसंद बन चुके हैं)। मैं आपके सामने कुछ विशेष गुण लाना चाहता हूं, जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे, लेकिन अब आपका ध्‍यान आकर्षित करेंगे।

उत्‍तर देने वाले की प्रकृति

मैंने ऊपर लिखा है कि दोनों सर्वेक्षणों में उत्‍तर देने वालों की प्रकृति एकदम अलग है। चेतन भगत ने अपने उत्‍तर सबसे ज्‍यादा जागरूक, तकनीकी रूप से सक्षम समूह से लिये, जबकि लेन्‍स ऑन न्‍यूज ने अपने उत्‍तर बिहार के सुदूर इलाकों में बैठे लोगों से लिये, जिनके लिये इंटरनेट एक सपना है।

दिलचस्‍प बात यह है कि दोनों ही समूह के लोग भाजपा के वोटर समूह से बिलकुल जुदा थे। उनकी विचारधारा भी पार्टी से एकदम अलग थी। भले ही मध्‍यमवर्गीय लोगों के बीच भाजपा की गहरी पैठ है (ज्‍यादातर लोग जिन्‍होंने चेतन भगत के प्रश्‍न के जवाब दिये) लेकिन ये लोग किसी पार्टी के प्रति निष्‍ठावान नहीं होते। वास्‍तव में, 2009 में यह बात वृहद रूप से मानी गई कि लोगों ने 'सिंह इज किंग' डा. मनमोहन सिंह को ऊपर माना न कि उनकी पार्टी या गठबंधन को। इसलिये इससे कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि नरेंद्र मोदी के समर्थन में यह लहर शिक्षित, ऊंची सोच रखने वाले, गतिशील और तकनीकी से युक्‍त वर्ग से आयी है।

इसी प्रकार, बिहार भाजपा के लिये काफी कठिन है। यहां की जातिवादी समीकरण और सामाजिक राजनीति वातावरण ने यहां भाजपा को सर्वाधिक प्रसिद्ध पार्टी नहीं बनने दिया।

उस समर्थन के बावजूद जिसे इंकार नहीं किया जा सकता, पार्टी को एक भ्राता की जरूरत है, जो सत्‍ता को हासिल कर सके। यहां पर लाल कृष्‍ण आडवाणी की याद आती है, 1990 में जिनकी रथयात्रा बिहार में ही रोकी गई थी। इसके बावजूद नरेंद्र मोदी यहां के लोगों के लिए प्रधानमंत्री की दौड़ में सबसे आगे हैं। फिर भी भाजपा को चुनाव की स्थिति में हलके में नहीं लिया जा सकता।

क्‍या है अंतर:

इस लेख में, चेतन भगत ने इस पोल की सीमाओं को ईमानदारी के साथ स्‍वीकार किया है। लेकिन इसमें वोटिंग के तरीके के आधार पर परिणाम को हलके में लेना बहुत बड़ी गलती होगी। किसी भी सर्वेक्षण में 82:5 का अनुपात किसी सुनामी से कम नहीं। राहुल गांधी के जख्‍मों पर से नमक हटाने के लिये कोई भी तथ्‍यों को दरकिनार नहीं कर सकता, चाहे वो वर्ग जो उन्‍हें आगे बढ़ा रहा है।

इसी प्रकार, लेन्‍स ऑन न्‍यूज के सर्वेक्षण में मोदी ने राहुल गांधी को बड़े अंतर से किनारे किया है। वे 21 अंकों से राहुल गांधी से आगे हैं जबिक नीतीश कुमार की तुलना में तीन गुना ऊपर। यह चौंकाने वाली बात है कि अपने घरेलू मैदान में भी मुख्‍यमंत्री अच्‍छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। इसी बात को अगर गुजरात और नरेंद्र मोदी पर लागू करें तो 80 फीसदी लोग मोदी को ही वोट करेंगे, जबकि नीतीश तो क्‍वा‍लीफाई तक नहीं कर पाये। यहां तक दोनों का व्‍यक्तिगत तुलना की जाये तो भी नीतीश उनके आगे कहीं नहीं टिकते हैं।

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English summary
Recent surveys, which proposed Narendra Modi as best candidate for Prime Ministerial post, shocked big politicians.
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