घर में धूल ज्यादा, गलती आपकी नहीं समय की?
धूल की बढ़ी हुई मात्रा दुनियाभर में जलवायु और पारिस्थितिकी या पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है। अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय में पृथ्वी एवं पर्यावरण विज्ञान की सहायक प्रोफेसर नटाली महोवाल्ड के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन में उपलब्ध आंकड़ों और कम्प्यूटर मॉडलिंग का इस्तेमाल करते हुए 20वीं शताब्दी में वायु में मौजूद रहे धूल के कणों की अनुमानित मात्रा ज्ञात की गई।
कॉरनेल विश्वविद्यालय द्वारा जारी किए गए एक वक्तव्य के मुताबिक यह ऐसा पहला अध्ययन है जिसमें एक शताब्दी के दौरान प्राकृतिक रूप से वातावरण में धूल की मौजूदगी घटने या बढ़ने का पता लगाया गया है। रेगिस्तानी धूल और जलवायु एक-दूसरे को आपस में गुथी हुईं कुछ प्रणालियों के जरिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
महोवाल्ड ने सान फ्रांसिस्को में 'अमेरिकन जियोफिजीकल यूनियन' के समक्ष अपना यह शोध प्रस्तुत किया। महोवाल्ड का कहना है, "अब हमारे पास इस बात की कुछ जानकारी है कि रेगिस्तानी धूल किस तरह से बढ़ती या घटती है। जलवायु संवेदनशीलता को समझने के लिए यह वास्तव में बहुत प्रभावकारी हो सकती है।"