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आखिर क्यों की जाती है परिक्रमा, क्या है इसका महत्व?

सिर्फ देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, अश्वत्थ, तुलसी समेत अन्य शुभ प्रतीक पेड़ों की परिक्रमा भी की जाती है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति को भी साक्षात देव समान माना गया है।

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। हिंदू पूजा पद्धति में देवी-देवता की परिक्रमा करने का विधान है। इसीलिए मंदिरों में परिक्रमा पथ बनाए जाते हैं। सिर्फ देवी-देवताओं की ही नहीं पीपल, अश्वत्थ, तुलसी समेत अन्य शुभ प्रतीक पेड़ों के अलावा, नर्मदा, गंगा आदि की परिक्रमा भी की जाती है क्योंकि सनातन धर्म में प्रकृति को भी साक्षात देव समान माना गया है।

आइये जानते हैं परिक्रमा क्यों जरूरी है, किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा की जाना चाहिए, इसका महत्व क्या है और परिक्रमा करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

क्या है मान्यता

क्या है मान्यता

लोग कहते हैं कि परिक्रमा करनी जरूरी है, लेकिन क्या कभी आपने सोच है कि ऐसा क्यों? परिक्रमा, जिसे संस्कृत में प्रदक्षिणा कहा जाता है, इसे प्रभु की उपासना करने का माध्यम माना गया है। ऋगुवेद में प्रदक्षिणा के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। ऋग्वेद के अनुसार प्रदक्षिणा शब्द को दो भागों प्रा और दक्षिणा में विभाजित किया गया है। इस शब्द में मौजूद प्रा से तात्पर्य है आगे बढ़ना और दक्षिणा मतलब चार दिशाओं में से एक दक्षिण की दिशा, यानी परिक्रमा का अर्थ हुआ दक्षिण दिशा की ओर बढ़ते हुए देवी-देवता की उपासना करना। इस परिक्रमा के दौरान प्रभु हमारे दाईं ओर गर्भ गृह में विराजमान होते हैं। लेकिन यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि प्रदक्षिणा को दक्षिण दिशा में ही करने का नियम क्यों बनाया गया है?

दक्षिण दिशा में हो परिक्रमा

दक्षिण दिशा में हो परिक्रमा

मान्यता है कि परिक्रमा हमेशा घड़ी की सुई की दिशा में ही की जाती है तभी हम दक्षिण दिशा की ओर आगे बढ़ते हैं। यहां पर घड़ी की सूई की दिशा में परिक्रमा करने का भी महत्व है। हिंदू मान्यताओं के आधार पर ईश्वर हमेशा मध्य में उपस्थित होते हैं। यह स्थान प्रभु के केंद्रित रहने का अनुभव प्रदान करता है। यह बीच का स्थान हमेशा एक ही रहता है और यदि हम इसी स्थान से गोलाकार दिशा में चलें तो हमारा और भगवान के बीच का अंतर एक ही रहता है। यह फासला ना बढ़ता है और ना ही घटता है। इससे मनुष्य को ईश्वर से दूर होने का भी आभास नहीं होता और उसमें यह भावना बनी रहती है कि प्रभु उसके आसपास ही हैं।

परिक्रमा करने का लाभ

परिक्रमा करने का लाभ

यदि आप परिक्रमा करने के लाभ जानेंगे तो प्रसन्न हो जाएंगे। परिक्रमा तो भले ही आप करते होंगे, लेकिन शायद ही इससे मिलने वाले आध्यात्मिक एवं शारीरिक फायदों को जानते होंगे। परिक्रमा करने से हमारे स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है। यूं तो हम मानते ही हैं कि प्रत्येक धार्मिक स्थल का वातावरण काफी सुखद होता है, लेकिन इसे हम मात्र श्रद्धा का नाम देते हैं। किंतु वैज्ञानिकों ने इस बात को काफी विस्तार से समझा एवं समझाया भी है। उनके अनुसार प्रत्येक धार्मिक स्थल पर कुछ विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है। यह ऊर्जा मंत्रों एवं धार्मिक उपदेशों के उच्चारण से पैदा होती है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक स्थल पर जाकर मानसिक शांति मिलती है। परिक्रमा से मिलने वाला फायदा भी इसी तथ्य से जुड़ा है। जो भी व्यक्ति किसी धार्मिक स्थान की परिक्रमा करता है, उसे वहां मौजूद सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। यह ऊर्जा हमें जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। इस तरह ना केवल आध्यात्मिक वरन् मनुष्य के शरीर को भी वैज्ञानिक रूप से लाभ देती है परिक्रमा।

किसकी कितनी बार की जानी चाहिए परिक्रमा?

किसकी कितनी बार की जानी चाहिए परिक्रमा?

जिस प्रकार हिंदू धर्म में हर धार्मिक कार्य एक सम्पूर्ण विधि-विधान से युक्त होता है, ठीक इसी प्रकार से परिक्रमा करने के लिए भी नियम बनाए गए हैं। परिक्रमा किस तरह से की जानी चाहिए, कितनी बार की जाए यह सब जानना जरूरी है। तभी आपके द्वारा की गई परिक्रमा फलित सिद्ध होगी। यहां हम आपको देवी-देवता की परिक्रमा कितनी बार की जानी चाहिए, इसकी जानकारी देंगे।

  • आदि शक्ति के किसी भी स्वरूप की, मां दुर्गा, मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां पार्वती, इत्यादि किसी भी रूप की परिक्रमा केवल एक ही बार की जानी चाहिए।
  • भगवान विष्णु एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। गणेशजी और हनुमानजी की तीन परिक्रमा करने का विधान है। शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए, क्योंकि शिवजी के अभिषेक की धारा को लांघना अशुभ माना जाता है।

परिक्रमा में इन बातों का रखें ध्यान

परिक्रमा में इन बातों का रखें ध्यान

परिक्रमा कितनी बार करें यह तो आपने जान लिया, लेकिन परिक्रमा करते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान भी रखें। क्योंकि इस दौरान की गई गलतियां आपकी परिक्रमा को बेकार कर सकती हैं। परिक्रमा करने के आपके उद्देश्य को निष्फल कर सकती हैं। आप जिस भी देवी-देवता की परिक्रमा कर रहे हों, उनके मंत्रों का जप करना चाहिए। इससे आपको अधिक लाभ मिलेगा। भगवान की परिक्रमा करते समय मन में बुराई, क्रोध, तनाव जैसे भाव नहीं होना चाहिए। परिक्रमा स्वयं आपका मन शांत जरूर करती है, लेकिन उससे पहले भी आपको खुद को शांत करना होगा। एक बात का विशेष ध्यान रखें, परिक्रमा हमेशा नंगे पैर ही करें। परिक्रमा शास्त्रों के अनुसार एक पवित्र कार्य है, इसलिए पैरों में चप्पल पहनकर उसे अशुद्ध नहीं किया जाना चाहिए। परिक्रमा करते समय बातें नहीं करना चाहिए। शांत मन से परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय तुलसी, रुद्राक्ष आदि की माला पहनेंगे तो बहुत शुभ रहता है। गीले वस्त्रों से परिक्रमा करना शुभ माना गया है, और एक बार बदन गीला करने से जल्द ही सूख जाता है। इसलिए वस्त्र ही गीले कर लिए जाते हैं।

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English summary
Pradakshina (Sanskrit), meaning circumambulation, consists of walking around in a ‘circle’ as a form of worship in Hindu ceremonies in India. Here is Importance.
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