यूपी में दांव पर लगी कुंवारों की राजनीति
बहुजन समाज पार्टी की लगभग सभी प्रचार रैलियों में मायावती के अलावा कोई भी प्रमुख वक्ता नहीं होता। वहीं कांग्रेस इन दिनों राहुल गांधी के सहारे अपने प्रचार में दम भर रही है। भाजपा की बात करें तो चुनाव अभियान को मजबूती देने के लिए मध्य प्रदेश से विशेष तौर पर उमा भारती को बुलाया है। इन तीनों में एक समानता है, जो राजनीति का मूल-मंत्र बनती दिखाई दे रही है। वो है कुंवारापन!
जी हां हम यहां उन नेताओं की बात कर रहे हैं, जिन्होंने शादी नहीं की है। सबसे पहला नाम आता है अटल बिहारी वाजपेयी का, जो बिना शादी किये देश के लिए जीवन भर लड़े और तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अटल जी के भाषणों को आज भी प्रचार का माध्यम बनाया जा रहा है। उनकी कविताएं व गीत गाये जा रहे हैं।
वर्तमान राजनीति की बात करें हमारी तीन राजनीतिक देवियों को देखिए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती, तमिलनाडु की जयललिता और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी। तीनों ने अपने-अपने राज्यों में राजनीति की बुलंदियों को छुआ है और तीनों का दबदबा भी कायम है। हमेशा से ही केंद्र की राजनीति में भी उनका खासा योगदान रहा है। सच पूछिए तो इन उदाहरणों से यही सिद्ध होता है कि कुंवारापन भारतीय राजनीति में बुलंदियों तक पहुंचाने का मूलमंत्र है।
जो नेत्रियां यह ठान चुकी हैं कि वो शादी नहीं करेंगी, उनमें से मायावती और उमा भारती ऐसी हैं, जिनका करियर दांव पर लगा हुआ है। बसपा को इस बात की चिंता है कि अगर सत्ता में वापसी नहीं हुई, तो सपनों के महल का क्या होगा, जो पांच सालों में खड़ा किया है। वहीं उमा भारती को भाजपा में ट्रम्प कार्ड के रूप में वापिस लिया गया था, अब अगर चुनावी बिसात में यह ट्रम्प कार्ड फेल हुआ, तो दोबारा बाहर का रास्ता दिखाये जाने की भी आशंका है।
अब अगर कांग्रेस युवराज राहुल गांधी की बात करें तो ऐसा लगता है कि राहुल भईया की सत्ता की चाह के सामने पत्नी की चाह बहुत दूर की बात है। सोचने वाली बात यह है कि उनकी मां सोनिया गांधी में भी बहू की चाह नहीं दिखाई देती। हालांकि पिछले दिनों एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार ने लिखा था कि राहुल गांधी से किसी ज्योतिष ने कहा है कि रावण संहिता के अनुसार अगर उन्होंने शादी की तो वो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक कभी नहीं पहुंचेंगे। इस बात में कितनी सत्यता है, यह तो वो अखबार और आने वाला समय ही बता सकता है, लेकिन यह जरूर है, कि जब तक उत्तर प्रदेश में युवराज की प्रतिष्ठा दांव पर है, तब तक वो शादी का खयाल दिल में कतई नहीं लायेंगे।