हिसार में बनेगा बैक्टीरिया मुक्त पानी रखने वाला स्टील
इसके अलावा नमक वाले पानी को पीने योग्य बनाने वाले देश के डीसेलीनेशन प्लांट पर भी विशेष प्रकार के ड्यूपलेक्स स्टेनलेस स्टील बनाने का प्रोजक्ट तैयार कर रहा है। इन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए जेएसएल ने हाल ही में राष्ट्रपति से विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित हुए डॉ. लोकेश कुमार सिंघल को मुख्य जिम्मेवारी दी है। यह जानकारी डॉ. सिंघल ने विशेष बातचीत में दी।
डॉ. सिंघल ने ही 1986 में केंद्र सरकार के क्वाइनेज कमेटी के सदस्य बनकर कॉपर और निकल की भारतीय मुद्रा के सिक्कों की जगह अपने ही देश की धातुएं आयरन और क्रोमियम से बनने वाले फैरेटिक स्टेनलैस के सिक्कों को लाने में सफलता हासिल की थी। इससे उन्होंने देश पर हर साल की हजारों करोड़ों रुपए की बचत कराई, जोकि पहले कॉपर और निकल से बनने वाले सिक्कों पर होती थी।
इससे भी हैरानी की बात यह है कि इस मुद्रा को बनाने के लिए उपयोग होने वाला फेरेटिक स्टेनलेस स्टील की सबसे ज्यादा सप्लाई हिसार की जेएसएल यूनिट करती है। उन्होंने बताया कि इसके लिए हिसार की यूनिट से हर वर्ष करीब 18 हजार टन दे रहे हैं, जिसकी वैल्यू करीब 120 करोड़ रुपए है। इसके अलावा भारतीय सिक्के का कच्चा माल बनाने वाली यूनिट में 5 से 7 हजार टन की सप्लाई है।
उन्होंने बताया कि कॉपर और स्टेनलेस स्टील को मिलाकर एक ऐसा स्टील बनाया जा रहा है, जिसमें तांबे की मुख्य विशेषताएं शामिल होंगी। आम तौर पर यह देखा गया है कि लोग तांबे के बर्तनों की मांग मुख्य रूप से पानी को रखने के लिए करते हैं। इसका मुख्य कारण तांबा धातु पानी में बैक्टीरिया को पनपने नहीं देता। उन्होंने कहा कि इस विशेष स्टील से बनने वाले बर्तनों की कीमत भी लोगों की पॉकेट के अनुसार होगी।