हर अंक कुछ कहता है आपसे इसलिए जरूर जानिए इन बातों को...
नई दिल्ली। अंक यानि गिनती यानि गणना करने के वे साधन, जो तमाम गणितीय सवालों को हल करने में काम आते हैं। जीवन में अंकों का अपना महत्व है। अंकों का महत्व इतना है कि इनके आधार पर व्यक्ति के स्वभाव, उसकी आदतों, सोचने और काम करने के तरीकों के अलावा उसके भाग्य तक को पढ़ा जा सकता है।
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अब तो न्यूमेरोलॉजी यानि कि अंकशास्त्र की विधा भी जनमानस के मन में जगह बना चुकी है और कई लोग अंकों की गणना पर ज्योतिष शास्त्र के समान ही भरोसा करने लगे हैं। यहां तक कि अब इसे एक तरह के ज्योतिष शास्त्र के रूप में ही मान्यता मिल चुकी है। वैसे अंकीय गणना का यह चलन कोई नया नहीं है। हिंदू शास्त्र में हमेशा से अंकों के चमत्कारिक और सामान्य से कुछ अलग हटकर अर्थ निकाले गए हैं, जिनका पर्याप्त पौराणिक आधार भी है।
आइए, आज इन्हीं के बारे में जानते हैं...
अंक एक परमशक्ति की एकता का प्रतीक
- हिंदू शास्त्र में अंक एक परमशक्ति की एकता का प्रतीक है। हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार हिंदू धर्म के अनेक भाग होने पर भी परम सत्ता एक ही मानी गई है।
- अंक दो का अर्थ दार्शनिक है। इसमें आत्मा और परमात्मा के एकत्व का मूलमंत्र ध्वनित होता है। हिंदू धर्म के अनुसार ईश्वर और जीव के मिलने से सृष्टि बनी है और अंततः जीव, परमात्मा का ही भाग है और जीवन संपूर्ण होने के बाद उसी में समा जाता है।
- हिंदू धर्म में तीन प्रकार के लोकों की परिकल्पना की गई है। अर्थात सृष्टि को तीन भागों या लोकों में विभाजित किया गया है- स्वर्गलोक, मृत्युलोक और पाताल लोक।
- अंक चार का धार्मिक दृष्टिकोण यह बताता है कि हमारे यहां चार ही वेद हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ये चारों वेद ही हिंदू धर्म का आधार हैं। इन्हें अपौरूषेय कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इनकी रचना किसी व्यक्ति ने नहीं की है, बल्कि एक दिव्यवाणी ने विशिष्ट सिद्ध पुरुषों को इनका ज्ञान कराया था। हिंदू धर्म की आचार-व्यवहार की समस्त परंपराएं वेदों के अनुसार ही चलती हैं।
- अंक पांच सृष्टि के मूल पंचतत्वों की ओर संकेत करता है। ये पंचतत्व इस प्रकार हैं- धरती, जल, अग्नि, आकाश और पवन। ऐसा माना जाता है कि संपूर्ण सृष्टि का निर्माण इन पांच तत्वों के मिलने से ही हुआ है।
- छह का अंक प्रकृति की ऋतुओं का प्रतीक है। एक वर्ष में कुल 6 ऋतुएं मानी गई हैं- वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर।
- अंक सात का संबंध संगीत के सात सुरों से है। ये सात सुर हैं- सा रे ग म प ध नी। इसी प्रकार सूर्य की किरणों में भी सात रंग पाए जाते हैं।
- आठ अंक का तात्पर्य दिन के प्रहरों से है। समय विज्ञान के अनुसार एक दिन और एक रात में कुल आठ प्रहर होते हैं।
- नौ का अर्थ नवधा भक्ति से लिया जाता है। नवधा भक्ति में नौ प्रकार की भगवत्सेवा निर्धारित की गई है, जिनका क्रम इस प्रकार है- श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवा, अर्चना, वंदना, मित्र, दासत्व और आत्मनिवेदन।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद
सात का संबंध संगीत के सात सुरों से
दस अंक का संबंध दस दिशाओं से
दिशाएं 10 होती हैं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आकाश, पाताल, नैऋत्य, वायव्य, ईशान और आग्नेय। इसी प्रकार दिग्पाल भी 10 होते हैं- इंद्र, यम, कुबेर, वरूण, ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, अग्नि, नैऋत्य और पवन।
सृष्टि और सृष्टिकर्ता परमात्मा
हिंदू धर्म और दर्शन में हर वस्तु प्रकृति से प्रेरित या उसमें समाहित है। हमारे दर्शन का आधार ही सृष्टि और सृष्टिकर्ता परमात्मा हैं। यही कारण है कि भारतीय दर्शन में प्रकृति और परमात्मा के विभिन्न रूपों और संबंधों की झलक हमारे हर कार्य और सोच में दिखाई देती है। अंकीय गणना हो या ज्योतिष विज्ञान, सभी समान रूप से परमतत्व की सत्ता को रेखांकित करते हैं।