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क्या है सृष्टि का काल विभाजन और 84 लाख योनियों में जीव का भटकना?

By पं. गजेंद्र शर्मा
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नई दिल्ली। संसार की उत्पत्ति और उसके अंत का काल निर्धारण हर विषय के अनुसार भिन्न रूपों, भिन्न नामों, भिन्न गणनाओं के आधार पर किया जाता है।

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धार्मिक चर्चाओं में हम अक्सर सुनते हैं कि कलियुग है भाई! अब तो पाप बढ़ना ही है। इसी तरह हमारे बुजुर्ग कोई भी गलत काम करने पर कहते सुनाई पड़ते हैं कि पाप करोगे तो कीड़े मकोड़े की योनि में जन्म लेना पड़ेगा।

आखिर क्या है ये युग चर्चा और पुनर्जन्म में अलग-अलग रूपों में जन्म लेने की अवधारणा? आइए, जानते हैं-

सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर उसके अंत की गणना के आधार पर इसे चार भागों में बांटा गया है जिन्हें चार युग कहते हैं।

सतयुग

सतयुग

सतयुग को सृष्टि का सर्वाधिक शुद्ध काल माना जाता है। यह युग सत्व गुण प्रधान था। इस युग में केवल विद्वान साधु-संत ही हुआ करते थे। इनका पूरा समय भगवान के ध्यान और अध्ययन में व्यतीत होता था। दुर्भावनाओं का इस युग में जन्म ही नहीं हुआ था। कहा जाता है कि इसी युग में हिंदु धर्म के महान आधार ग्रंथों चारों वेदों का निर्माण हुआ था और स्वयं दैव वाणी ने वेदों की ऋचाओं का संतों को ज्ञान कराया था। इस युग की आयु 1728000 वर्ष मानी गई है।

त्रेतायुग

त्रेतायुग

सृष्टि का दूसरा युग त्रेतायुग के नाम से जाना जाता है। यह रजोगुण प्रधान काल था। इस काल में राज्य शासन का आविर्भाव हो चुका था। जनसंख्या बढ़ने के साथ उसे निर्देशित करने और व्यवस्थित करने के लिए राजा की पदस्थापना हो चुकी थी। माना जाता है कि इस काल में ही भगवान राम ने जन्म लिया था और असुरों का संहार कर पृथ्वी को आतंक से मुक्त किया था। इस युग की आयु 1296000 वर्ष मानी गई है।

द्वापर युग

द्वापर युग

सृष्टि के काल निर्धारण का तीसरा काल द्वापर युग के नाम से जाना जाता हैैै,इस काल में भगवान कृष्ण ने जन्म लिया था। इस युग में हर तरह की बुराई, दुर्भावना जन्म ले चुकी थी। इसी युग के अंत काल में महाभारत का महायुद्ध हुआ था, जिसमें हर तरह का विद्वेष, छल, कपट, ईर्ष्या की पराकाष्ठा देखने को मिलती है। इस युग की आयु 864000 वर्ष मानी गई है।

 कलियुग

कलियुग

सृष्टि काल निर्धारण का चौथा और अंतिम युग कलियुग है। ऐसा माना जाता है कि इस युग में हर तरह की बुराई अपने प्रचंड स्वरूप में आने वाली है। वर्तमान में यही युग चल रहा है। इसे सृष्टि का अंतकाल भी माना जाता है, लेकिन इसका तात्पर्य सृष्टि के समाप्त होने से नहीं है। इसका अभिप्राय यह है कि बुराई से भरे इस युग के अंत के बाद एक बार फिर सतयुग की वापसी होगी। धर्मशास्त्र मानते हैं कि हर युग में बुराई का नाश करने के लिए भगवान ने अवतार लिया है। इसी तरह कलियुग में भगवान कल्कि अवतार में प्रकट होंगे और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करेंगे। इस युग की आयु 432000 वर्ष मानी गई है।

84 लाख योनियों का वर्गीकरण

84 लाख योनियों का वर्गीकरण

युग निर्धारण के साथ ही पुनर्जन्म की अवधारणा पर भी चर्चा कर लेते हैं। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार पृथ्वी पर जीव के जन्म की 84 लाख योनियां बनाई गई हैं। धार्मिक प्राक्कल्पना के अनुसार हर जीव अपने कर्मों के अनुसार अगला जन्म एक नई योनि में पाता है। पृथ्वी पर मनुष्य योनि में जन्म लेना सर्वाधिक पवित्र माना जाता है। पुराणों और स्मृतियों के आधार पर प्रत्येक प्राणी अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न जन्मों में 84 लाख योनियों में भटककर मनुष्य का जन्म पाता है। इन 84 लाख योनियों का वर्गीकरण और निर्धारण इस प्रकार है-

  • कुल योनियां- 84 लाख
  • पेड़-पौधे- 30 लाख
  • कीड़े-मकोड़े 27 लाख
  • पक्षी- 14 लाख
  • पानी के जीव-जंतु- 9 लाख
  • देवता, मनुष्य और पशु- 4 लाख
  • धर्म ग्रंथों के अनुसार इन सभी योनियों में प्रत्येक प्राणी अपने कर्मफल के अनुसार जन्म पाता है। इसीलिए कहा जाता है कि व्यक्ति को अच्छे कर्म करना चाहिए, ताकि वह अगला जन्म श्रेष्ठ योनि में पा सके।

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English summary
Yuga in Hinduism is an epoch or era within a four-age cycle. A complete Yuga starts with the Satya Yuga, via Treta Yuga and Dvapara Yuga into a Kali Yuga. Our present time is a Kali Yuga, which started at 3102 BCE with the end of the Kurukshetra War (or Mahabharata war).
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