मजार-मंदिर दोनों जगह टेकते हैं माथा
ऐसी मान्यता ये है कि अगर दोनों जगह प्रार्थना नहीं की गई तो मन्नत पूरी नहीं होती है। स्थानीय लोगों की मानें ये मजार और मंदिर करीब 100 साल पुराने है। हालांकि मजार पहले बनी थी और मंदिर का निर्माण बाद में हुआ था। 60 वर्षीय इकबाल अहमद कहते हैं कि यहां पर एक फकीर जिंद पीर बाबा हुआ करते थे जिनके पास दैविक शक्तियां थी। वो चुटकियों में बड़े-बड़े बीमारियों और रोगों से लोगों को मुक्ति दिला देते थे। मुसलमान के साथ-साथ बड़ी संख्या में हिंदू उन्हें मानने लगे।
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धीरे-धीरे पीर बाबा को लेकर हिंदुओं की भक्ति का ये आलम हो गया कि वे बाबा की मूर्ति बनाकर पूजा करने लगे। इस पर बाबा ने हिंदुओं से कहा कि वे मूर्ति बनाकर पूजा केवल अपने ईष्ट देवों की ही करें।
कुछ समय पश्चात पीर बाबा ने मुसलमान भक्तों से वादा लिया कि उनके निधन के बाद वे उनकी मजार के पास हिंदू भक्तों के लिए एक मंदिर का निर्माण कराएंगे। पीर बाबा के निधन के बाद मुसलमानों ने उनकी मजार बनाई और कुछ समय बाद बाबा के किये वादे के मुताबिक हिंदुओं से उसी के बगल में पड़ी जमीन पर एक मंदिर बनाने का आमंत्रण दिया। बाद में हिंदुओं ने मुसलमानों के सहयोग से मजार के बगल में हनुमान मंदिर का निर्माण करवाया।
स्थानीय मोबीन अहमद कहते हैं कि अगर कोई भक्त केवल मजार या मंदिर में से एक पर ही पूजा अर्चना कर मन्नत मांगता है, तो उसकी मन्नत नहीं पूरी होती है। दोनों जगह सिर झुकाने के बाद मांगी गई मुराद ही यहां पूरी होती है।
तारक प्रसाद के मुताबिक आप कह सकते हैं कि यह यहां की परंपरा है कि जो श्रद्धालु आता है वह पीर बाबा की मजार और हनुमान मंदिर दोनों में जाकर मत्था टेकता है। वैसे तो हर दिन यहां पर भक्तों की भीड़ सातों दिन रहती है, लेकिन मंगलवार और गुरूवार को भक्तों के रेला लगता है। लोगों का मानना है कि इन दोनों दिन पीर बाबा और हनुमान जी की भक्तों पर खास कृपा होती है।
स्थानीय लोगों को उनके गांव में यह धार्मिक होने पर गर्व है। याकूब कुरैशी कहते हैं हमें गर्व है कि हम ऐसे गांव में रहते हैं जो कौमी एकता की मिसाल पेश करता है। यह स्थान उन लोगों को सीख देता है जो अपने थोड़े से निजी स्वार्थ के लिए हिंदू और मुसलमानों को आपस में लड़ाते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।