टिहरी में जलस्तर बढ़ा, पर्यावरणविदों की चेतावनी
पर्यावरणविद अनिल जोशी का कहना है, "कम से कम 20 से 25 गांवों में पहले ही पानी पहुंच चुका है।" उन्होंने कहा, "यही समय है जब सरकार बांधों की व्यवहारिक उपयोगिता की समीक्षा कर सकती है। अंत में स्थानीय समुदायों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है क्योंकि पानी को छोड़ा नहीं जा सकता और इससे आस-पास के गांव डूबने लगते हैं।"
जोशी ने कहा, "हर दिन लोगों के मरने की खबरें आ रही हैं और यदि बांध से पानी छोड़ा जाता है तो इसके परिणामस्वरूप सभी नदियों खासकर गंगा और यमुना में जलस्तर बढ़ जाएगा और बचे हुए उत्तर भारत में बाढ़ का खतरा पैदा हो जाएगा।"
जोशी ने 'हिमालयन एनवायरॉनमेंटल स्टडीज एंड कन्जर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन' की स्थापना की है जो हिमालय के ग्रामीणों के विकास के लिए काम करता है। उन्होंने सरकार से इस तरह के बांधों की व्यवहारिक उपयोगिता पर एक बार फिर विचार करने के लिए कहा है।
जोशी ने कहा, "इससे जुड़े कई मुद्दे हैं, बाढ़ के साथ आने वाली गाद बांधों में जमा हो जाती है और इस तरह इन बांधों की उम्र कम से कम पांच साल कम हो जाती है। इस साल अत्यधिक बारिश हुई है और भविष्य में ऐसी स्थितियां बार-बार पैदा हो सकती हैं क्योंकि जलवायु में तेजी से बदलाव हो रहा है।"
टिहरी बांध में जलस्तर बढ़ने के साथ नजदीक के गांवों और हरिद्वार, ऋषिकेश जैसे शहरों व आस-पास के इलाकों में खतरा पैदा हो गया है।