मध्य प्रदेश में लक्ष्य से भटका ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है और ग्रामीण आबादी इससे वंचित है। स्वास्थ्य केंद्रों का न तो उन्नयन किया गया है और न ही चिकित्सकों और प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की तैनाती की गई।
विधानसभा में सरकार की ओर से प्रस्तुत किए गए नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन में बताया गया है कि ग्रामीण आबादी के स्वास्थ्य स्तर में सुधार लाने के लिए अप्रैल 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को अमल में लाया गया था। इसके बावजूद स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता के आंकलन के लिए परिवारों का सर्वेक्षण तक नहीं किया गया है।
इस प्रतिवेदन में कहा गया है कि प्रदेश की ग्रामीण आबादी को मिल रही स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। इतना ही नहीं, स्वास्थ्य देखभाल केंद्र का उन्नयन भारतीय लोक स्वास्थ्य मानकों के अनुरूप नहीं किया गया है। संविदा नियुक्तियों की सुविधा दिए जाने के बाद भी चिकित्सकों और सह चिकित्सा कर्मियों की कमी बनी हुई है। इस स्थिति की वास्तविकता को जानने के लिए नमूने के तौर पर 12 जिलों का सर्वेक्षण करने पर पता चला कि 10 जिलों में 101 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बिना चिकित्सकों के पाए गए।
प्रतिवेदन से पता चलता है कि मध्य प्रदेश में मातृ एवं शिशु मृत्यु दर उच्च बनी हुई है। इतना ही नहीं, परिवार नियोजन के लिए अंतराल व टर्मिनल विधि के लिए निर्धारित लक्ष्य भी हासिल नहीं किए जा सके हैं। नमूनों की जांच में पाया गया है कि प्रदेश की 48 से 58 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं प्रथम तिमाही में पंजीकरण नहीं कराती हैं। इसके अलावा प्रत्यावर्तित दोष से ग्रसित 57,151 बच्चों में से सिर्फ 30,715 को ही चश्में प्रदान किए गए हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।