क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

उत्तर प्रदेश: सभ्य समाज से हजार गुना बेहतर हैं 'पछइहां लोहार'

By Jaya Nigam
Google Oneindia News

बांदा। उत्तर प्रदेश में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति सभ्य समाज में इतनी बुरी है कि इस पुरुष पधान समाज को सभ्य कहने से भी
गुरेज होता है। लेकिन उत्तर प्रदेश के बेहद पिछड़े माने जाने वाले 'पछइहां लोहार' अपनी औरतों और महिलाओं को इतने बेहतर तरीके से रखते हैं कि हम सभ्य लोगों को शर्म आ जाए। कहने को तो ये कौम गंवार है और अनपढ़ भी लेकिन उनकी शादी के रीति-रिवाज हमसे इतने भिन्न हैं कि उत्तर प्रदेश के हर जाति-धर्म के परिवारों को इन रीति-रिवाजों को अपना कर अपना उद्धार करना चाहिए।

ज्ञात हो कि सन् 1576 में 'हल्दी घाटी' के युद्ध के दौरान चित्तौड़ राज्य अकबर द्वारा छीन लिए जाने के बाद महराणा प्रताप ने अपने बेटे उदय सिंह व मुख्य सलाहकार भामाशाह के साथ अरावली की पहाड़ियों पर निर्वासित जीवन गुजारा था। उनके साथ काफी तादाद में समर्थक भी थे, जिन्हें अब घुमंतू जनजाति 'पछइहां लोहार' के नाम से जाना जाता है।

महाराणा प्रताप जीते जी अकबर की दास्ता नहीं स्वीकार की थी, अपने को महाराणा प्रताप का वंशज बताने वाले पछइहां लोहार विभिन्न कस्बों व देहातों में बैलगाड़ी और बरसाती के सहारे आज भी निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। उनकी कौम की पूरी जिंदगी आज भी बैलगाड़ी और बरसाती में ही बीतती है।

इस जनजाति में वर पक्ष का परिवार कन्या की खोज करते हैं। कन्या पक्ष के लोग वर पक्ष से बाकायदा दान-दहेज तय कर शादी को अंतिम रूप देते हैं। वर पक्ष के घर कन्या पक्ष बारात लेकर जाता है और दहेज भी वसूल करता है। वर पक्ष द्वारा बारातियों की एक माह तक आव-भगत के बाद 'दूल्हे' को 'दुल्हन' के साथ बिदा किया जाता है। एक माह तक चलने वाले बारातियों के आव-भगत में पहले 15 दिन तक कन्या पक्ष की महिलाएं मेहमान होती हैं, बाद में 15 दिन पुरुष वर्ग बाराती होते हैं। बारात में बैलगाड़ी ही एक मात्र साधन होता है। न बैंड बाजा न सारंगी की धुन सुनाई देगी।

भोजन में मांस-मदिरा के अलावा कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। दहेज के रूप में एक जोड़ी बैल, बैलगाड़ी व लोहारगीरी का पूरा सामान कन्या को दिया जाता है। दुल्हन, दूल्हे को बिदा कराकर अपने कुनबे ले आती है। शादी के तुरंत बाद नव दम्पति का बंटवारा भी कर दिया जाता है। बांदा जनपद के बिसंडा कस्बे में अपने कुनबे के साथ रह रहे शम्भू पछइहां का कहना है कि "यह उनकी पीढ़ियों पुरानी परंपरा है, जिसे हरगिज बदला नहीं जा सकता।" साथ ही कहा कि "चित्तौड़गढ़ राज्य वापस न होने तक उनकी कौम यूं ही निर्वासित जीवन गुजारती रहेगी।"

Comments
English summary
Blacksmiths of Banda district of Uttar Pradesh are considered as backward and uncultured people. But their marriage rituals are better and more civilized than civilized people and cultured class.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X