नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी के प्रमुख राहुल भटनागर का कहना है, "सनामाचा चानु का 'ए' सैंपल पॉज़िटिव आया है और अब उनको मौक़ा दिया जा रहा है कि अपना 'बी' सैंपल भी टेस्ट करा लें. अगर 'बी' सैंपल भी पॉज़िटिव आता है तो ये केस एंटी डोपिंग डिसप्लनेरी पैनैल को स्थांतरित कर दिया जएगा. फिर पैनैल को जो उचित लगेगा वह निर्णय लिया जाएगा."
इस ख़बर से भारतीय भारोत्तोलन संघ हैरान है. संघ के सचिव सहदेव यादव सनामाचा चानू का नाम लिए बिना इस बात पर अफ़सोस जता रहे हैं. उनका कहना है, "हम लोगों ने बहुत सख़्ती की हुई है, फिर भी ऐसा होता है तो इस बात का हमें बेहद अफ़सोस है." कुछ एथलीट्स का कहना कि उन्हें प्रतिबंधित दवाओं के बारे में सही-सही जानकारी नहीं दी जाती है.
इस आरोप को सहदेव यादव सिरे खारिज़ करते हुए कहते हैं, "एथलीट को सब कुछ पता होता है, इस तरह का आरोप ये लोग बिल्कुल नहीं लगा सकते. इसके लिए हम लोग सेमिनार करके पूरी तरह से ट्रेनिंग देते हैं."
जुर्माना अदा किया था
कर्णम मल्लेश्वरी और कुंजारानी के बाद देश की सबसे सफल महिला भारोत्तोलकों में सनामाचा चानू का नाम शुमार है. 53 किलोग्राम वर्ग की भारोत्तोलक सनामाचा चानू इससे पहले भी वर्ष 2004 के ऐथेंस ओलंपिक में प्रतिबंधित दवा लेने की दोषी पाई गई थीं. तब नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी ने उनपर दो वर्षों के लिए प्रतिबंध लगा दिया था जिसे भारतीय भारोत्तोलन संघ ने जारी रखा था.
भारतीय भारोत्तोलन टीम को राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी क्योंकि भारतीय भारोत्तोलक इससे पहले भी प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के दोषी पाए गए थे. राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने की अनुमति तब मिल पाई थी जब विश्व भारोत्तोलन संघ को लाखों डॉलर का जुर्माना भरा था.
जुर्माने का बड़ा हिस्सा भारतीय खेल मंत्रालय के कहने पर राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति ने भरा था. इसके बावजूद फिर से डोपिंग की ये घटना हैरान करने वाली है और उसमें भी खासतौर सनामाचा चानू के दोबारा दोषी पाए जाने का मतलब, एक उम्दा महिला भारोत्तोलक को खोने जैसा लग रहा है.