योगाभ्यास जैसा है बांसुरी वादन : चौरसिया
नई दिल्ली, 11 नवंबर (आईएएनएस)। प्रख्यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कहते हैं कि बांसुरी वादन और योगाभ्यास करना एक जैसी प्रक्रियाएं हैं। वह कहते हैं कि यही वजह है कि वह बांसुरी वादन के साथ योगाभ्यास भी कर लेते हैं। पहलवानों के परिवार में जन्मे चौरसिया बचपन में चुपके-चुपकेसंगीत का अभ्यास करते थे।
बहत्तर वर्षीय चौरसिया ने आईएएनएस को बताया, "लकड़ी की साधारण सी बांसुरी कहीं भी मिल सकती है। इसमें कई छेदों वाले बांस के एक पाइप में हवा की गति को नियंत्रित किया जाता है। केवल भगवान कृष्ण ही संगीत के इस तरह के वाद्य यंत्र के विषय में सोच सकते थे।" चौरसिया ने यहां फ्रांसीसी दूतावास में बांसुरी वादन पेश किया था।
चौरसिया को बांसुरी की दो बातें बहुत पसंद हैं। इनमें से पहली बात बांसुरी से निकलने वाली ध्वनि दूसरी बांसुरी वादक की नियंत्रित श्वास।
उन्होंने कहा, "यह लगभग योग जैसा होता है। मैं दो काम एक साथ करता हूं, बांसुरी वादन के साथ योगाभ्यास भी होता है।"
इलाहबाद में पहलवानों के घर जन्में चौरसिया कहते हैं कि संगीत उनकी मंजिल था।
वह अपने पिता के साथ अखाड़े में पहलवानी सीखने जाते थे और पड़ोस में अपने एक मित्र के घर बांसुरी वादन का अभ्यास करते थे। वह कहते हैं, "मैं पहलवानी में अच्छा नहीं था। मैं अपने पिता को खुश करने के लिए वहां जाता था, लेकिन वहां जाकर मैंने जो शक्ति और ताकत हासिल की उसी के चलते मैं आज तक बांसुरी वादन कर रहा हूं।"
चौरसिया ने बाद में बाबा अलाउद्दीन खान की बेटी अन्नपूर्णा से संगीत का प्रशिक्षण लिया था।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के वैश्वीकरण और उसे यूरोप तक पहुंचाने के लिए चौरसिया को फ्रांस के 'शैवेलियर डेन्स ल'ऑर्डरी डेस' आर्ट्स एट डेस लेट्रेस' पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
चौरसिया कहते हैं कि शास्त्रीय वाद्य संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए संस्कृति मंत्रालय जैसे सरकारी संस्थानों का सहयोग आवश्यक है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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