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यूपी को महंगा पड़ सकता है राहुल गांधी को हल्‍के में लेना

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rahul gandhi
प्रदीप शुक्‍ल 'स्‍वतंत्र'
इलाहाबाद के फूलपुर से लेकर कुशीनगर के पडरौना तक कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक ही बात दोहराई। मनरेगा, मनरेगा और मनरेगा। इलेक्‍ट्रॉनिक चैनलों ने पहले दिन राहुल गांधी की स्‍पीच का लाइव टेलीकास्‍ट किया, दूसरे दिन भी और तीसरे दिन जब देखा कि राहुल गांधी वही भाषण पढ़ रहे हैं, तो टेलीकास्‍ट रोक कर 'सास बहू और साजिश' और 'वारदात' जैसे कार्यक्रम चला दिये।

इसी तरह अखबारों ने पहले दिन चार कॉलम की खबरें लिखीं, दूसरे दिन तीन और फिर उन्‍हें सिंगल कॉलम में निपटा दिया। किसी ने भी उनकी बात की गहराई को नहीं समझा। सच पूछिए तो राहुल गांधी ने अपने पांच दिन के दौरे में उन्‍होंने वो सच्‍चाई उगली, जिसे उत्‍तर प्रदेश की मुख्‍यमंत्री मायावती व उनके चमचे सुनना तक नहीं चाहते। क्‍योंकि सिर्फ वही जानते हैं कि मनरेगा के लिए भेजा गया पैसा कहां गया।

ग्रामीणों को 100 दिन का रोज़गार उपलब्ध कराने के लिए चलाई जा रही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) उत्तर प्रदेश में आयी तो गरीबों का पेट भरने के लिए लेकिन बसपा नेताओं और यूपी के अधिकारियों ने उससे अपनी जेबें भरना ज्‍यादा पसंद किया। यह आरोप राहुल गांधी ने लगाये हैं।

लेकिन अगर इन आरोपों और सच्‍चाई को देखें तो 12,000 करोड़ रुपए का अंतर दिखाई देगा। जी हां केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी को मनरेगा के लिए 20,000 करोड़ रुपए दिये गये, जिसका लाभ महज 40 फीसदी लोगों को ही प्राप्‍त हो पाया। बाकी की धनराशि कहां गई, यह सवाल केंद्र और यूपी के मंत्रियों के बीच पेंडुलम की तरह झूल रहा है।

हाल ही में जब केन्‍द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए कहा तो मायावती अचानक बिदक गईं और कहने लगीं कि कांग्रेस पार्टी ऐसा करके उनके खिलाफ राजनीति कर रही है। मनरेगा पर सियासत ने जोर पकड़ लिया। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी दाव साधने के लिए मायावती ने चिटठी रूपी बाण छोड़ने शुरू किये जो आज भी जारी हैं। पलट कर जब केंद्र की ओर से जयराम रमेश का तीर (पत्र) आया तो मायावती आग बबूला हो उठीं। देखते ही देखते जयराम रमेश ने मनरेगा का फंड रोकने तक की बात कह डाली।

यह सब इसलिए क्‍योंकि मनरेगा के क्रियांवन पर निगरानी के लिए बनी केन्‍द्रीय रोजगार गारंटी योजना के सदस्‍य संजय दिक्षीत ने सितंबर 2009 की जांच में पाया कि प्रदेश्‍ा के कई जिले में रूपयें का दुरूपयोग हुआ है। जिसके बाद राज्‍य सरकार से ब्‍यौरा मांगा गया, लेकिन राज्‍य सरकार ने आज तक एक पैसे का हिसाब नहीं दिया। बल्कि उल्‍टा मायावती ने यह कह दिया कि केंद्र सरकार ने जो जांच करायी है, उसमें तथ्‍यों का अभाव है।

यह कह कर उन्‍होंने सीबीआई जांच कराने की बात को ठुकरा दिया। लेकिन जनता के सामने स्‍वच्‍छ बने रहने के लिए उन्‍होंने चार जिलों में जांच का आदेश दे भी दिये। हालांकि कांग्रेस पार्टी ने सूचना का अधिकार के तहत यूपी सरकार से मनरेगा के संबंध में जानकारियां मांगी हैं। यानी जानकारियां मिलने के बाद ही परिणाम सामने आ पायेंगे।

खैर यूपी का भविष्‍य निर्धारित करने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर यह मामला कोई छोटा-मोटा नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि जनता का पैसा अगर गया तो कहां गया? यदि यह पैसा नेताओं और अधिकारियों की जेबों में गया है, तो क्‍या इसकी वसूली की जाएगी? क्‍योंकि रोजाना नौकरी में आयकर से लेकर मकान तक और पेट्रोल से लेकर खाने-पीने की चीजों तक जनता देश के विकास के लिए टैक्‍स दे रही है, न कि नेताओं की अय्याशी के लिए? लिहाजा जनता को अपनी एक-एक पाई का हिसाब लेने का पूरा अधिकार है।

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English summary
Taking Rahul Gandhi lightly could be proved very costly for Uttar Pradesh as he is talking about the most serious matter MANREGA scheme which had been handled with huge corruption in the state.
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