मंदिर वहीं पर, मस्जिद अयोध्या में नहीं : विहिप
अयोध्या, 20 जूलाई (आईएएनएस)। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) की केन्द्रीय प्रबंध समिति की बैठक में श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा श्रीराम जन्मभूमि को एक समझौते के तहत मंदिर और मस्जिद परिसर के रूप में विभाजित करने का प्रयास किया जा रहा है। विहिप ऐसी किसी योजना को मंजूर नहीं करेगी।
उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण में विलम्ब स्वीकार्य है लेकिन सौदेबाजी स्वीकार नहीं है। उन्होंने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि संसार में एक ही है। जो भूमि अधिग्रहीत है उसका असली स्वामित्व रामलला का है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास ने कहा, "कटेंगे, मिटेंगे पर राम मंदिर नहीं छोड़ेंगे। देशभर के साधु-संत जरूरत पड़ने पर धर्म की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य का निवर्हन करेंगे। अखाड़ों की स्थापना ही हिन्दू समाज की रक्षा के लिए की गई है। हिन्दू संगठनों के कार्यकर्ता गांव-गांव में हनुमान की शक्ति का जागरण करेंगे और 1992 के आन्दोलन के दूसरे चरण में मंदिर का निर्माण सुनिश्चित होगा।"
बैठक को सम्बोधित करते हुए विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंहल ने कहा कि रामलला को बहुत दिनों से तिरपाल के नीचे नहीं देखा जा सकता है। हिन्दुओं को संकल्प लेकर मंदिर निर्माण में जुटना होगा। जिस प्रकार से पूर्व में निर्माण के रास्ते की बाधाएं दूर कर दी गईं उसी प्रकार से कर्तव्य शक्ति के बल पर मंदिर का निर्माण करना है।
उन्होंने कहा कि हनुमत जागरण अभियान और उसके बाद देश के आठ हजार प्रखण्डों में आयोजित होने वाले महायज्ञ व जनसभाओं के माध्यम से सम्पूर्ण देश में प्रचण्ड जनशक्ति का जागरण होगा। यदि आवश्यकता पड़ी तो हम इसी अभियान में से विराट आन्दोलन का श्रीगणेश करेंगे।
विहिप के अन्तर्राष्ट्रीय महामंत्री डा. प्रवीण तोगड़िया ने कहा कि श्रीराम मंदिर वहीं बनेगा जिस स्थान पर रामलला विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या की शास्त्रीय सीमा में अब कोई मस्जिद नहीं बनने दी जाएगी और इसी तरह बाबर के नाम पर अब किसी मस्जिद का निर्माण पूरे भारत में नहीं होने देंगे। उन्होंने मंदिर निर्माण आन्दोलन में अब किसी भी दल के राजनेताओं को जगह न दिए जाने की घोषणा की।
दो दिनों तक चली प्रबंध समिति की इस बैठक में कश्मीर, मणिपुर और सिक्किम की वर्तमान परिस्थितियों पर तथा नक्सलवाद की समस्या पर प्रस्ताव पारित किया गया।
कश्मीर पर जारी प्रस्ताव में कहा गया कि आज कश्मीर घाटी की स्थिति अत्यन्त भयावह हो चुकी है। ऐसा लगता है 1980 का दशक, जब कश्मीर में अलगाववादी हिंसक आन्दोलन चरम पर था, अब घाटी में दोहराया जा रहा है। हिन्दू विरोधी व भारत विरोधी भावनाएं बहुत तेजी से भड़काई जा रही हैं।
समिति ने केन्द्र सरकार से मांग की कि वह कश्मीर के सम्बन्ध में ढुलमुल नीति छोड़े व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दुष्प्रचार की चिन्ता किए बिना अलगाववादी तत्वों को सख्ती से कुचलने की नीति पर अमल करे।
नक्सलवाद पर पारित प्रस्ताव में कहा गया कि विहिप देश में बढ़ रहे नक्सलवाद की स्थिति पर घोर चिन्ता प्रकट करता है। 1960 से चल रहे एक विकास विरोधी, जन विरोधी, जघन्य हिंसक रूप से उभरते हुए धारा प्रवाह का नाम है 'नक्सलवाद'। यह नक्सलवादी तालिबान की तरह उनका साथ छोड़ने वालों को, उनके वृद्घ माताओं और बहनों को जिन्दा जलाने लगे हैं। रेलगाड़ियां, बसों, सड़क निर्माण करने वाले वाहनों तथा विद्यालयों को भी बम विस्फोट से नष्ट करने से यह स्पष्ट होता है कि वे विकास व रोजगार की कमी के कारण हथियार नहीं उठा रहे हैं। नेपाल से उत्साहित होकर वे सम्पूर्ण देश को आतंकित करके सत्ता हथियाना चाहते हैं।
प्रस्ताव में कहा गया कि भ्रम में पड़ी भारत सरकार कोई ठोस नक्सल विरोधी रणनीति तैयार नहीं कर पाई है। नक्सलवाद को कानून की समस्या न मानकर उसे आर्थिक विकास के साथ जोड़कर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह असमंजसता का ही परिचय दे रहे हैं। माओवाद भारत के विरुद्घ खुला युद्घ है और युद्घ में सेना ही लड़ा करती है।
राज्य सरकार व केन्द्र सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाने की जगह इसे एक राष्ट्रीय संकट के रूप में स्वीकार करे तथा इनको समाप्त करने के लिए सम्बंधित योजना बनाए, जिसमें समाज को भी सहयोगी बनाए।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।